आप ऐसे सवालों को उठाएं जो पूछने लायक हों

Edited By ,Updated: 25 Apr, 2021 02:48 AM

raise questions that are worth asking

एक बात अच्छी है कि पत्रकार सवाल पूछ रहे हैं। हम स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु और यहां तक कि उत्सुक हैं। हम शायद ही कभी उस मूल्य को स्वीकार करते हैं जो हमें कहा जाता है। यह किसी अथॉरिटी की ओर से होता है जिसे हम आमतौर पर अस्वीकार कर देते हैं। सतह के नीचे...

एक बात अच्छी है कि पत्रकार सवाल पूछ रहे हैं। हम स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु और यहां तक कि उत्सुक हैं। हम शायद ही कभी उस मूल्य को स्वीकार करते हैं जो हमें कहा जाता है। यह किसी अथॉरिटी की ओर से होता है जिसे हम आमतौर पर अस्वीकार कर देते हैं। सतह के नीचे तक खोदने की तरफ हमारा झुकाव होता है क्योंकि हमें संदेह है कि सच्चाई दृश्य से छिपी हुई है। यह हमें अजीब और अनाड़ी बना देता है। खैर, मुझे लगता है कि सरकार की टीकाकरण की रणनीति के बारे में कुछ सवाल पूछने का समय आ गया है। लेकिन मैं इन सवालों को निष्पक्षता से पूछूंगा। मैं केवल उन सवालों को उठाऊंगा जिनका उत्तर दिया जाना आवश्यक है। जब तक कि हम सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार करते हैं सवाल और गहरे और परेशान करते हैं। दूसरे शब्दों में मैं आपको उस निष्कर्ष पर छोडऩा चाहता हूं जो आप चाहते हैं। 

पहला प्रश्न सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसके 2 भाग हैं। पिछले वर्ष जून में जब फाइजर माडर्ना तथा एस्ट्राजैनिका  2 खुराक वैक्सीन पर कार्य कर रही थीं, हम जानते थे कि 75 प्रतिशत भारतीय जनसंख्या का पूरी तरह से टीकाकरण होना है। हमें 2 बिलियन खुराकों की जरूरत थी। हम यह भी जानते थे कि राष्ट्रव्यापी वैक्सीन का उत्पादन करने की क्षमता एक निश्चित समय-सीमा के बीच 2 बिलियन खुराकें नहीं दे सकती थी। क्या यह स्पष्ट नहीं था कि सरकार को हमारी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता नहीं थी? यह कोई रॉकेट साइंस पर आधारित बातें नहीं थीं बल्कि यह एक साधारण गणित था। तो सरकार ने क्या किया? वैक्सीन ट्रायल के साथ मदद करने के लिए सीरम इंस्टीच्यूट और भारत बायोटैक को 10 करोड़ रुपए उपलब्ध करवाए गए। मगर जहां तक मैं बता सकता हूं कि उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं किया गया।

यदि मैं सही हूं तो क्या यह समझाने योग्य और स्पष्ट बात थी?  या फिर पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना बात थी? आज परिणाम सामने हैं। जब सरकार एक दिन में 5 मिलियन खुराकें चाहती है तो पब्लिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ 10 मिलियन खुराकों की सिफारिश कर रहे हैं। जबकि हम 2.5 मिलियन से कम का उत्पादन कर रहे हैं। अब मुझे दूसरे महत्वपूर्ण सवाल पर आना चाहिए। पिछली मई या जून में सीरम इंस्टीच्यूट ने अपने पैसे का जोखिम उठाते हुए एस्ट्राजैनिका (कोविशील्ड) का इस उम्मीद से उत्पादन और भंडारण किया कि यह सफल होगी। अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपियन संघ ने आर्डर दिए और उनके लिए भुगतान भी किया। वैक्सीन की स्वीकृति और लाइसैंस से पूर्व यह सब हुआ तथा इरादा एक सुनिश्चित आपूॢत की गारंटी देने का था। क्या भारत सरकार ने भी ऐसा ही कोई कदम उठाया था? यदि नहीं तो ऐसा क्यों नहीं किया गया? क्या ऐसा नहीं माना गया था कि यह बुद्धिमत्ता और अनिवार्य नहीं था या फिर सरकार ने इसके बारे में सोचा ही नहीं था?

तर्क यह है कि भारत के पास पैसा नहीं है। वैक्सीनेशन के लिए बजट में 35,000 करोड़ रुपए अलग रखे गए थे। इसका उपयोग क्यों नहीं किया गया? इसके अलावा सीरम एक भारतीय कम्पनी है। एडवांस में आर्डर देने और उसके लिए भुगतान करने से निश्चित तौर पर कम्पनी की क्षमता को बढ़ाया जा सकता था। इस कारण यह आत्मनिर्भर वाली बात थी। अब मैं तीसरा सवाल उठाता हूं। 2020 की समाप्ति पर सरकार और सीरम के बीच एक समझौता हुआ जिससे 100 मिलियन खुराकें 200 रुपए प्रत्येक पर खरीदी जानी थीं। यह कीमत विश्व में सबसे कम कीमत थी मगर जनवरी में आर्डर दिया गया। यह मात्र 11 मिलियन खुराकों का था। क्यों? तत्पश्चात मुझे बताया गया कि सरकार ने 10 या 20 मिलियन की खेप के लिए समान राशि अर्जित की। हमारी खरीद रणनीति को हमारे वैक्सीन उत्पादकों की मदद के लिए डिजाइन किया जाना चाहिए था। क्या यह सब खेल खेलने जैसा नहीं था? 

मेरा अंतिम सवाल है कि करीब तीन सप्ताह पूर्व सीरम ने अपनी निर्माण क्षमता को बढ़ावा देने के लिए 3000 करोड़ रुपए की मांग रखी। अब तक सरकार जानती थी कि भारत में वैक्सीन की कमी है जबकि कोविड की दूसरी लहर तेजी से बढ़ रही है। फिर भी सरकार ने सीरम के आग्रह पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 2 हफ्ते का समय लगा डाला। आखिर क्यों? एक संकट में गति महत्वपूर्ण होती है लेकिन सरकार ने सोचा कि समय उसकी ओर है। इसका स्पष्टीकरण यह है कि हमें भुगतान का एक तरीका खोजना चाहिए था। मैं इस ङ्क्षबदू पर रुकना चाहूंगा। अब यह सब बातें आप पर हैं कि आप ऐसे सवालों को उठाएं जो पूछने के लायक हैं। अपने जवाबों में हम भिन्न हो सकते हैं लेकिन यह मामला सरकार की ओर से आएगा, मगर कब?

-करण थापर

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