मसालेदार स्वादिष्ट सब्जियां बनाने जैसा है बच्चों का लालन-पालन

Edited By ,Updated: 16 Jun, 2022 06:30 AM

raising children is like making spicy delicious vegetables

दिल दहलाने वाली खबर लखनऊ से आई है। 10वीं का छात्र अपनी मां को लाइसैंसी हथियार उठा गोलियों से भून देता है। तीन दिन तक शव के साथ खुद रहता है और बहन को भी धमका कर रखता

दिल दहलाने वाली खबर लखनऊ से आई है। 10वीं का छात्र अपनी मां को लाइसैंसी हथियार उठा गोलियों से भून देता है। तीन दिन तक शव के साथ खुद रहता है और बहन को भी धमका कर रखता है। दुर्गंध उठने पर सेना में तैनात जे.सी.ओ. पिता को झूठी कहानी के जरिए सूचना देता है। प्रथम दृष्टया जो कारण सामने आया, उसके मुताबिक मां ऑनलाइन गेम खेलने से रोकती थी। यह घटना निश्चित दुर्भाग्यपूर्ण है। 

यहां दोषी कौन है, क्यों है, यह हो सकता था, वह हो सकता था आदि लिख कर मैं मरहूम मां या सेना में तैनात जे.सी.ओ. पिता को दोषी नहीं ठहरा सकता, क्योंकि वे तो अपनी समझ से अपना बैस्ट ही दे रहे थे। लेकिन यह तय है कि चूक हुई है। मसलन, घर में लाइसैंसी हथियार रखा था तो उसकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। अगर होते तो बच्चे को भला कैसे मिलता। बच्चा मां पर गुस्सा करता है, हथियार उठाता है। घर में उसे कारतूस भी मिल जाता है। उसे या तो वह खुद लोड करता है या तो उसमें कारतूस पहले से लोड होता है। दोनों ही सूरतें किसी भी घर में सदस्यों की सुरक्षा के लिए खतरनाक है। इस घर का रिजल्ट सामने है। 

अगर बच्चे को गेम की लत लगी तो क्या एक दिन में? शायद नहीं। गेम खेलने में इंटरनैट और बेहतरीन स्मार्ट फोन या लैपटॉप कहां से आया? स्वाभाविक है, पेरैंट्स ने ही दिलाया। सारी सुविधाएं देने के बाद क्या बच्चे पर पेरैंट्स की उतनी नजर थी, जितनी होनी चाहिए? शायद नहीं। और यह हादसा हो गया। एक हंसता-खेलता परिवार टूट गया। बिखर गया। बच्चों के सिर से मां का आंचल और पति के लिए पत्नी का असमय जाना किसी भी परिवार के लिए असामान्य घटना है। पूरी की पूरी गृहस्थी उजड़ गई। उम्मीदें टूट गईं। संभावनाएं समाप्त हो गईं। 

मैं उस मां को नमन करते हुए, पिता के प्रति विनम्र भाव रखते हुए कहना चाहता हूं कि बच्चों का लालन-पालन उस स्वादिष्ट मसालेदार सब्जी बनाने की प्रक्रिया की तरह होता है, जिसे हम बड़े चाव से अपने और अपनों के लिए बनाते हैं। ऐसी सब्जी के लिए सामान्य सा नियम है। धीमी आंच पर कड़ाही चढ़ाएं, तेल डालें। फिर हींग, जीरा, मेथी, लहसुन, प्याज का तड़का डाल दें। जब रंग सुनहरा हो जाए तो मसाला डालें और फिर धीमी ही आंच पर तब तक भूनें जब तक कि मसाला तेल न छोड़ दे। फिर सब्जी डालें और मद्धम आंच पर उसे धीरे-धीरे मसाले के साथ मिलाएं। कुछ देर यह प्रक्रिया चलने दें। इस पूरी प्रक्रिया में आपके हाथ से कल्छी छूटनी नहीं चाहिए। जरा-सी चूक हुई नहीं कि सब्जी बेस्वाद हो सकती है। 

जैसे ही आपको लगे कि सब्जी और मसाले मिल गए हैं, आपस में इनका रिश्ता गहरा हो गया है तो इसमें आवश्यकता के मुताबिक पानी, नमक डालकर आंच तनिक तेज कर दें। नजर रखें कि कड़ाही में उबाल तो आए लेकिन सब्जी का रस बहने न पाए। ऐसा हुआ तो भी स्वाद पर नकारात्मक असर पड़ेगा। यह नियम गैस चूल्हे पर भी लागू है, इन्डक्शन पर भी लागू है और अगर गलती से कहीं आपके घर में मिट्टी-लकड़ी का चूल्हा है तो उस पर भी लागू है। हम सब इस बात से परिचित हैं कि आजकल हर घर में मौजूद कुकर में बनी सब्जी में वह स्वाद नहीं होता जो ऊपर बनाई गई विधि से मिलता है। बस, बच्चों का लालन-पालन भी कुछ कड़ाही में बनने वाली मसालेदार सब्जी की तरह ही किया जा सकता है। गारंटी आप फिर भी नहीं ले सकते कि बच्चा सही रास्ते पर ही जाएगा, लेकिन संभावना इस बात की है कि बेपटरी नहीं होगा। 

आजकल हम कहीं भौतिकवाद में, कहीं पैसों के प्रदर्शन में तो कहीं अत्याधुनिक दिखने के दबाव में बच्चों को दे तो सब कुछ रहे हैं, लेकिन बंद कुकर की तरह सारी सुविधाओं के साथ कमरे में छोड़ दे रहे हैं। फिर भाप निकलने की जगह न मिलने की वजह से कई बार कुकर फटने के हादसे हम सबने सुने हैं। जानते हैं क्यों? अरे, कितना  मूर्खतापूर्ण सवाल मैं पूछ रहा हूं। आप सब जानते हैं कि अगर कुकर की सीटी और भाप निकलने के रास्ते की सफाई नहीं की गई तो हादसा तय है। 

ठीक इसी तरह बच्चों को सुविधाएं दें। जरूर दें। लेकिन उन्हें कमरे रूपी कुकर में न छोड़ें। कड़ाही में सब्जी की तर्ज पर बचपन को पकने दें। उन पर नजर रखें। उस कमरे में अनिवार्य रूप से जाएं, जहां बच्चा या बच्ची सोती है। पढ़ाई की जगह जरूर विजिट करें। समय-समय पर बस्ता, अलमारी, बिस्तर की जांच-पड़ताल भी करते रहें और अंतिम बात यह कि बच्चों के साथ समय जरूर गुजारें। उनसे आज की दिनचर्या पूछें और कल का प्लान भी। दोस्तों के बारे में बात करें और पढ़ाई की योजना पर भी। और हां, दो-चार प्रेरक किताबें अपने आसपास रखें। बच्चे वही करते हैं जो बड़ों को करते हुए देखते हैं। अगर आप गीता, रामचरित मानस, कुरान, बाइबिल पढेंग़े तो प्रबल संभावना है कि बच्चों की रुचि भी इनमें जाग जाए। अगर स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसी हस्तियों को पढ़ेंगे तो संभव है कि आपके बच्चे भी उन्हें पढऩा शुरू कर दें। 

कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने व्यस्त हैं। थोड़ी कमाई कम कर दें, लेकिन प्लीज, व्यस्तता का बहाना न बनाएं और बच्चों को समय जरूर दें। उन्हें सही राह दिखाने का मात्र यही एक रास्ता है। मोबाइल, इंटरनैट का उपयोग तो हम सब कर ही रहे हैं। इसके उपयोग-दुरुपयोग को भी हम सब आसानी से देख पा रहे हैं। और हां, बच्चे केवल परिवार के नहीं, देश का भी भविष्य हैं। इनका बेपटरी होना, हादसों को दावत देना है। मुझे उम्मीद है कि आप ऐसा कदापि नहीं करेंगे।-दिनेश पाठक
 

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