Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jun, 2018 04:36 AM
राजस्थान की मुख्यमंत्री को राजपूत और गुज्जरों का समर्थन बनाए रखने के लिए बहुत विकराल चुनौती दरपेश आ रही है, जबकि प्रदेश में यही दो समुदाय भाजपा के सबसे सशक्त समर्थक हैं। जाटों सहित ये दोनों समुदाय प्रदेश की आबादी का पांचवां हिस्सा बनते हैं और गत 4...
राजस्थान की मुख्यमंत्री को राजपूत और गुज्जरों का समर्थन बनाए रखने के लिए बहुत विकराल चुनौती दरपेश आ रही है, जबकि प्रदेश में यही दो समुदाय भाजपा के सबसे सशक्त समर्थक हैं। जाटों सहित ये दोनों समुदाय प्रदेश की आबादी का पांचवां हिस्सा बनते हैं और गत 4 वर्षों दौरान वसंधुरा राजे ने इनका हृदय जीतने के लिए बहुत प्रयास किए हैं क्योंकि ये बिफर गए तो राजे की दूसरी बार सत्तासीन होने की महत्वाकांक्षा मिट्टी में मिल जाएगी।
राजस्थान के सबसे बड़े राजपूत नेता स्व. भैरों सिंह शेखावत की बदौलत ही राजपूत कई वर्षों से भाजपा के प्रति वफादार चले आ रहे हैं। प्रत्येक विधानसभा चुनाव में 15-17 राजपूत विधायक चुने जाते हैं जिनमें से अधिकतर भाजपा से ही संबंधित होते हैं। वर्तमान विधानसभा में 27 राजपूत विधायकों में से 24 भाजपा से संबंधित हैं। फिर भी इस समुदाय को यह नाराजगी है कि सरकार में बैठे इसके प्रतिनिधियों ने उस समय उनका साथ नहीं दिया जब गत जुलाई में गैंगस्टर आनंदपाल सिंह (जोकि राजपूत समुदाय से संबंधित था और जिसके विरुद्ध अनेक आपराधिक मामले दर्ज थे) की कथित पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद राजपूतों पर मुकद्दमे दर्ज किए गए।
श्री राजपूत सभा के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा को शिकायत है: ‘‘2 अप्रैल के भारत बंद में हुई हिंसा के दौरान दलित नेता तो सरकार को इस बात पर मनाने में सफल रहे कि उनके नेताओं के विरुद्ध दर्ज किए हुए मुकद्दमे वापस लिए जाएं लेकिन हमारे समुदाय के लोगों पर दर्ज मुकद्दमों पर सरकार ने मौन साध रखा है।’’ राजपूत समुदाय को इस बात का भी गुस्सा है कि इस वर्ष के प्रारम्भ में जब जाटों द्वारा जोधपुर जिले के समराओं गांव में राजपूतों के घर जलाए गए तो पुलिस मूकदर्शक बनी रही। संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ के विरुद्ध राजपूत समुदाय के आक्रोश का नेतृत्व करने वाले लोकेन्द्र सिंह कालवी कहते हैं : ‘‘हमारे कारण ही भाजपा की हार हुई है।’’
गुज्जर समुदाय भी परम्परागत रूप में भाजपा समर्थक रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उनका कट्टर प्रतिद्वंद्वी मीणा समुदाय कांग्रेस समर्थक है। यह पशुपालक समुदाय केवल तब कांग्रेस की ओर खिसकने लगा जब राजेश पायलट ने कांग्रेस में आकर राजनीति करनी शुरू कर दी और 1980 में भरतपुर से सांसद चुने गए। पायलट से पहले गुज्जर समुदाय के सबसे बड़े नेता नत्थु सिंह थे जो 1970 में भारतीय लोकदल की टिकट पर दौसा हलके से सांसद चुने गए थे। गुज्जर अब यह महसूस कर रहे हैं कि राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट के रूप में उनके अपने समुदाय के नेता की मुख्यमंत्री बनने की सम्भावनाएं अब बहुत साजगार हैं।
उल्लेखनीय है कि सचिन पायलट 2014 में अजमेर से पराजित हो गए थे लेकिन फरवरी 18 के उपचुनाव में भाजपा के रामस्वरूप लाम्बा को हराकर कांग्रेस के रघु शर्मा यहां से जीतने में सफल रहे। सरकारी नौकरियों तथा यूनिवर्सिटियों में गुज्जर समुदाय को आरक्षण देने में भाजपा की विफलता को कांग्रेस ने खूब भुनाया। 2007-08 में भड़के जातिगत टकराव तथा पुलिस फायरिंग में अपने 70 लोगों की जान गंवाने के बावजूद गुज्जर इस आरक्षण का लाभ हासिल करने में विफल रहे। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण को अवैध करार दे दिया था।
उसके बाद गुज्जर धीरे-धीरे कांग्रेस की ओर सरकने लगे। ऐसे में भाजपा उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी मीणा समुदाय पर डोरे डालने के प्रयास कर रही है। इसी प्रयास के चलते भाजपा ने इस समुदाय के सबसे दिग्गज नेता और पूर्व सांसद किरोड़ी लाल मीणा को फिर से भाजपा में शामिल कर लिया है और उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया है। उल्लेखनीय है कि किरोड़ी लाल मीणा 2008 में वसुंधरा राजे के साथ मतभेद पैदा होने के कारण भाजपा को अलविदा कह गए थे। गुज्जर और मीणा दोनों ही लड़ाकू समुदाय हैं जो दोसा, करौली, सवाईमाधोपुर तथा टांक जिलों में लगभग बराबर की संख्या में मौजूद थे। किरोड़ी लाल के बूते भाजपा इस समुदाय को कांग्रेस से दूर खींचने में निश्चय ही सफल होगी।
जहां तक जाटों का सवाल है वह परम्परागत रूप में कांग्रेस के समर्थक रहे हैं और इसे ही सामंतवादी प्रथा समाप्त करने का श्रेय देते हैं। इस परम्परा के समाप्त होने के कारण ही जाट लोगों को जमीनी मालिकी के अधिकार मिले थे। नागौर से नत्थु राम, राम निवास मिर्धा, बीकानेर से कुंभाराम आर्य, शेखावटी से सीसराम ओला तथा जयपुर से परसराम मदरेना जैसे नेता कांग्रेस पार्टी में ही फले-फूले थे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जाटों को 1999 में ओ.बी.सी. में शामिल किया था ताकि उन्हें नौकरियों और पढ़ाई में आरक्षण मिल सके। इस फैसले के बाद यह समुदाय दोफाड़ हो गया। यानी कांग्रेस और भाजपा दोनों के समर्थन में चला गया। ऊपर से कांग्रेस ने 1998 में मुख्यमंत्री पद के लिए परसराम मदेरना की बजाय अशोक गहलोत को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया जबकि वह विधानसभा सदस्य भी नहीं थे। इस फैसले से बचे-खुचे जाट भी कांग्रेस से दूर हो गए। संख्या और प्रभावशीलता की दृष्टि से जाट ही सबसे बड़ा समुदाय है।
हर विधानसभा में औसतन 30 के लगभग जाट नेता विधायक बनने में सफल होते हैं। यह समुदाय राजनीतिक रूप में काफी जागरूक है और भारी मात्रा में मतदान करता है। बाड़मेर से भाजपा सांसद सोना राम चौधरी इस समुदाय के सबसे दिग्गज नेता हैं लेकिन वे भी अपनी उपेक्षा किए जाने से काफी व्यथित हैं। पूर्व नौकरशाह तथा राजस्थान ओ.बी.सी. के सदस्य सत्य नारायण सिंह का कहना है कि जाट भाजपा में इस उम्मीद से आए थे कि पार्टी की राजनीति में उनकी भी पूछताछ होगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं है।-राकेश गोस्वामी