राम जन्मभूमि विवाद : फैसला जो भी हो ‘संयम’ रखा जाना चाहिए

Edited By ,Updated: 21 Oct, 2019 03:12 AM

ram janmabhoomi dispute whatever the verdict  restraint  should be kept

सर्वोच्च न्यायालय में सबसे लम्बा चला मुकद्दमा अब फैसले के इंतजार में है। अदालत का फैसला 17 नवम्बर को आएगा। दोनों पक्ष दिल थामकर इसका इंतजार कर रहे हैं। यहां इस केस में दोनों पक्षों द्वारा दिए तर्क-वितर्कों का मैं कोई मूल्यांकन नहीं करूंगा। यह अधिकार...

सर्वोच्च न्यायालय में सबसे लम्बा चला मुकद्दमा अब फैसले के इंतजार में है। अदालत का फैसला 17 नवम्बर को आएगा। दोनों पक्ष दिल थामकर इसका इंतजार कर रहे हैं। यहां इस केस में दोनों पक्षों द्वारा दिए तर्क-वितर्कों का मैं कोई मूल्यांकन नहीं करूंगा। यह अधिकार तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय का है। जाहिर सी बात है कि फैसला जिसके पक्ष में आएगा, दूसरा पक्ष उसका विरोध करेगा। 

यह भी निश्चित है कि अगर फैसला हिंदुओं के हक में आता है, तो मुसलमानों को उत्तेजित और आन्दोलित करने का भरसक प्रयास उनके राजनेताओं द्वारा किया जाएगा। अगर फैसला मुसलमानों के पक्ष में आता है, तो हिंदू भी सड़कों पर उतर आएंगे। दोनों ही स्थितियां समाज के लिए अच्छी नहीं होंगी। पर जैसा कि 1990 से मैं और मेरे जैसे अनेकों निष्पक्ष पत्रकार लिखते और बोलते आए हैं, जब तक अयोध्या, काशी और मथुरा में हमारे सबसे पवित्र तीर्थस्थलों पर से मस्जिदें नहीं हटेंगी, तब तक दोनों पक्षों के बीच में सद्भाव आ ही नहीं सकता। 

मैं श्रीकृष्ण भक्त हूं और जब से होश संभाला है, तब से श्रीकृष्ण जन्मस्थान मथुरा के दर्शन करने जाता रहा हूं। हर बार वहां खड़ी विशाल मस्जिद को देखकर मन में एक चुभन होती है और उस क्षण की याद ताजा हो जाती है, जब वहां स्थित भव्य देवालय को आक्रांताओं ने तोड़कर मस्जिद चिनी थी। हम उस दृश्य के साक्षी नहीं हैं, पर इतिहास पढ़कर और सुनकर कल्पना करते हैं, तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं कि हमारे आराध्य की जन्मभूमि पर जिस समय उस भव्य मंदिर को तोड़ा जा रहा होगा, तो वहां मौजूद भक्तों, संतों और जनता को कितनी मानसिक यातना हुई होगी। यह भाव मेरी आने वाली पीढिय़ों को भी वैसा ही होगा जैसा हमारी पीढ़ी या हमसे पिछली पीढिय़ों को होता आया है। वह भी तब जबकि हम धर्मांध या कट्टरवादी नहीं हैं और दूसरे धर्मों का भी सम्मान करना हमें हमारे माता-पिता ने बचपन से सिखाया है। पर अपने हिंदू धर्म के प्रति हमारी गहरी आस्था है। आशा करते हैं कि ऊपर भगवान और नीचे इस देश के शासक सदियों की हमारी इस पीड़ा को शीघ्र दूर करेंगे। 

मुसलमान भाई पीड़ा समझें
इसलिए मैं बार-बार अपने मुसलमान भाइयों से बड़ी विनम्रता से यही निवेदन करता आया हूं कि वे इस पीड़ा को समझें और भविष्य में आपसी सौहार्द का वातावरण बनाने के लिए स्वयं ही हिंदू धर्म के इन तीन दिव्य स्थलों के बारे में सोचें। तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में मध्य युग की एक ऐतिहासिक इमारत, जिसे ‘‘सोफिया मस्जिद’’ कहते थे, मौजूद है। दरअसल यह एक भव्य चर्च था, जिसे मुस्लिम शासकों ने जबरन कब्जा कर मस्जिद बना दिया था। पर तुर्की के दूरदृष्टि वाले आधुनिक शासकों ने इसकी संवेदनशीलता को समझा और उसे मुसलमानों की इबादत के लिए बंद कर दिया। 

इतना ही नहीं, मुस्लिम आक्रांताओं ने यीशू मसीह के जीवन से संबंधित दीवारों पर जो विशाल भव्य चित्र बने थे, उन पर कई सदियों पहले प्लस्तर करके उन्हें छिपा दिया था। पर अब वह सब हटा दिया गया है और ‘‘सोफिया चर्च’’ जनता के दर्शनार्थ खोल दिया गया है, जहां जाकर आपको मस्जिद होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। यह उस देश में हुआ, जो मुस्लिम देश है। तो भारत में, जहां हिंदू धर्म की परम्परा इस्लाम से 4000 वर्ष से भी पहले की है और जहां की बहुसंख्यक आबादी हिंदू है, यह क्यों नहीं हो सकता।

सौहार्द बना रहे  
अगर अदालत का फैसला हिंदुओं के पक्ष में आता है, तो उन्हें संयम बरतना चाहिए। हर्ष और उत्साह के अतिरेक में ऐसा कुछ न करें जिससे समाज में वैमनस्य फैले और हिंसक संघर्ष हो। बल्कि मुस्लिम समाज को आश्वासन देना चाहिए कि वे अयोध्या में उनकी नई मस्जिद के निर्माण में तन, मन और धन से सहयोग करेंगे। अगर अदालत बहुसंख्यक हिंदुओं की भावना और वकीलों के तर्क को दरकिनार कर फैसला मुसलमानों के पक्ष में दे देती है, तो इसे अपनी कानूनी जीत मानकर, मुसलमानों को एक उदार भाई की तरह हिंदुओं को राम जन्मभूमि सौंप देनी चाहिए यह कहते हुए कि हम कानून की लड़ाई जीत गए पर अब हम आपका दिल जीतने का काम करेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि फैसला जो भी आए, समाज में सौहार्द बना रहे और बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्था के इतने बड़े केन्द्र पर भविष्य में तनाव की जगह भजन और भक्ति का वातावरण बने।-विनीत नारायण

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