रंजन गोगोई की अभूतपूर्व ‘विवादास्पद’ विरासत

Edited By ,Updated: 21 Nov, 2019 01:24 AM

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने अपने पीछे एक विवादास्पद विरासत छोड़ी है जिसने कि सर्वोच्च न्यायालय की विश्वसनीयता को कमजोर किया है। गोगोई ने कुछ ऐसे सवालों को खड़ा किया जिनके जवाब अभी तक शेष हैं। उनके कई कार्यों...

भारत के सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने अपने पीछे एक विवादास्पद विरासत छोड़ी है जिसने कि सर्वोच्च न्यायालय की विश्वसनीयता को कमजोर किया है। गोगोई ने कुछ ऐसे सवालों को खड़ा किया जिनके जवाब अभी तक शेष हैं। उनके कई कार्यों तथा उनके द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं पर लगातार बहस जारी रहेगी तथा इनका लम्बे समय तक प्रभाव रहेगा। 

गोगोई अपनी व्यवस्थाओं के लिए भी याद किए जाएंगे जिनको लंबित पड़े मुद्दों के साथ उन्होंने अपने अंतिम समय में सुलझाया। कई व्यवस्थाओं को देने में उन्होंने जल्दबाजी दिखाई तथा कुछ ऐसे विवादास्पद मुद्दों की उन्होंने अवहेलना की। यह भी लम्बे समय तक याद किया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन होने से पहले न्यायाधीश गोगोई ने विवादों को दूर रखा। उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ अन्य तीन न्यायाधीशों के साथ मिलकर एक अभूतपूर्व प्रैस वार्ता का आयोजन किया था। उस समय कइयों ने सोचा था कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ बोलकर उन्होंने अपनी नियुक्ति के लिए एक बड़ा जोखिम उठाया था। हालांकि कई पर्यवेक्षकों का उस समय मानना था कि गोगोई ने जानबूझ कर ऐसा किया था ताकि उच्च पद पर नियुक्ति के लिए वह अपना दावा ठोंक सकें। 

गोगोई को कोर्ट की एक अधिकारी के साथ यौन उत्पीडऩ के एक मामले में भी फंसा देखा गया। इस मामले में होना तो यह चाहिए था कि साधारण प्रक्रिया से इससे निपटा जाता और इस मामले की जांच खुद यौन उत्पीडऩ कमेटी करती। इसके विपरीत गोगोई ने इस मामले को स्वयं ही देखा तथा तीन जजों की कमेटी नियुक्त की। कमेटी ने कथित पीड़िता को किसी भी वकील की मदद नहीं लेने दी तथा इसी वजह से उसने सारी प्रक्रियाओं का बायकाट कर दिया। इस केस का बंद हो जाना किसी भविष्य के पत्रकार द्वारा जांच किए जाने का मामला बनता है। वास्तविकता यह है कि शिकायतकत्र्ता अजीब ढंग से पब्लिक से अलोप हो गई तथा घटना से संबंधित वास्तविक तथ्य दफन हो कर रह गए। इस घटना से अलग गोगोई का कार्यकाल लम्बे समय तक उनके विवादास्पद निर्णयों के लिए नहीं याद किया जाएगा बल्कि इसलिए भी याद किया जाएगा कि उन्होंने इनसे निपटने के लिए कौन-सा ढंग अपनाया और कानून के प्रावधानों पर ध्यान देने की बजाय उन्होंने इसको नकारा। 

अयोध्या मामले की तीव्र सुनवाई का श्रेय गोगोई को
रंजन गोगोई को अयोध्या मामले की तीव्र सुनवाई तथा 5 जजों के एकमत फैसले के लिए भी श्रेय जाता है। भविष्य में हम इस निर्णय के गुण तथा दोषों के बारे में विस्तार से बात करेंगे क्योंकि इस पर अभी और प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। पांच जजों के इस निर्णय को कुछ पक्षों द्वारा चुनौती दी जा रही है क्योंकि वे मानते हैं कि इस निर्णय पर कई परस्पर विरोध हैं। अन्य निर्णय में मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को आर.टी.आई. एक्ट के अधीन लाना, सबरीमाला मामले की सुनवाई बड़ी बैंच से करवाना, राफेल एयरक्राफ्ट तथा विधायकों को अयोग्य करार देना इत्यादि को भी लम्बे समय तक याद किया जाएगा। 

हालांकि उनके द्वारा अपनाई गई कुछ प्रक्रियाओं को कानून की भावना के उल्लंघन के तौर पर देखा जा रहा है। इनमें से सील्ड कवर में सूचना की आपूर्ति के निरंतर आदेशों को भेजना भी शामिल है। पूर्व में ऐसे तरीकों को बेहद कम मौकों पर अपनाया गया है। इन्हें केवल किसी व्यक्ति की प्राइवेसी या राष्ट्रीय भेदों को बचाने के तौर पर किया गया। अन्यथा निर्णयों की पारदर्शिता को नकार दिया गया। हालांकि रंजन गोगोई ने विभिन्न मामलों का संज्ञान लिया। गोगोई एक कदम और आगे बढ़ गए जब मामलों के निपटारे के लिए उन्होंने अधिकारियों को निजी तौर पर मौखिक सुनवाई के लिए बुलाया। 

राफेल मामले में उन्होंने ऐसा ही किया। जब उन्होंने वायुसेना अधिकारियों को परामर्श के लिए तलब किया मगर रंजन ने उनके बयानों को रिकार्ड पर नहीं रखा। अयोध्या मामले के फैसले से पूर्व भी उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव तथा डी.जी.पी. को बुलाया और कानून व्यवस्था पर किए गए उपायों के बारे में पूछा। ये सब न्यायिक पुनॢवचार के दायरे से अभूतपूर्व बातें थीं। 

प्रशासनिक पहलू पर भी उठे सवाल
उनके प्रशासनिक पहलू पर भी कई सवाल उठाए गए हैं। उन्होंने एक जूनियर जज को गुणों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त करने के लिए चुना। उनमें से कुछ जिनको अलग रखा गया था, को उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। यह बात दर्शाती है कि जो अलग रखे गए थे वे बराबर के योग्य थे। उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश को त्रिपुरा में स्थानांतरित करने की बजाय उनकी नियुक्ति को रद्द कर सरकार के दबाव के आगे घुटने टेक दिए। यदि एक जज एक कोर्ट के लिए योग्य या अच्छा नहीं था तो फिर वह अन्य कोर्ट के लिए कैसे योग्य हो सकता है? पूर्व में मुख्य न्यायाधीश ऐसे दबावों को झेलते आए हैं। उच्च न्यायपालिका गोगोई के समय तनाव में दिखाई दी और समय ही बताएगा कि क्या इसके स्थायी नतीजे हैं या न्यायपालिका इसे फिर से पलटेगी।-विपिन पब्बी
 

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