चुनाव आते ही असल मुद्दे पीछे धकेल दिए जाते हैं

Edited By ,Updated: 20 Jan, 2022 05:53 AM

real issues are pushed back as soon as elections come

नजदीक आते ही लोगों से संबंधित असल मुद्दों को हमेशा पीछे धकेल दिया जाता रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, अनपढ़ता, स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी वोटरों के दिमाग से निकालने के लिए थोक में

नजदीक आते ही लोगों से संबंधित असल मुद्दों को हमेशा पीछे धकेल दिया जाता रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, अनपढ़ता, स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी वोटरों के दिमाग से निकालने के लिए थोक में दी जाने वाली सुविधाओं के झूठ का पुलिंदा परोसना राजनीतिज्ञों का ‘परम धर्म’ बन गया है।

वास्तव में कभी भी इन प्रश्रों का सही समाधान करने की ओर कदम तक नहीं उठाया जाता। ‘या यह ढांचा रहेगा या मैं’, ‘विकास की आंधी ला दूंगा’, ‘बिना रोजगार दिए हर महिला को 1000 रुपए महीना घर भेज दिया जाएगा’, ‘मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मु त पढ़ाई के साथ-साथ अन्य वित्तीय सहायता’, ‘कर्जों की माफी’ आदि दावे किसी तीन घंटे की फिल्म के डायलॉग लगते हैं, जिनमें जरा भी सच्चाई नहीं है। 

यह व्याख्यान गत 75 वर्षों से सुनते आ रहे हैं। ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों ज्यों दवा की’ वाला कथन अब स्थापित सच बन चुका है। किसी भी देश का आर्थिक विकास 90 प्रतिशत जनसं या की ओर लक्षित होना चाहिए क्योंकि ऊपरी 10 प्रतिशत तबकों ने तो हर सरकार से तो अपना विकास खुद की ओर लक्षित करवा ही लेना होता है। जब किसी राजनीतिक दल का उ मीदवार धर्म, जाति या बिरादरी का वास्ता देकर वोटें हासिल करने के लिए याचना करता है तो समझ लें कि  दाल में कुछ काला जरूर है। विचारों या जीवन पद्धति के आधार पर उपजे किसी भी धर्म को मानव जाति से क्या खतरा हो सकता है? 

संसद या असैंबली चुनावों का मकसद सिर्फ गलियां, नालियां, शौचालय बनाने, सड़कों का निर्माण करने अथवा धार्मिक स्थानों के निर्माण के लिए ग्रांटें देना नहीं हो सकता। सरकार चुनते समय ध्यान इस ओर जाना चाहिए कि देश के करोड़ों लोगों को रोजगार कैसे उपलब्ध करवाया जाए। इसके लिए क्या योजनाबंदी है तथा आर्थिक साधन कहां से व कितनी मात्रा में जुटाए जाएंगे? 

यह सुनिश्चित करना होता है कि महंगे इलाज के कारण कोई गरीब घर पर ही तड़प-तड़प कर जान न गंवा दे अथवा इसका उपाय करना होता है कि कोई भी बच्चा अनपढ़ न रहे। लोगों की आय तथा रोजगार के स्रोत कैसे बढ़ाए जाएं ताकि कोई व्यक्ति स्वाभिमान को ताक पर रख कर भिखारियों की तरह सरकारों की खैरात पर आश्रित न रहे। सामाजिक सुरक्षा सबका कानूनी अधिकार है मगर ‘आटा-दाल’ योजनाएं तो ‘खैरात’ की तरह हैं, वह भी जैसे मंत्री साहिब अपने घर की कमाई से दे रहे हों। 

हर राजनीतिक दल ने अपनी-अपनी चुनाव मशीनरी की सर्विस करके इसे ‘कारोबार’ पर लगा दिया है। चुनाव प्रचार में इस बार सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी प्रमुखता से होना है जो खुद में अरबों-खरबों का धंधा है। खैर, शासक पक्ष की सारी झूठी तथा धोखापूर्ण योजनाबंदियां असफल हो जाती हैं यदि जन सामान्य राजनीतिक चेतना से लैस हो जाए। दिल्ली की सीमाओं पर एक वर्ष से अधिक समय तक चला किसान आंदोलन ऐसी राजनीतिक चेतनता पैदा करने की यूनिवर्सिटी सिद्ध हो सकता है परन्तु यदि इसका सही इस्तेमाल किया जाए। 

पंजाब के धन की लूट-खसूट का एक माध्यम मंत्रियों तथा असैंबली मैंबरों की कभी न खत्म होने वाली पैंशनें तथा सुविधाएं भी हैं। हर असैंबली मैंबर या मंत्री अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद अपना पहले वाला धंधा क्यों न अपनाए? 2004 के बाद राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी सेवाओं में भर्ती हुए लोगों को 58 साल की सेवा के बाद कोई पैंशन नहीं मिलनी। फिर ‘लोकसेवा’ के नाम पर मौज-मेले में गुजारे कुछ वर्ष सारी जिंदगी के लिए बड़ी कमाई का साधन क्यों बनें? 

17 वर्ष बाद पंजाब में भूमिगत जल भंडार सूख जाने हैं। उस समय की दयनीय स्थिति का मुकाबला करने के लिए आज चिंता तथा उपयुक्त उपाय करने आवश्यक हैं। कृषि का धंधा फायदेमंद बनाकर फसली चक्र में बदलाव, फैक्टरियों द्वारा बिना शुद्ध किए प्रदूषित पानी को दरिया में फैंकने पर स ती से रोक, बारिश के पानी का बचाव इत्यादि उपायों बारे आज सोचने का समय है। यह प्रमुख चुनावी मुद्दा बनना चाहिए। मध्यम उद्योग, जिनमें मानवीय कार्य शक्ति का इस्तेमाल ज्यादा हो, का विस्तार किए बिना रोजगार पैदा नहीं हो सकते। 

खाली पड़ी सरकारी नौकरियां भरने तथा गुजारे योग्य वेतन दिए बिना लोगों का पेट कैसे भरा जा सकता है? शिक्षा तथा रोजगार के अभाव के कारण युवा पीढ़ी नशों, चोरियों, डाके, गैंगवार तथा अन्य कई तरह के असामाजिक धंधों में लिप्त हो रही है। इसका समाधान शिक्षा के विस्तार तथा रोजगार उपलब्ध करवा कर ही किया जा सकता है। असामाजिक गतिविधियों ने समाज में असुरक्षा तथा अराजकता का माहौल बना दिया है। इसका बड़़ा कारण अफसरशाही का राजनीतिकरण तथा राजनीति का अपराधीकरण है। यदि इसे न रोका गया तो समस्त समाज ‘जंगलराज’  की ओर बढ़ जाएगा। 

महिलाओं, दलितों, कमजोर वर्गों, श्रमिकों तथा छोटे कारोबारियों के हितों की रक्षा करना हमारे लिए बड़ी चुनौती है। संतोष की बात यह है कि जिस पंजाब की दुर्दशा का जिक्र कर रहे हैं उसके नागरिकों ने ही धर्मों, जातियों, मजहबों तथा इलाकों की शासकों द्वारा पैदा की गई आपसी कड़वाहटों को दूर करके लड़े मिसाली संघर्ष तथा फतेहयाबी का एक नया इतिहास रचा है। यदि इसी मार्ग को अपना लिया जाए तो बेशक पंजाब विधानसभा के यह चुनाव हमारी सामाजिक, राजनीतिक तथा आॢथक जीवन में एक बड़े बदलाव की शुरूआत सिद्ध हो सकते है। 

यदि हम फिर पार परिक राजनीतिक दलों के झूठे ताम-झाम, नोटों की झलक, नशे, झूठे वायदे तथा लोकहितों को दर-किनार करके स्वार्थी हितों को ही पहल देंगे तो फिर हम अपने महान गुरु साहिबान की शिक्षाओं, भक्ति लहर के महान संतों तथा ङ्क्षचतकों के खूनी संघर्षों, इंकलाबी योद्धाओं की कुर्बानियों, शहीद-ए-आजम भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों के साथ गद्दारी करके ‘बड़ी बेअदबी’ के भागीदार बन जाएंगे। समय है संभलने, विचारने तथा अमल करने का।-मंगत राम पासला

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