हाथरस की हैवानियत की ‘वसूली’ दोषियों और पुलिस-प्रशासन से हो

Edited By ,Updated: 04 Oct, 2020 04:41 AM

recovery of hathras s generosity from the culprits and the police

हाथरस मेंं हुई हैवानियत बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारे समाज के लिए कलंक है। बच्चियों और महिलाओं से बर्बरता की ऐसी घटनाएं बार-बार होना, और बार-बार पुलिस तथा प्रशासन की ओर से एक-सी गलतियों को दोहराना बेहद शर्मनाक है। हाथरस मामले को शुरू से देखें तो...

हाथरस मेंं हुई हैवानियत बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारे समाज के लिए कलंक है। बच्चियों और महिलाओं से बर्बरता की ऐसी घटनाएं बार-बार होना, और बार-बार पुलिस तथा प्रशासन की ओर से एक-सी गलतियों को दोहराना बेहद शर्मनाक है। हाथरस मामले को शुरू से देखें तो हमें वही सब खामियां दिखती हैं जो त्वरित न्याय में बाधा हैं और अपराधियों में पुलिस का खौफ कम करती हैं। घटना के बाद एफ.आई.आर. दर्ज करने में यू.पी. पुलिस चार से ज्यादा दिन लगा देती है। 14 सितम्बर को घटना होती है और 19 सितम्बर को पहली एफ.आई.आर. दर्ज की जाती है, जिसमें सिर्फ छेड़छाड़ और मारपीट की धारा है। उसमें भी पुलिस पीड़िता, जिसकी गर्दन की हड्डी टूटी है और जुबान पर चोट है, की बात को समझ नहीं पाती और परिजनों की गुहार पर फिर उसके अगले और चार दिन बाद दोबारा एफ.आई.आर. में दुष्कर्म की धारा जोड़ती है। 

सवाल उठता है कि क्या पुलिस में जरा सी भी संवेदनशीलता नहीं बची है? क्या ऐसे मामलों में तत्काल एफ.आई.आर. नहीं होनी चाहिए? खासकर ऐसे मामलों में जहां पीड़िता जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही हो, बोलने की स्थिति में न हो और हमलावर लड़के हों तो क्या तत्काल मैडीकल जांच पुलिस को नहीं करानी चाहिए। अगर तत्काल एफ.आई.आर. दर्ज करने के सामान्य नियम का ही पुलिस पालन नहीं करेगी तो गुंडों और बलात्कारियों में खौफ क्यों होगा। जितनी ज्यादा देर होगी, उनके बच निकलने की संभावना उतनी ही बढ़ जाएगी। यही अब यू.पी. में नजर आ रहा है। एक मामला शांत नहीं होता, एक मामले में पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता, तब तक दूसरा मामला हो जाता है। महिलाओं और बच्चियों से दरिंदगी करने वाले बेखौफ हैं। पुलिस की लेट लतीफी जो ज्यादातर मामलों में किसी दबाव में जानबूझकर की जाती है, सिर्फ अपराधियों के बच निकलने का ही रास्ता नहीं साफ करती, बल्कि ऐसे अपराधों को बढ़ावा भी देती है। 

विधायक कुलदीप सैंगर के मामले में यूपी पुलिस की जो भूमिका रही, उसने उसकी छवि को धूमिल किया। पीड़िता न्याय के लिए जूझती रही, उस पर और उसके परिवार पर हमले होते रहे। मगर यू.पी. पुलिस के बड़े अधिकारी ऐसे बयान देते रहे जो अपराधी के पक्ष में थे, अंतत: सर्वोच्च अदालत को निर्देश देना पड़ा। सी.बी.आई. ने सबूत जुटाए और दिल्ली की अदालत में मामला चला। सैंगर अपराधी सिद्ध हुआ। इससे यू.पी. पुलिस के बारे में क्या संदेश गया। उस मामले में भी एफ.आई.आर. दर्ज करने में लंबी देरी की गई थी। गवाहों, साक्ष्यों से छेड़छाड़ हुई थी और यू.पी. पुलिस सिर्फ मूकदर्शक नहीं थी, बल्कि उसके कर्मचारी सहयोग करते भी पाए गए। जब ऐसे उदाहरण सामने हों तो महिला सम्मान से खेलने वालों में पुलिस का खौफ कैसे बनेगा। इस पर पुलिस का यह तुर्रा कि प्रदेश में अपराध कम हो रहे हैं। अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में महिलाओं पर अपराध छ: प्रतिशत बढ़े हैं। 

यह ठीक है कि मामले के तूल पकड़ लेने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपए के मुआवजे और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की। मगर ऐसा कर उन्होंने कोई एहसान नहीं किया। राज्य के मुखिया होने के नाते पीड़ित परिवार को न्याय दिलाना उनकी पहली जिम्मेदारी है। दंगों के मामलों में जैसे उन्होंने प्रावधान किया, उसी तरह की सख्ती उन्हें ऐसे मामलों में भी करनी चाहिए। पीड़ित परिवार को जो मुआवजा दिया जाएगा वह करदाताओं के पैसे से न दिया जाए। इस धन की वसूली दोषियों के परिवार, संबंधित थाने, जिसने रिपोर्ट दर्ज करने और जांच शुरू करने में देर की, जिले के पुलिस अधीक्षक, जिन्होंने मामले की संवेदना को नहीं समझा और तत्काल जांच को सुनिश्चित नहीं किया, इन सबसे होनी चाहिए। 

आठ साल पहले जब दिल्ली में निर्भया कांड  हुआ था तो भाजपा विपक्ष में थी और आक्रोशित लोगों के साथ उसने भी इस मुद्दे पर सड़क से संसद तक लड़ाई लड़ी थी। तब यह उम्मीद जगी थी कि महिला सुरक्षा के मोर्चे पर काफी सुधार आएगा। महिलाओं से दरिंदगी की घटनाओं पर लगाम लगेगी। अपराधी जल्द दंडित होंगे। उनमें खौफ पैदा होगा। यह जनाक्रोश का नतीजा था कि उस समय शीला दीक्षित सरकार ने पीड़िता को इलाज के लिए सिंगापुर तक भिजवाया था, मगर हाथरस की हैवानियत वाले मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने क्या किया? जो किया वह सबके सामने है। पहले पीड़िता अलीगढ़ मैडीकल कॉलेज में जिंदगी और मौत से जूझती रही, फिर उसे वहां से रैफर किया गया और दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया, जहां उसका निधन हो गया। 

मगर दिल्ली आने के बाद मामला मीडिया में सुर्खियां बना। तब जाकर सरकार की कुछ आंखें खुलीं। सिर्फ सरकार की ही नहीं विपक्ष की आंख भी तभी खुली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहल करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से टैलीफोन पर बात की। इसके बाद मामले की जांच के लिए एस.आई.टी. गठित की गई और मुआवजे की घोषणा की गई। जहां तक विपक्ष की बात है कि वह हाथरस मामले में राजनीति कर रहा है तो ऐसे मामलों में पीड़ित पक्ष के साथ खड़े होने की राजनीति विपक्ष को जरूर करनी चाहिए। यह राजनीति चुङ्क्षनदा नहीं हमेशा और लगातार जारी रहनी चाहिए। राहुल गांधी हाथरस की हैवानियत के खिलाफ सड़क पर उतर कर धक्के खाते हैं, गिर पड़ते हैं तो यह बुरा नहीं है। मगर बुरा यह है कि ऐसा कभी कभार ही नहीं होना चाहिए। उन्हें यह राजस्थान के मामले में या अन्य जहां भी जघन्य घटना हो वहां ऐसा करना चाहिए। पीड़ित पक्ष के साथ खड़े होना चाहिए। 

लोगों के न्याय के लिए लडऩा अच्छी राजनीति है। बशर्ते यह चुनिंदा न हो। सिर्फ राहुल ही क्यों सभी नेताओं को लोगों के लिए न्याय की लड़ाई आगे बढ़ कर लडऩी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि नेता घटना के बीस दिन बाद निकल कर तब आएं, जब चीजें उबाल पर हों और उन्हें लगे कि अब फसल पक गई है। ऐसा करना राजनीति नहीं है, अवसरवादिता है। राहुल गांधी को लगातार सक्रिय होने की जरूरत है। कभी-कभार निकलने से कुछ नहीं होगा। 

जहां तक निर्भया और हाथरस जैसी हैवानियतों का मामला है तो इसके लिए पूरा सिस्टम दोषी है। इस सिस्टम में सिर्फ पुलिस ही शामिल नहीं है, हम सब शामिल हैं। जहां इस तरह की घटना घटी, वहां आसपास के लोगों ने इसकी कैसे अनदेखी की। पुलिस ने लेट-लतीफी की। अधिकारी सजग नहीं हुए। परिस्थितियां बदतर होती गईं। ऐसे ही सिस्टम फेल होता है। ऐसे ही समाज फेल होता है और इसी से गुंडों और अपराधियों का मनोबल बढ़ता है। एक सवाल मीडिया विशेष और उसे प्रोत्साहित करने वाली जनता से भी। आखिर कब हम मूल सवालों पर लौटेंगे? मनोरंजन से पेट नहीं भरता न ही किसी जागरूक देश की जागरूकता बढ़ाता है। आज के युवाओं की रुचि और उनकी जनरल नॉलेज इसका ज्वलंत उदाहरण है।-अकु श्रीवास्तव
  

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!