क्षेत्रीय दल चाहते हैं एक कमजोर सरकार

Edited By Pardeep,Updated: 31 Dec, 2018 04:49 AM

regional parties want a weak government

भारतीय राजनीति में एक पुरानी कहावत प्रचलित है कि छोटे तथा क्षेत्रीय दल हमेशा एक मजबूत सरकार की बजाय कमजोर सरकार को प्राथमिकता देते हैं। दिवंगत बसपा नेता कांशी राम हमेशा दावा करते थे कि उनकी पार्टी तभी फले-फूलेगी जब सरकार कमजोर होगी। वर्तमान में पांच...

भारतीय राजनीति में एक पुरानी कहावत प्रचलित है कि छोटे तथा क्षेत्रीय दल हमेशा एक मजबूत सरकार की बजाय कमजोर सरकार को प्राथमिकता देते हैं। दिवंगत बसपा नेता कांशी राम हमेशा दावा करते थे कि उनकी पार्टी तभी फले-फूलेगी जब सरकार कमजोर होगी। वर्तमान में पांच राज्यों में भाजपा की हार के बाद क्षेत्रीय तथा छोटे दलों ने भाजपा के साथ सौदेबाजी शुरू कर दी है। 

तेदेपा ने भाजपा को एक वर्ष पूर्व छोड़ दिया था लेकिन परिणाम के बाद उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा छोड़ गई है। इसके तुरंत बाद रामविलास पासवान ने सौदेबाजी शुरू कर दी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पासवान के लिए असम से राज्यसभा सीट की घोषणा कर दी और आने वाले लोकसभा चुनावों में बिहार से लोक जनशक्ति पार्टी के लिए 6 सीटें छोड़ दीं। 

अब पासवान की सौदेबाजी को देखते हुए अपना दल, जिसके लोकसभा में दो सांसद हैं, अनुप्रिया पटेल के पति के लिए मंत्री पद हेतु सौदेबाजी का प्रयास कर रहा है, जो उत्तर प्रदेश में विधायी पार्षद हैं। अपना दल 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश में और अधिक लोकसभा सीटें चाहता है, जिसके लिए आशीष पटेल आरोप लगा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा नेता उनकी पार्टी को नजरंदाज कर रहे हैं। यद्यपि वे सरकार में साझीदार हैं। इसी तरह से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर, जो उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं, खुल कर केन्द्र तथा उत्तर प्रदेश सरकारों की आलोचना कर रहे हैं और वह गाजीपुर में प्रधानमंत्री कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे, जहां से वह संबंधित हैं।

शिवसेना भी केन्द्र के साथ-साथ महाराष्ट्र की भाजपा सरकार की भी आलोचना कर रही है और भाजपा को गठबंधन छोडऩे की धमकी दे रही है लेकिन अभी तक उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल के साथ-साथ महाराष्ट्र मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं दिया है। भाजपा द्वारा पांच राज्य हारने के बाद वे केवल जहां तक हो सके सौदेबाजी करने का प्रयास कर रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन
तीन राज्यों में विजय प्राप्त करने के पश्चात कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बसपा तथा सपा के व्यवहार तथा चुप्पी को लेकर चिंतित है और राज्य में इसे लेकर कई तरह की विरोधाभासी अफवाहें फैल रही हैं। दरअसल वर्तमान में कांग्रेस, सपा तथा बसपा के बीच किसी भी तरह का कोई वार्तालाप या विचारों का आदान-प्रदान नहीं है। तीन कांग्रेस मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोहों से मायावती तथा अखिलेश की अनुपस्थिति उनके अक्खड़ व्यवहार को दर्शाती है। अखिलेश की अनुपस्थिति केवल मायावती के साथ एकजुटता दिखाने के लिए थी जिसके बाद अखिलेश ने अपने एकमात्र चुने गए विधायक को मध्य प्रदेश की मंत्रिपरिषद में शामिल न करने के लिए अपनी नाराजगी प्रकट की। हालांकि सपा ने कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दिया है। बसपा प्रमुख मायावती ने भी घोषणा की है कि उनके दो विधायक मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार का समर्थन करेंगे। 

इस बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव भी मायावती तथा अखिलेश को मिलने और उन्हें संघीय मोर्चे में शामिल होने के लिए मनाने का प्रयास कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, जिनके यू.पी.ए. की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के साथ मधुर संबंध हैं, ने के. चन्द्रशेखर राव से मिल कर संघीय मोर्चे बारे चर्चा की लेकिन उन्होंने संघीय मोर्चे में शामिल होने संबंधी अपना कोई इरादा जाहिर नहीं किया मगर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के राज्याध्यक्ष टी.एम.सी. के साथ समझ बनाने को उत्सुक नहीं हैं। कर्नाटक में यद्यपि कांग्रेस के राज्य नेता जनता दल सैकुलर को अधिक सीटें नहीं देना चाहते परन्तु केन्द्रीय नेतृत्व राज्य में जद (एस) के साथ अपने गठबंधन में गड़बड़ी पैदा करना नहीं चाहता। 

गठबंधन बनाने का मुख्य संकट उत्तर प्रदेश में है, जहां सपा, बसपा कांग्रेस को लेकर 8 सीटें देना चाहती हैं, जिनमें दो सीटें वे शामिल हैं जहां से यह जीती हैं तथा 6 वे सीटें जहां 2014 के लोकसभा चुनावों में यह दूसरे स्थान पर रही, जबकि कांग्रेस अधिक सीटें चाहती है। इस बीच बसपा तथा सपा उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय लड़ाई नहीं चाहतीं इसलिए राजनीतिक समीक्षक यह दावा कर रहे हैं कि कम से कम कांग्रेस झारखंड, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में सपा-बसपा गठबंधन को कुछ सीटें देगी तथा 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ लडऩे के लिए एक मजबूत राष्ट्रीय विपक्ष हेतु उत्तर प्रदेश में अधिक सीटें लेगी। 

भाजपा की राजस्थान में लोकसभा चुनावों की तैयारी
गत लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राजस्थान में सभी 25 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार राज्य में वे 15 सीटों का लक्ष्य रख रहे हैं, जिसके लिए वे योजना बना रहे हैं क्योंकि यहां उनको हालिया विधानसभा चुनावों में पराजय मिली है। यद्यपि पराजय के लिए भाजपा वसुंधरा राजे को दोष देना चाहती है लेकिन कोई भी इसके लिए आगे आना नहीं चाहता। ऐसी स्थिति तब आई थी जब भाजपा राजस्थान में उपचुनावों के दौरान दो सीटें हार गई थी और पार्टी उच्चकमान ने फीडबैक के लिए राजस्थान में पर्यवेक्षकों को भेजा था, जिन्होंने खुल कर वसुंधरा राजे तथा उनकी सरकार की कार्यप्रणाली को दोष दिया था लेकिन उच्चकमान ने वसुंधरा राजे के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखाई थी, लेकिन उच्चकमान ने राज्याध्यक्ष को बदल कर उनकी जगह नए राज्याध्यक्ष के तौर पर अशोक परनामी की नियुक्ति कर दी। वर्तमान में वह भी चुनाव हार गए। 

विधानसभा चुनावों से पहले केन्द्रीय उच्चकमान द्वारा भेजे गए केन्द्रीय पर्यवेक्षक प्रकाश जावड़ेकर ने अपनी रिपोर्ट दी थी कि विधानसभा चुनावों में भाजपा केवल 50 सीटें जीत सकती है और अब वसुंधरा राजे के समर्थक दावा कर रहे हैं कि यह पूर्व मुख्यमंत्री की कड़ी मेहनत ही थी जो पार्टी इस संकट की घड़ी में 73 सीटें जीत सकी हैं। राजस्थान में पार्टी कार्यकत्र्ताओं तथा नेताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए अब भाजपा किसी न किसी के सिर दोष मढऩे का प्रयास कर रही है। 

भाजपा का ‘किसान सम्पर्क अभियान’ 
2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 42 सीटों में से 22 सीटें प्राप्त करने का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु अदालती आदेश के कारण रथयात्रा कार्यक्रम असफल होने के बाद भाजपा ने किसानों से मिलने का एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें टी.एम.सी. सरकार तथा उसकी किसान विरोधी नीतियों का पर्दाफाश किया जाएगा। ऐसी योजना थी कि एक महीने की रथयात्राओं के बाद कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में प्रधानमंत्री द्वारा एक विशाल रैली की जाएगी लेकिन चूंकि यात्राएं अभी तक शुरू नहीं हो पाईं तथा कोलकाता में रैली को भी रद्द कर दिया गया है, परिणामस्वरूप राज्य में स्थानीय भाजपा नेताओं के मनोबल में गिरावट आई है। 

भाजपा कार्यकत्र्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए राज्य नेतृत्व ने ‘किसान सम्पर्क अभियान’ की योजना बनाई है जिसमें भाजपा कार्यकत्र्ता तथा राज्य के नेता तृणमूल सरकार की खराब नीतियों की परेशानियों तथा बुरी स्थिति बारे उनको जानकार करवाएंगे। इसके साथ ही राज्य नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल में ‘लोकतंत्र की हत्या’ के विरोध में 3 जनवरी को एक राज्यव्यापी कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय किया है। इसी समय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह दावा कर रही हैं कि पश्चिम बंगाल के किसान अन्य राज्यों के किसानों के मुकाबले कहीं बेहतर हैं तथा केन्द्र सरकार की नीतियां किसान विरोधी हैं। 

भाजपा टिकट के चाहवान
नैनीताल से लोकसभा सांसद भगत सिंह कोशियारी द्वारा उच्चकमान को यह सूचित करने के बाद कि वह 2019 में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे, उत्तराखंड भाजपा में टिकटों के लिए आंतरिक लड़ाई शुरू हो गई है। यद्यपि बढ़ती उम्र के कारण भुवन चन्द्र खंडूरी तथा कोशियारी को स्वास्थ्य समस्याएं हैं इसलिए पौड़ी तथा नैनीताल की सीटें खाली रहेंगी तथा नए उम्मीदवारों को लोकसभा चुनाव लडऩे का अवसर दिया जाएगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का बेटा शौर्य डोभाल पौड़ी से लोकसभा चुनाव लडऩा चाहता है, जबकि भाजपा के राज्याध्यक्ष अजय भट्ट नैनीताल से चुनाव लडऩा चाहते हैं। खंडूरी चाहते हैं कि उनकी सीट उनकी बेटी रितु खंडूरी को दी जाए,जबकि तीरथ सिंह रावत तथा कर्नल कोठियाल भी पौड़ी से टिकट चाहते हैं। 

वर्तमान में तीरथ सिंह रावत हिमाचल प्रदेश के प्रभारी हैं और हिमाचल प्रदेश में पार्टी कार्यों में व्यस्त हैं। सतपाल महाराज भी पौड़ी से लडऩा चाहते हैं। टीहरी में विजय बहुगुणा चाहते हैं कि उनके बेटे साकेत को टिकट मिले। इस समय महारानी राज्य लक्ष्मी टीहरी से सांसद हैं। नैनीताल से बाची सिंह रावत तथा बिशन सिंह चुफाल भी दौड़ में हैं लेकिन कोशियारी बाची सिंह के खिलाफ हैं। इस बीच कांग्रेस में हरीश रावत ने अभी तक अपनी सीट का खुलासा नहीं किया है कि वह हरिद्वार से लड़ेंगे या नैनीताल से। पिछली बार हरीश रावत की पत्नी हरिद्वार में रमेश पोखरियाल से हार गई थीं।-राहिल नोरा चोपड़ा

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