लोकसभा चुनावों में ‘किंग-मेकर’ होंगे क्षेत्रीय दल

Edited By ,Updated: 06 Feb, 2019 12:21 AM

regional party will be  king maker  in lok sabha elections

आने वाले लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय दल ‘किंग-मेकर’ होंगे। यहां तक कि न्यूयार्क टाइम्स ने भी कहा है कि ‘अधिकतर समीक्षकों का मानना है कि न तो मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी और न ही इंडियन नैशनल कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलेगा। इसका अर्थ यह है कि...

आने वाले लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय दल ‘किंग-मेकर’ होंगे। यहां तक कि न्यूयार्क टाइम्स ने भी कहा है कि ‘अधिकतर समीक्षकों का मानना है कि न तो मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी और न ही इंडियन नैशनल कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलेगा। इसका अर्थ यह है कि क्षेत्रीय तथा जाति आधारित पार्टियां सम्भवत: किंग-मेकर बनेंगी...।’

जबरदस्त ‘मोदी लहर’ के बावजूद 2014 में क्षेत्रीय दलों की संयुक्त ताकत 212 सीटों की थी, जो यह दर्शाता है कि उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनकी मत हिस्सेदारी भी लगभग बराबर थी। ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल), नवीन पटनायक (ओडिशा) तथा जे. जयललिता (तमिलनाडु) जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की अपने-अपने राज्यों पर मजबूत पकड़ रही है।

भाजपा को इन दलों के साथ लडऩे में सम्भवत: कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। एक रणनीति के तहत पार्टी को उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन का सामना करना पड़ेगा, बिहार में इसने राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन का सामना करने के लिए जनता दल (यूनाइटिड) से गठजोड़ किया है और अब यह पश्चिम बंगाल और ओडिशा में विस्तार करने का प्रयास कर रही है तथा तेलंगाना राष्ट्र समिति व वाई.एस.आर. कांग्रेस के साथ-साथ तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के साथ चुनाव बाद गठबंधन के लिए प्रतीक्षा कर रही है।

कांग्रेस के साथ भाजपा की सीधी लड़ाई आसान होगी
दिलचस्प बात यह है कि राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों का सामना करने की बजाय कांग्रेस के साथ सीधी लड़ाई सम्भवत: भाजपा के लिए आसान होगी। कांग्रेस का सामना करना केवल ‘कांग्रेस को कोसना’ हो सकता है लेकिन इसे तेलुगु देशम पार्टी, वाई.एस.आर. कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बीजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक तथा अन्नाद्रमुक जैसे विभिन्न क्षेत्रीय दलों के लिए अलग कथानकों की जरूरत होगी, जिन्होंने भाजपा के राष्ट्रवादी कथानक का मुकाबला करने के लिए अपने क्षेत्रीय कथानक तैयार कर लिए हैं।

दक्षिण में, जहां क्षेत्रीय दलों की अच्छी पकड़ है, मोदी लहर के बावजूद वहां भाजपा महज 22 सीटें जीत सकी। दक्षिणी राज्यों में इसका कोई सहयोगी नहीं है। जयललिता तथा करुणानिधि के बाद भाजपा का अन्नाद्रमुक व द्रमुक के साथ गठबंधन बनाने का प्रयास अभी तक असफल रहा है, हालांकि अब अन्नाद्रमुक के साथ गठजोड़ होने की सम्भावना बन रही है। केरल यू.डी.एफ. तथा एस.डी.एफ. के बीच झूलता रहता है जबकि आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना क्षेत्रीय क्षत्रपों की पकड़ में हैं।

80 के दशक में जाति, धर्म तथा क्षेत्रवाद के आधार पर जातिवादी पहचान की राजनीति के उभरने के बाद से क्षेत्रीय दलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। वे 4 प्रमुख मुद्दों पर काम करते हैं-स्वायत्तता (नैशनल कांफ्रैंस जैसे दल), राज्य का दर्जा (पहले तेलंगाना और अब आम आदमी पार्टी), पहचान (शिवसेना) तथा विकास। आमतौर पर अपने उभार के लिए वे इनमें से दो या अधिक को शामिल कर लेती हैं।

क्षेत्रीय दलों की वृद्धि के कारण
क्षेत्रीय दलों की वृद्धि के पीछे कई कारण हैं जैसे कि राष्ट्रीय दलों के साथ मोहभंग, विकास के लिए तड़प, मजबूत क्षेत्रीय नेताओं का उभार तथा भावनात्मक मुद्दे, जो जनता का ध्यान आकर्षित करते हैं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बिहार तथा तेलंगाना जैसे कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल विकास तथा प्रशासन के मुद्दों पर ध्यान देकर उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करने में सफल रहे हैं। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक अथवा द्रमुक नीत सरकारों ने जनस्वास्थ्य की दिशा में अच्छी कारगुजारी दिखाई है। ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश में राज्य सरकारों ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में अच्छा काम किया है।

गत दो दशकों के दौरान इन क्षेत्रीय दलों की मत हिस्सेदारी बढ़ी है। यहां तक कि तेलंगाना तथा मिजोरम के हालिया विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय दल ही थे, जिन्होंने अच्छी कारगुजारी दिखाई, गैर-भाजपा तथा गैर-कांग्रेस दलों की बड़ी उपस्थिति से राज्यों में 2014 के बाद का रुझान स्पष्ट दिखाई देता है। इसके साथ ही भाजपा जिन अधिकतर राज्य विधानसभा चुनावों में हारी है, वे क्षेत्रीय दलों के हाथों में हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि 2019 के चुनावों में क्षेत्रीय दल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

क्षेत्रीय दलों की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा
दिलचस्प बात यह है कि कुछ राजनीतिक दलों की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं भी हैं। जहां आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू एक राष्ट्रीय भाजपा विरोधी मोर्चे के लिए काम कर रहे हैं, वहीं उनके नापसंदीदा के.चन्द्रशेखर राव का लक्ष्य भाजपा से लडऩे के लिए गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस दलों का एक संघीय मोर्चा बनाना है।

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन राज्य में भाजपा को चोट पहुंचा सकता है। उन्होंने हालिया लोकसभा तथा विधानसभा उपचुनाव मिलकर लड़े हैं, जिनके शानदार परिणाम आए। इसके महत्व का एहसास करते हुए कांग्रेस कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ कर रही है। कम से कम 5 प्रमुख राज्यों-गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा हरियाणा में भाजपा तथा कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई होगी, जबकि अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दल अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करेंगे।

कांग्रेस ने उनमें से कुछ के साथ गठबंधन किया है। इनमें महाराष्ट्र (राकांपा), केरल (यू.डी.एफ.), कर्नाटक (जद (एस), जम्मू-कश्मीर (नैकां), तमिलनाडु (द्रमुक), बिहार (राजद) तथा झारखंड (झामुमो) शामिल हैं। आने वाले लोकसभा चुनावों में निचले सदन में 272 का आंकड़ा पार करने हेतु कांग्रेस तथा इसके सहयोगियों के लिए अच्छी कारगुजारी दिखाना महत्वपूर्ण है।

यदि लोकसभा चुनावों के दौरान ये गठबंधन बने रहते हैं तो परिणाम 2014 के चुनावों से काफी अलग होंगे। अपना महत्व जानते हुए क्षेत्रीय दल भी अपनी-अपनी तैयारी कर रहे हैं, हालांकि केवल कांग्रेस तथा भाजपा 50 सीटों का आंकड़ा पार कर सकती हैं। यह स्पष्ट है कि भाजपा के लिए विजयी आंकड़ा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी इन क्षेत्रीय दलों से कैसे निपटती है क्योंकि वे मुख्य चुनौतीदाता हैं। उनके साथ लडऩे के लिए इसे आवश्यक रूप से राज्य आधारित रणनीति बनानी होगी।
     --- कल्याणी शंकर

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!