आश्रम, अखाड़ा, मठ का अपराधीकरण रोकना ही धर्म

Edited By ,Updated: 25 Sep, 2021 05:14 AM

religion is the only way to stop criminalization of ashram arena math

हिंदू धर्म बहुत प्राचीन, सनातन और जीवन शैली के रूप में जाना जाता है। यह धर्म सहनशील, परोपकारी, दयावान, मैत्री और सद्भाव का पोषक तथा मनुष्य की पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। सभी धर्मों की भांति इसमें भी भाईचारे, मिलजुल कर रहने और दूसरों का सम्मान...

हिंदू धर्म बहुत प्राचीन, सनातन और जीवन शैली के रूप में जाना जाता है। यह धर्म सहनशील, परोपकारी, दयावान, मैत्री और सद्भाव का पोषक तथा मनुष्य की पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। सभी धर्मों की भांति इसमें भी भाईचारे, मिलजुल कर रहने और दूसरों का सम्मान तथा बराबर का स्थान देने की बात कही गई है। 

यहां तक तो ठीक है, लेकिन जब धर्म को कारोबार का जरिया बना दिया जाता है तो उसमें वे सभी दोष आ जाते हैं जो किसी भी व्यापार के गुण माने जाते हैं, जिसमें प्रतियोगिता, दूसरे की हानि, झूठ-फरेब, बेईमानी, धोखाधड़ी, हेराफेरी, कालाबाजारी, जमाखोरी, मिलावट जैसी चीजों को जरूरी समझा जाता है। इसे ही धर्म का व्यापार और उसका अपराधीकरण कहा जाता है। 

संन्यास और वैराग्य : हिंदू धर्म में चार आश्रम अर्थात ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास को जीवन जीने के तरीके के रूप में अपनाने की बात कही गई है। यहां हम केवल संन्यास की बात करना चाहते हैं क्योंकि इसे लेकर समाज में जो गंदगी फैलती है उसे जानना और साफ करना आवश्यक है। वास्तविक संन्यासी के मन में व्यक्तिगत स्वार्थ के स्थान पर ‘सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय’ की भावना रहती है। पद, धन, सुविधाओं से भरपूर जीवन का महत्व न होकर सामान्य जन, समाज और देश की उन्नति का कार्य प्रमुख रहता है। ऐसे व्यक्ति क्रोध, हिंसा, भय, अहंकार से बचते हुए सादा जीवन जीने का प्रयास करते रहते हैं। इसके विपरीत ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक होती है जो संन्यासी का चोला इसलिए ओढ़ते हैं ताकि वे इस रूप में लोगों को भरमा सकें, उनकी श्रद्धा, आस्था, विश्वास के साथ छल कर उनका शोषण कर सकें और व्यक्तिगत रूप से अकूत धन संपदा, जमीन-जायदाद बना सकें। 

आदि शंकराचार्य की विरासत : श्री आदि शंकराचार्य ने भारत में अध्यात्म, वेदांत, नैतिकता और ङ्क्षहदुत्व को मजबूत करने व स्वयं को पहचानने की ऐसी परंपरा का श्रीगणेश किया कि आज तक उनके योगदान को याद किया जाता है। उन्होंने अनेक बार पूरे देश का भ्रमण किया, अनेक ग्रंथों की रचना की और अद्वैत दर्शन की व्याख्या की। इस कड़ी में उत्तर में जोशीमठ, दक्षिण में शृंगेरी, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारका में मठ स्थापित किए। आज जो सारे देश में विभिन्न स्थानों पर मठ, आश्रम, अखाड़ों आदि के रूप में हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक संगठन दिखाई देते हैं, उनका श्रेय आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों को दिया जाता है। 

धर्म का कारोबार : समय के साथ इनमें से अधिकांश संगठन वैभव, विलासिता, अकूत संपत्ति जमा करने के साधन बनते गए। इसी के साथ राजनीति पर भी इनका असर दिखाई देने लगा। अगर किसी दल या उम्मीदवार को जीत हासिल करनी है तो इन आश्रमों, मठों, अखाड़ों आदि का आशीर्वाद देने के नाम पर समर्थन और चुनाव के लिए धन तथा अन्य साधन जुटाने के लिए इस्तेमाल होने लगा। करोड़ों, अरबों, खरबों की संपत्ति इनके पास आ गई जिस पर सरकार की निगाह होते हुए भी उसने कोई ऐसा कानून, नियम, कायदा लागू नहीं किया जिससे यह पता लगाया जा सके कि यह विशाल संपदा कितनी है, किस के नाम पर है और कहां से आई है? धार्मिकता की आड़ लेकर ये संगठन व्यापार का केंद्र बनते चले गए और इनमें ऐसे लोग शामिल ही नहीं बल्कि हावी हो गए जिनकी समाज कल्याण, परोपकार जैसी चीजों में कोई रुचि न होकर केवल शुद्ध व्यापार करने की भावना थी। 

इसका परिणाम यह हुआ कि इन स्थानों पर कब्जा करने और किसी भी प्रकार से उसे बनाए रखने का  सिलसिला शुरू हो गया। इनमें भ्रष्टाचार, अनैतिकता से लेकर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए हत्या तक करने की घटनाएं आम हो गईं। इनमें धर्म, शुचिता, पवित्रता, नैतिकता, शुद्ध आचरण, विरक्ति, वैराग्य, सांसारिक वस्तुओं से मोह न रखने जैसी बातें न होकर षड्यंत्र रचने, विलासितापूर्ण जीवन जीने और अपने अनुयायियों के बल पर किसी से भी कैसा भी मोलभाव करने की प्रवृत्ति शुरू हो गई। अब  हालत यह है कि प्रतिदिन ऐसे खुलासे होते हैं जिन पर यकीन नहीं होता लेकिन वे सत्य और वास्तविक हैं। इन सभी धार्मिक स्थलों, जिनमें मंदिर भी सम्मिलित हैं, पर बहुत वर्ष पहले आई एक फिल्म का यह गाना चरितार्थ होता हुआ दिखाई देता है: ‘चल संन्यासी मंदिर में, तेरा चिमटा मेरी चूडिय़ां दोनों हम बजाएंगे, साथ साथ हम गाएंगे’। 

समय की मांग : वर्तमान परिस्थितियों में क्या सामान्य जन द्वारा यह आवाज उठाने का समय नहीं आ गया है कि ऐसे धार्मिक संगठनों और उनके पास एकत्रित धन-संपत्ति की जांच-पड़ताल हो और इन्हें सरकार द्वारा अपने कब्जे में लेकर इस सब को जनता की सुविधा के लिए शिक्षा, चिकित्सा, सामुदायिक विकास और देश के लिए वैज्ञानिक शोध संस्थान बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाए? इसके लिए सरकार से कोई पहल करने की उम्मीद रखना भ्रम पालना होगा क्योंकि इन सब को यदि सरकार का संरक्षण न मिला होता तो आज यह हालत होती ही नहीं। इसलिए जरूरी यह है कि जनता की ओर से आवाज उठे, इसके लिए चाहे बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों को आंदोलन करना पड़े, जो इन संगठनों और इनके संचालकों की असलीयत जानते हैं और इससे अधिक इनके बहकावे में आकर अपनी संपत्ति गंवा बैठे हैं, अनाचार व शोषण का शिकार हुए हैं लेकिन संगठित न होने की वजह से कोई कदम न उठाने के लिए विवश हैं।-पूरन चंद सरीन

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