ब्रिटेन में बढ़ती ‘बेरोजगारी’ व ‘मकानों की चढ़ती कीमतें’

Edited By ,Updated: 17 Oct, 2020 02:46 AM

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ब्रिटेन इस वक्त एक तरफ तो कोरोना वायरस से बुरी तरह पीड़ित है, सरकार किसी-न-किसी तरह उस पर काबू पाने के लिए छटपटा रही है। बेरोजगारी चिंताजनक स्तर पर तेजी से बढ़ रही है दूसरी तरफ आश्चर्य की बात है कि मकानों की कीमतें इतनी तीव्र गति से उछलती-कूदती ऊपर...

ब्रिटेन इस वक्त एक तरफ तो कोरोना वायरस से बुरी तरह पीड़ित है, सरकार किसी-न-किसी तरह उस पर काबू पाने के लिए छटपटा रही है। बेरोजगारी चिंताजनक स्तर पर तेजी से बढ़ रही है दूसरी तरफ आश्चर्य की बात है कि मकानों की कीमतें इतनी तीव्र गति से उछलती-कूदती ऊपर चढ़ती जा रही हैं कि  उनमें इतना उछाल पिछले 16 वर्षों में कभी नहीं देखा गया था। ताजा आंकड़ों से पता चला है कि जायदाद की कीमतों में जुलाई के मुकाबले में अगस्त-सितम्बर के दौरान 1.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिससे मकानों का औसत मूल्य 245,000 पौंड को छू गया है। पिछले वर्ष के मुकाबले में यह 5.2 प्रतिशत ज्यादा है। 

इस वृद्धि के कई कारण बताए जा रहे हैं, मुख्यत: वित्त मंत्री ऋषि सूनक का वह एक साहसी फैसला जिसने मकानों की मांग बढ़ा दी है। 500,000 पौंड तक की कीमत की सम्पत्ति खरीदने पर लगी भारी स्टाम्प ड्यूटी को उन्होंने अगले मार्च महीने तक माफ कर दिया है ताकि सम्पत्ति मार्कीट में चल रहे मंदे को खत्म करके देश की आर्थिक स्थिति में गति लाई जा सके। दूसरा कारण यह कि इस वक्त ब्याज-दर बहुत ही सस्ती है। मकान खरीदने के लिए बैंक और बिल्डिंग सोसाइटियां आसानी से सम्पत्ति के बदले कर्ज दे रही हैं। इस स्थिति का फायदा उठाने के इच्छुक लोगों की संख्या बढ़ रही है। मालिक मकान अपनी जायदादों के ऊपर और ज्यादा कर्ज उठा कर नई जायदादें खरीद रहे हैं। 

उन्होंने जो जायदादें पहले खरीदी थीं उनकी कीमत आज के मुकाबले में बहुत कम थी और सम्पत्ति के बदले ब्याज-दर आज के मुकाबले में बहुत ज्यादा। इस बीच मकानों की कीमत काफी ज्यादा ऊपर जा चुकी है और मकान खरीदते वक्त जितना कर्ज उठाया गया था वह अगर सारे का सारा नहीं तो कम-से-कम उसका बहुत भारी भाग वापस चुकाया जा चुका है। जिससे पुराने मकान मालिकों के हाथ में अब अपनी वर्तमान जायदाद की बढ़ी हुई कीमतों के रूप में भारी मात्रा में फालतू पूंजी है जिससे री-मॉर्गेज हासिल करना आसान है। वे नई जायदादें खरीद रहे हैं जिससे मकानों की मांग बढ़ रही है। 

किराएदार युवक-युवतियां 
घरों से काम करने वालों की अधिकतर संख्या किराए पर रहने वाले उन युवक-युवतियों की है जो दूर या नजदीक से यात्रा करके दफ्तर और अपने कार्यस्थलों पर पहुंचा करते थे। चूंकि अब उन्हें घर से काम करना होता है, उनकी उपस्थिति मकान में रह रहे अन्य सदस्यों के लिए घुटन का कारण बन रही है। इसलिए कहा जा रहा है कि इस समस्या से बचने के लिए उन्हें अपने लिए अलग मकान खरीदने पड़ेंगे जिससे जायदादों की मांग और कीमत और बढ़ेगी। 

प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने युवाओं की इस ‘किराएदार नस्ल’ को मकान मालिकों में परिवर्तित करने के निश्चय की घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि शीघ्र ऐसी योजना शुरू की जाएगी जिससे किराएदार युवक-युवतियों तथा किराएदारों के अन्य वर्गों को पहली बार मकान खरीदने के लिए 95 प्रतिशत मॉर्गेज मिल सकेगी।-लंदन से कृष्ण भाटिया
 

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