राबर्ट वाड्रा मामला खट्टर सरकार के लिए ‘ब्रह्मा’ साबित हो सकता है

Edited By Pardeep,Updated: 13 Sep, 2018 04:22 AM

robert vadra case can prove to be brahma for the khattar government

2014 के संसदीय चुनावों के लिए प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित शायद ही कोई ऐसी चुनावी रैली होगी जिसमें तत्कालीन यू.पी.ए. प्रमुख सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के कथित जमीन घोटाले में शामिल होने बारे जिक्र न किया गया हो। कांग्रेस...

2014 के संसदीय चुनावों के लिए प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित शायद ही कोई ऐसी चुनावी रैली होगी जिसमें तत्कालीन यू.पी.ए. प्रमुख सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के कथित जमीन घोटाले में शामिल होने बारे जिक्र न किया गया हो। कांग्रेस को कमजोर करने के लिए वाड्रा को भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद के चेहरे के तौर पर चित्रित किया गया। 

जहां वाड्रा उस सौदे, जिसमें उन्हें डी.एल.एफ. के साथ फंसाया जा रहा है, में कुछ भी गलत होने से इंकार करते रहे हैं, वहीं भाजपा नेताओं ने दोषी को सजा दिलवाने की कसम खाई है। न केवल इस ‘घोटाले’ में बल्कि उन सभी को जो एक दशक लम्बे यू.पी.ए. शासनकाल के दौरान कई कथित घोटालों में शामिल रहे हैं। 

ऐसा माना जाता था कि भाजपा नीत राजग सरकार वाड्रा को अपने पहले निशानों में से एक बनाएगी और सौदे में समयबद्ध जांच का आदेश देगी। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मनोहर लाल खट्टर नीत हरियाणा की भाजपा सरकार ने वाड्रा तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के खिलाफ मामला दर्ज करने में 4 साल से अधिक का समय लगा दिया। संसद के साथ-साथ हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी जहां केवल कुछ महीने बचे हैं, सरकार ने मामले में शिकायतकत्र्ता के तौर पर एक ‘जमीर’ वाला व्यक्ति खोज लिया। स्पष्ट तौर पर इसका समय संदिग्ध है तथा उद्देश्य चुनावों से पहले मामले को उछाले रखना दिखाई देता है। यह ‘ब्रह्मास्त्र’ हो सकता है, जिसे सम्भवत: खट्टर सरकार ने उचित समय पर इस्तेमाल करने के लिए रख छोड़ा है। 

वाड्रा के अतिरिक्त सोनिया गांधी, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, डी.एल.एफ. तथा ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 420 (धोखाधड़ी), 467, 468 व 471 (जालसाजी) तथा भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 के अन्तर्गत एफ.आई.आर. दर्ज की गई है। पुलिस ने जिस तरह तत्परता दिखाई वह एफ.आई.आर. दर्ज करने से झलकता है। पुलिस रिकाडर््स के अनुसार शिकायत एक सितम्बर को सुबह लगभग 10 बजे दर्ज करवाई गई और पुलिस ने दोपहर बाद एफ.आई.आर. दर्ज करने में बहुत कम समय गंवाया। मामले के सफेद तथ्य ये हैं कि वाड्रा की कम्पनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से मानेसर के नजदीक शिकोहपुर गांव में लगभग 3.5 एकड़ जमीन करीब 7.5 करोड़ रुपए में खरीदी। स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी द्वारा दिया गया 7.5 करोड़ रुपए का चैक ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज ने कभी भी नहीं भुनाया और इसे एक ‘स्वीट डील’ मान लिया गया। 

कुछ महीनों बाद वही जमीन रियल एस्टेट जायंट डी.एल.एफ. को 58 करोड़ रुपए की बड़ी कीमत पर बेच दी गई। अंतरिम काल में जमीन के दर्जे में जो एकमात्र अंतर था वह यह कि जमीन कृषि भूमि थी और ‘कमॢशयल कालोनी’ के रूप में विकसित करने के लिए इसका इस्तेमाल करने संबंधी दर्जा बदलने हेतु हुड्डा सरकार ने आज्ञा प्रदान की थी। प्रत्यक्ष रूप से जमीन के इस्तेमाल संबंधी बदलाव (सी.एल.यू.) बारे आज्ञा ने सारा अंतर पैदा किया। घटनाक्रम यह संकेत देते हैं कि वाड्रा ने हुड्डा से सम्पर्क किया होगा, जो गांधी परिवार के ऋण के नीचे दबे थे क्योंकि उन्हें पुराने दिग्गज राजनीतिज्ञ भजन लाल की बजाय मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था और उन्होंने बिना किसी उद्यम अथवा जांच के आज्ञा दे दी होगी। 

यद्यपि खट्टर सरकार ने इस मामले में नर्म रवैया अपनाए रखा और कोई कार्रवाई शुरू नहीं की। यह केवल गत सप्ताह नींद से जागी जब इसने गुरुग्राम स्थित एक मैडीकल शॉप के मालिक द्वारा दायर शिकायत का संज्ञान लिया, जिसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि बारे अधिक जानकारी नहीं है। शिकायतकत्र्ता सुरिन्द्र शर्मा हरियाणा के नूंह जिला के रथिवास गांव का रहने वाला है, यद्यपि शिकायत गुरुग्राम जिला की मानेसर तहसील से संबंधित है। वह खुद के एक ‘सामाजिक कार्यकत्र्ता’ होने का दावा करता है और लगभग 10 एकड़ जमीन का मालिक है। शिकायत, जो एफ.आई.आर. का हिस्सा है, में शर्मा ने आरोप लगाया है कि ‘आरोपी ने प्रभावशाली बिल्डरों, मंत्रियों तथा शीर्ष सरकारी अधिकारियों, जिन्होंने अपने पदों का दुरुपयोग किया, के साथ षड्यंत्र रच कर 5000 करोड़ रुपए का घोटाला किया।’ उसने कहा कि 2008 में हुए सौदे से ‘सरकारी खजाने को बहुत बड़ा नुक्सान’ हुआ है। 

शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि वाड्रा तथा हुड्डा ने डी.एल.एफ. की अन्य तरीकों से भी मदद की जैसे कि वजीराबाद के नजदीक 350 एकड़ जमीन का ‘गलत’ आबंटन। मामले में तथ्यों के मद्देनजर ऐसा दिखाई देता है कि इसमें नामित आरोपी संकट में फंस सकते हैं। हालांकि ऐसे मामलों में काफी लम्बा समय लगता है। जहां संसद के साथ-साथ हरियाणा विधानसभा के चुनाव अगले वर्ष होने हैं, इस मामले को उठाने का समय महत्वपूर्ण है। आने वाले चुनावों में इसके प्रमुख मुद्दों में से एक बनने की संभावना है।-विपिन पब्बी

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