Edited By ,Updated: 02 Feb, 2019 01:08 AM
भाई 500 रुपए की पैनल्टी तो सरकार हम पर लगा दे, हम ही भर देंगे’। यह थी मोदी सरकार की नवीनतम व एक और ‘ऐतिहासिक’ प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पर एक किसान महिला की पहली प्रतिक्रिया। हर साल की तरह इस बार भी मैं किसानों और किसान कार्यकर्ता साथियों...
‘भाई 500 रुपए की पैनल्टी तो सरकार हम पर लगा दे, हम ही भर देंगे’। यह थी मोदी सरकार की नवीनतम व एक और ‘ऐतिहासिक’ प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पर एक किसान महिला की पहली प्रतिक्रिया। हर साल की तरह इस बार भी मैं किसानों और किसान कार्यकर्ता साथियों के साथ बजट सुनने और अपनी प्रतिक्रिया सुनाने के लिए एक गांव में बैठा था। गांव की महिला जानना चाहती थी कि सरकार ने ऐसी क्या घोषणा कर दी है, जिस पर टी.वी. वाले मुझसे सवाल पूछ रहे हैं? मैंने बताया कि सरकार उनके परिवार को सम्मान के बतौर सालाना 6,000 रुपए यानी हर महीने 500 रुपए देगी। शॉल के कोने को मुंह को दबाए उसकी हंसी और सरकार को ही 500 रुपए देने के उसके प्रस्ताव ने सरकारी दावे की कलाई खोल दी।
अगर परिवार के पास 5 एकड़ जमीन है और 2 फसल उगाता है तो इसका मतलब होगा प्रति एकड़ प्रति फसल 600 रुपए का अनुदान, जबकि किसी भी फसल की लागत 15,000 से 20,000 से कम नहीं होती। अगर 5 प्राणी का परिवार है तो इसका मतलब होगा प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 3 रुपए 30 पैसे। आजकल तो इतने में गांव में भी चाय नहीं मिलती।
कदम पहले उठाया जाता
टी.वी. एंकर पूछ रहे थे, ‘‘चलिए कुछ तो किसान को मिला। क्या इसे सही दिशा में छोटा कदम ही मानें? और कुछ नहीं तो डूबते को तिनके का सहारा ही सही।’’ काश मैं उनसे सहमत हो पाता। अगर सरकार ने यह कदम अपने आप पहले एक-दो साल में उठा लिया होता, धीरे-धीरे राशि बढ़ाने का वायदा किया होता तो यही मेरी प्रतिक्रिया होती। लेकिन 5 साल के छठे बजट में चुनावी हार का सामना कर रही सरकार द्वारा फैंके अंतिम पांसे के बारे में यह राय नहीं बनाई जा सकती। आखिर पूजा में मिली धोती और भागते भूत की लंगोटी में अंतर तो है न। डूबते को तिनके का सहारा वाली बात कुछ सही है लेकिन यहां डूबते का मतलब किसान नहीं बल्कि मोदी सरकार है।
इस घोषणा में सम्मान से ज्यादा अपमान सिर्फ इसलिए नहीं है कि इसकी राशि ऊंट के मुंह में जीरा है, असली बात इसकी राजनीतिक नीयत है। मोदी जी को लगता है कि चला-चली की बेला में किसान परिवार की झोली में कुछ फैंक कर उसका वोट झटका जा सकता है। इसलिए इस योजना को किसी सामान्य बजट की योजना की तरह नए वित्तीय वर्ष में मार्च से नहीं बल्कि पिछले दिसम्बर से लागू किया जाएगा। इरादा साफ है कि अप्रैल-मई में चुनाव से पहले किसी तरह देश के कुछ करोड़ किसान परिवारों के बैंक अकाऊंट में 2000 रुपए की पहली किस्त पहुंचा दी जाए। प्रधानमंत्री आश्वस्त हैं कि किसान का वोट खरीदा जा सकता है और वह भी सस्ते में।
सम्मान का सौदा
‘चलिए सौदा ही मान लीजिए, सवाल यह है कि किसान पट जाएगा या नहीं। आखिर तेलंगाना सरकार ने भी तो ऐसे ही सौदे के बल पर चुनाव जीत लिया था।’ मैंने समझाया कि तेलंगाना का मामला दूसरा था। वहां सरकार ने ‘रायतु बंधु’ योजना के तहत किसानों को 8,000 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से सहायता दी थी जिसे बढ़ाकर अब 10,000 रुपए प्रति एकड़ प्रतिवर्ष कर दिया गया है, यानी कि 5 एकड़ वाले किसान को 50,000 रुपए सरकारी सहायता मिलती। दूसरा, वहां सरकार ने इस योजना को चुनाव से डेढ़ साल पहले लागू करना शुरू कर दिया था।
लेकिन सबसे बड़ा अंतर यह है कि यह सौदा वह सरकार कर रही है जिसकी छवि पहले से ही किसान विरोधी बन चुकी है। चार साल तक किसानों की उपेक्षा, प्राकृतिक आपदा के समय बेरुखी, फसल की बिक्री में किसान की लूट और ऊपर से नोटबंदी की मार के लिए जिम्मेदार मोदी सरकार जब सौदा करने की कोशिश करती है तो वह किसान को अपने सम्मान का सौदा लगता है?
अब आखिरी सवाल मेरा इंतजार कर रहा था। ‘तो फिर आप के हिसाब से सरकार को इस बजट में किसान के लिए क्या घोषणा करनी चाहिए थी?’ मेरे हिसाब से सरकार को इस बजट में कोई नई घोषणा करनी ही नहीं चाहिए थी। लोकतंत्र का कायदा है कि सरकार को 5 साल का राज मिला है। वह 5 बजट पेश कर चुकी है। छठा बजट केवल लेखानुदान का बजट होता है। पिछले कुछ साल से आऊटकम बजट का चलन भी शुरू हुआ है। कायदे से इस साल सरकार को लेखानुदान के साथ अपने पिछले 5 साल के काम का विस्तृत आऊटकम बजट पेश करना चाहिए था।
किसानों के सवाल
ईमानदार होती तो सरकार को उन सवालों का जवाब देना चाहिए था जो किसान पूछ रहे हैं: सरकार ने घोषणा की थी कि 6 साल में किसान की आमदनी को दोगुना कर दिया जाएगा, अब उसकी आधी अवधि बीतने पर किसान की आमदनी कितनी बढ़ी है? ताम-झाम के साथ प्रधानमंत्री आशा के नाम से शुरू हुई योजना के तहत किसानों के दाने-दाने को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के वायदे का क्या हुआ? प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत आने वाले किसानों की संख्या बढऩे की बजाय घट क्यों रही है? प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का फायदा किसानों को मिला या प्राइवेट बीमा कम्पनियों को? सरकार को सिर्फ गौमाता की चिंता है या कि गौपालक किसान की भी? आवारा पशुओं की समस्या से पीड़ित किसान के लिए भी कोई योजना क्यों नहीं? पिछले 2 साल से सरकार किसान आत्महत्या के आंकड़ों को दबाकर क्यों बैठी है? इनमें से एक भी सवाल का जवाब वित्त मंत्री ने क्यों नहीं दिया?
मैं सवाल पूछते जा रहा था, पीछे से हमारे साथी नारा लगा रहे थे ‘जुमले नहीं जवाब चाहिए, 5 साल का हिसाब चाहिए!’
- योगेंद्र यादव