एस.ए. बोबडे : वकील से मुख्य न्यायाधीश तक का सफर

Edited By ,Updated: 24 Apr, 2021 04:12 AM

s a bobde journey from lawyer to chief justice

वकीलों के एक परिवार से संबंध रखने वाले 64 वर्षीय भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने बाम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बैंच से बतौर वकील अपना करियर शुरू किया था। वहां पर अतिरिक्त जज बनने से पूर्व 1998 में बोबडे सीनियर एडवोकेट मनोनीत हुए थे। उन्होंने...

वकीलों के एक परिवार से संबंध रखने वाले 64 वर्षीय भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने बाम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बैंच से बतौर वकील अपना करियर शुरू किया था। वहां पर अतिरिक्त जज बनने से पूर्व 1998 में बोबडे सीनियर एडवोकेट मनोनीत हुए थे। उन्होंने बाम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बैंच में 21 वर्षों से ज्यादा प्रैक्ट्सि की और सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य पद ग्रहण करने से पूर्व कई केस लड़े। 2012 में न्यायमूर्ति बोबडे ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। उसके अगले वर्ष उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के तौर पर कार्य किया। 

मुख्य न्यायाधीश बनने से पूर्व वह कई महत्वपूर्ण मामलों जैसे आधार कार्ड, निजता का अधिकार, बी.सी.सी.आई. विवाद तथा 500 वर्ष पुराने अयोध्या विवाद का हिस्सा भी रहे। उन्होंने 18 महीनों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला। वास्तव में बोबडे का कार्यकाल पिछले 8 वर्षों में बतौर मुख्य न्यायाधीश सबसे लम्बा सेवाकाल था। उनके कार्यकाल के दौरान विश्व ने कोविड-19 महामारी को झेला और उसके बेहद खतरनाक नतीजों ने लोगों को प्रभावित किया जिसकी किसी ने भी आशा नहीं की थी। अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय न्याय पालिका ने महामारी के कारण कई अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना किया।

भारतीय इतिहास में पहली बार कोविड मामलों के बढऩे के कारण अदालतें बंद हुईं। बोबडे के कार्यकाल के दौरान एक सबसे बड़ी चुनौती महामारी से निपटने की थी। उन्होंने तभी कहा कि, ‘‘परमात्मा कभी सोता नहीं।’’ इसी कारण मुख्य न्यायाधीश तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने वीडियो कांफ्रैंस के माध्यम से मामलों की सुनवाई करने का निर्णय किया। हालांकि ऑफ लाइन मोड को ऑनलाइन मोड में बदलने के लिए यह एक विशालकाय बात थी। मुख्य न्यायाधीश बोबडे तथा न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़  ने नया ई-फाइलिंग मॉड्यूल लांच किया जिसने शीर्ष अदालत के फाइलिंग सिस्टम को बदल कर रख दिया। 

इस बदलाव ने वकीलों को यह अनुमति दी कि वह एक केस को किसी भी समय किसी भी दिन फाइल कर सकते हैं। फिर चाहे सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री कार्य कर रही हो या न कर रही हो। इसके अलावा वकीलों के लिए यह भी आसान हुआ कि वे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष देश के विभिन्न हिस्सों से राजधानी में आए बगैर बहस कर सकते हैं। भारत में कोविड-19 के चरम स्तर के दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने लाखों प्रवासी श्रमिकों के मामले को सुना जो नंगे पांव सैंकड़ों मील की सड़क यात्रा कर रहे थे और अनेक स्थानों पर फंसे हुए थे। 

हार्ले डेविडसन के साथ खींचा गया उनका चित्र विश्व भर में देखा गया। बिना हैलमेट के बाइक चलाने के लिए उनकी आलोचना भी हुई। विवाद के बावजूद न्यायपालिका को ऊपर उठाने के उनके प्रयास प्रशंसनीय रहे। अर्नब गोस्वामी के मामले में अनुच्छेद 32 के महत्व को देखते हुए बोबडे ने यह कह कर कठोर कदम उठाया कि किसी को भी इस न्यायालय के पास जाने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि अनुच्छेद-32 अपने आप में एक मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति बोबडे ने महामारी के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज को प्रेरित किया और उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी अदालत उनके कार्यकाल के दौरान स्थापित वीडियो कांफ्रेंसिंग के मार्ग का अनुसरण करने वाली है। 

हाल ही में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए उन्होंने अपने नारीवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला कि भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के लिए अब समय आ गया है। यदि कालेजियम द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय से न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथना की समयबद्ध सिफारिश हो जाती है तो 2027 में भारत को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिल सकती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मुख्य न्यायाधीश पुनीत नहीं हैं, राष्ट्रपति ने न्यायमूर्ति रमन्ना को भारत का 48वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया है जो 24 अप्रैल को शपथ ग्रहण करेंगे। 

-वरुण चुघ 
(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)

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