शिअद : कल का ‘हीरो’ आज का ‘जीरो’

Edited By ,Updated: 02 Jul, 2020 03:37 AM

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कोई समय था, जब शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की एक आवाज पर समूचा सिख पंथ घर-बार छोड़ कुर्बानी देने केलिए मैदान में उतर आया करता था। ‘पंजाबी सूबा जिंदाबाद’ के नारे के मोर्चे से लेकर आपातकाल के विरुद्ध तक लगे मोर्चों का इतिहास इस बात का गवाह है। ऐसीस्थिति...

कोई समय था, जब शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की एक आवाज पर समूचा सिख पंथ घर-बार छोड़ कुर्बानी देने केलिए मैदान में उतर आया करता था। ‘पंजाबी सूबा जिंदाबाद’ के नारे के मोर्चे से लेकर आपातकाल के विरुद्ध तक लगे मोर्चों का इतिहास इस बात का गवाह है। ऐसीस्थिति में सवाल उठता है कि आखिर आजऐसा क्या हो गया कि अकाली नेताओं के लिए किसी बात पर मोर्चा लगाने की बात करना तो दूर रहा, कोई जलसा-जलूस तक कर पाने की बात सोचना भी दूभर हो गया है?

इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए जब अकाली राजनीति से जुड़े चले आ रहे राजनीतिज्ञों से बात की तो उन्होंने बताया कि जब प्रकाश सिंह बादल और गुरचरण सिंह टोहड़ा की जोड़ी ने शिरोमणि अकाली दल की कमान संभाली, तो उन्होंने अकाली दल पर अपनी पकड़ को बनाए रखने के लिए, दल में आरंभ से ही चली आ रही उस लोकतांत्रिक परम्परा को खत्म कर दिया, जिसके चलते आम सिखों की भावनाएं उसके साथ जुड़ी चली आ रही थीं। 

इसका परिणाम यह हुआ कि समूचा अकाली दल प्रकाश सिंह बादल और गुरचरण सिंह टोहड़ा में ही सिमट कर रह गया। उनमें से एक ने शिरोमणि अकाली दल की कमान संभाली तो दूसरे ने शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी की कमान संभाल ली। इसके साथ ही उन्होंने दल में भी दो केंद्र स्थापित कर, आपस में बांट लिए। यह स्थिति लम्बे समय तक बनी रही। उस समय इस जोड़ी में अविश्वास पैदा हुआ, जब 1999 में ज. टोहड़़ा ने प्रकाश सिंह बादल को सलाह दी कि वह पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को सुचारू रूप से निभाने के लिए, अपने किसी विश्वासपात्र को कार्यकारी अध्यक्ष बना, शिरोमणि अकाली दल की कमान उसे सौंप दें। बस फिर क्या था? 

प्रकाश बादल ने यह मान कि ज.  टोहड़ा उनसे दल की कमान छीन लेना चाहते हैं, उन्होंने ज. टोहड़ा को न केवल शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष पद से ही हटाया, अपितु उन्हें दल से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। उसके बाद प्रकाश सिंह बादल को ही दल के दोनों केंद्रों की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। जब तक दल पर उनकी पकड़ बनी रही तब तक वह अपनी राजनीतिक तिकड़मबाजी के सहारे इस स्थिति को संभाले रहे। 

सुखबीर अध्यक्ष बने : जब सुखबीर सिंह बादल ने अध्यक्ष के रूप में शिरोमणि अकाली दल की कमान संभाली तो उन्होंने धीरे-धीरे दल पर प्रकाश सिंह बादल की पकड़ को कमजोर करना और अपनी पकड़ को मजबूत करना शुरू कर दिया। प्रकाश सिंह बादल के प्रति वफादार चले आ रहे सभी वरिष्ठ और टकसाली अकाली नेताओं को उन्होंने किनारे कर दिया। जब तक चली तब तक तो प्रकाश सिंह ने उन्हें संभाले रखा, परन्तु अधिक समय तक यह स्थिति बनी न रह सकी और उन वरिष्ठ अकाली नेताओं ने अपने को दल में अपमानित महसूस करते हुए, एक-एक कर उसे अलविदा कहना शुरू कर दिया।

इस समय प्रकाश सिंह बादल दल के संरक्षक तो हैं परन्तु मात्र एक ‘डम्मी संरक्षक’। सुखबीर सिंह बादल ने एक ओर अपनी ‘राष्ट्रीय नेता’ बननेकी लालसा को पूरा करने के लिए अकाली दल को केवल सिखों का प्रतिनिधि होने के ‘बंधन’ से मुक्त किया तो दूसरी ओर दल के महत्वपूर्ण पद गैर-सिखों कोसौंप दिए जिसके परिणामस्वरूप आम सिख तो उससे दूरहोने शुरू हो गए, परन्तु अधिकांश गैर-सिख उसे सिख जत्थेबंदी ही मानते हुए उससे जुडऩे से कतराते रहे। 

सुखबीर सिख भावनाओं का सम्मान न कर सके : सुखबीर अपनी राष्ट्रीय नेता बनने की लालसा के अहं में भूल गए कि सिखों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़, उन्हें बहुत ही महंगा पड़ सकता है। उन्होंने सिख धर्म की मान्यताओं के विरोधियों के सामने घुटने टेक दिए। प्रकाश सिंह बादल के मुख्यमंत्री और उनके उप-मुख्यमंत्री काल के दौरान पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं हुईं जिनके लिए दोषी पुलिस की पकड़ से बाहर रहे। इस स्थिति के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए नाम सिमरन कर शांतिपूर्ण धरना दे रहे सिखों पर पुलिस ने गोली चलाई जिससे दो सिख युवक शहीद हो गए। इससे आम सिखों में बादल अकाली दल के विरुद्ध रोष बढ़ गया जिसके चलतेही दल को पंजाब विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप वह शिरोमणि अकाली दल, जो कभी सिखों के लिएहीरो (नायक) माना जाता रहा था, ‘जीरो’ होकर रह गया। 

सरना को नोटिस : बीते दिनों एक मुलाकात में दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के जनरल मैनेजर ने बताया कि गुरुद्वारा कमेटी के पास विदेशी चंदा स्वीकार करने का कोई अधिकार पत्र नहीं? उसके इस कथन का संज्ञान लेते हुए शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के प्रधान महासचिव हरविंद्र सिंह सरना ने कमेटी के सदस्यों से पूछा कि यदि उनके पास विदेशी चंदा स्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं, तो ऐतिहासिक गुरुद्वारों के मंच पर जो यह दावा किया जा रहा है कि कमेटी की अपील पर देश-विदेश से करोड़ों रुपए आ रहे हैं, उस दावे के अनुसार विदेशों से आने वाले पैसे को किन खातों में स्वीकार किया जा रहा है।

उन्होंने शंका भी प्रकट की कि संभवत: विदेशों से आ रहा पैसा कमेटी के कुछ मुलाजिमों के खातों में वसूल किया जा रहा है। यह शंका प्रकट करते हुए उन्होंनेयह मांग की कि विदेशों से आ रहे पैसों का हिसाब-किताब सार्वजनिक किया जाए। बताया गया है किस. सरना द्वारा प्रकट की गई शंका का निवारण करने के स्थान पर, कमेटी की ओर से उन्हें मानहानि का नोटिस दे दिया गया है। इधर यह भी पता चला है कि कमेटी को एक नोटिस मिला है जिसमें लंगर के नाम पर देश-विदेश से इक_े किए गए पैसे का हिसाब-किताब सार्वजनिक करने की मांग की गई है। 

...और अंत में : हैवेल्स इंडिया द्वारा अपने प्रोडक्ट ‘ट्रिमर’ के विज्ञापन में दो साबत-सूरत सिख युवकों को माडल के रूप में पेश किए जाने के विरुद्ध अपनी आपत्ति दर्ज करवाते हुए ‘जागो’ जत्थेबंदी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. ने अपने एडवोकेट द्वारा हैवेल्स इंडिया को नोटिस दिया है, जिसमें न केवल विज्ञापन वापस लेने की ही मांग की गई, अपितु सिखों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला विज्ञापन जारी करने के लिए माफी मांगने के लिए भी कहा गया है। उधर यह भी पता चला है कि जिन सिख युवकों को इस विज्ञापन में माडल के रूप में पेश किया गया है, उन्होंने संबंधित विज्ञापन से अपने को अलग कर दिया है और अपने इस दु:साहस के लिए माफी भी मांगी है। उन्होंने सिख जगत को विश्वास दिलाया है कि भविष्य में वे कभी कोई ऐसा विज्ञापन नहीं करेंगे जो सिख धर्म की मान्यताओं के विरुद्ध और सिख भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला हो।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’

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