वैज्ञानिक सोच होने का मतलब नास्तिक नहीं

Edited By ,Updated: 30 Jul, 2022 04:41 AM

scientific thinking doesn t mean atheist

अक्सर यह बात सुनने को मिलती है कि हमारी सोचने-समझने की योग्यता का आधार विज्ञान के अनुसार अर्थात वैज्ञानिक होना चाहिए। परंतु यह कोई नहीं जानता कि यह आधार क्या है? क्या यह कोई

अक्सर यह बात सुनने को मिलती है कि हमारी सोचने-समझने की योग्यता का आधार विज्ञान के अनुसार अर्थात वैज्ञानिक होना चाहिए। परंतु यह कोई नहीं जानता कि यह आधार क्या है? क्या यह कोई एेसी वस्तु है जो कहीं बाजार में मिलती है, मोलभाव कर उसे हासिल किया जा सकता है या फिर इसका संबंध परंपराओं, धर्म के अनुसार की गई व्याख्याआें और पूर्वजों द्वारा निर्र्धारित कर दिए गए जीवन के मानदंडों से है? 

विज्ञान के सरोकार : विज्ञान का अर्थ यह लगाया जा सकता है कि ऐसा ज्ञान जो विशेष हो, उसे प्राप्त करने के लिए तथ्यों और तर्कों की कसौटियों से गुजरना पड़ा हो, वह इतना लचीला हो कि उसमें चर्चा, वाद-विवाद, शोध के जरिए परिवर्तन और संशोधन किया जा सके। एक छोटा-सा उदाहरण है। तेज हवा चलने से घर के खिड़की-दरवाजे कई बार बजने, आवाज करने लगते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह कोई भूत है जो खड़कड़ कर रहा है, लेकिन दूसरा सोचता है कि कहीं इसकी चौखट तो ढीली नहीं पड़ गई और वह जाकर उसे कस देता है। आवाज आनी बंद हो जाती है। 

यही वह ज्ञान है जो सामान्य से अलग है इसलिए यह विज्ञान कहा जाता है। हमारे संविधान में भी इस बात की व्यवस्था है जिसके अनुसार हमारे फंडामैंटल कत्र्तव्यों का पालन वैज्ञानिक ढंग से सोच-विचार कर किया जाना चाहिए। इससे ही लोकतंत्र सुरक्षित और मानवीय गुणों का विकास हो सकता है।जब हमें किसी बात पर उसके सही होने के बारे में संदेह होता है, उसे जांचने परखने के लिए उत्सुकता होती है तो यहीं से वैज्ञानिक सोच की शुरूआत होती है। इसके विपरीत जब किसी बात को केवल इसलिए माना जाए कि उसे पूर्वजों ने कहा है, उनकी परंपरा का निर्वाह कत्र्तव्य बन जाए, उसमें कतई बदलाव स्वीकार न हो तब यह कट्टरपन बन जाता है और यही लड़ाई-झगड़े, मनमुटाव और शत्रुता का कारण बन जाता है। 

जो लोग यह कहते हैं कि विज्ञान में ईश्वर या परम सत्ता या किसी भी नाम से कहें, उसका कोई महत्व नहीं है तो यह अपने आप को भुलावे में रखने और वास्तविकता को स्वीकार न करने के बराबर है। हमारी सभी वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं और उनमें शोध और एक्सपैरीमैंट कर रहे सभी लोग चाहे सामने होकर यह न मानें कि परमेश्वर जैसी कोई चीज है लेकिन वे भी अपने अंत:करण में मानते हैं कि कुछ तो है जो उनकी कल्पना से परे है उन्हें भी समय-समय पर किसी अदृश्य शक्ति का नियंत्रण महसूस होता है। 

कुछ लोग धर्म और धार्मिक विधि-विधान को मानना अवैज्ञानिक कहते हैं और उनमें आस्था रखना और हवन, पूजन और कर्मकांड जैसी चीजों का उपहास करते हैं। इस बारे में केवल इतना कहा जा सकता है कि जब यह सब करने के लिए चढ़ावा, दिखावा धन की मांग और न देने पर ईश्वर का प्रकोप, दंड मिलने और अहित होने जैसी बातों के बल पर लूट-खसोट, जबरदस्ती और शोषण किया जाए तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। इसका विज्ञान से कोई संबंध नहीं है वरना तो इन सब चीजों के करने से वातावरण शुद्ध होता है, मानसिक और भावनात्मक तनाव कम होता है, मन केंद्रित होता है और शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है। 

हमारे जीव, प्राणी और वन-विज्ञान ने अनेक ऐसी संभावनाओं को हकीकत में बदला है जिन पर आश्चर्य हो सकता है। औषधियों के तैयार करने में जीवों से प्राप्त किए गए अनेक प्रकार के ठोस और तरल पदार्थ, जड़ी बूटियों के सत्व और प्राकृतिक तत्वों के मिश्रण का इस्तेमाल होता है और बाकायदा बने एक सिस्टम से गुजरने के बाद उनके प्रयोग की इजाजत दी जाती है। इसके स्थान पर यदि कोई व्यक्ति झाड़-फूंक, गंडे ताबीज, भभूत जैसी चीजों से इलाज करने की बात करता है तो यह अपराध है क्योंकि विज्ञान इन्हें मान्यता नहीं देता। कोरोना जैसी महामारी से लेकर किसी भी दूसरे रोग की चिकित्सा दवाई, वैक्सीन, इंजैक्शन से होती है न कि किसी पाखंडी और झोलाछाप लोगों के इलाज से, इसलिए यह लोग भी अपराधी हैं। 

विज्ञान का आधार हमेशा से तर्क यानी जो है उस पर शक या संदेह करना है। इसका मतलब यह है कि जो चाहे सदियों से चला आ रहा है लेकिन जिसकी सत्यता का कोई प्रमाण नहीं है और जो केवल परंपरा निभाने के लिए होता रहा है, उसे न मानकर नई शुरूआत करना वैज्ञानिक है। 

विज्ञान और धर्म : कोई भी धर्म किसी कुरीति या मानवता विरोधी काम का न तो समर्थन करता है और न ही मान्यता देता है, इसलिए धर्म अवैज्ञानिक नहीं है। इसी प्रकार चाहे कोई भी धर्म अपनी निष्ठा, किसी भी अवतार, गुरु, पैगंबर, यीशु, तीर्थंकर, बुद्ध आदि महापुरुषों में रखे तो यह विज्ञानसम्मत है। इसलिए विज्ञान और धर्म का गठजोड़ तर्कसंगत है। भारत तो अपनी प्राचीन संस्कृति, वैज्ञानिक उपलब्धियों और उनकी वर्तमान समय में उपयोगिता के बारे में विश्व भर में जाना जाता है जिसके कारण हम अनेक क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। तब फिर उन सब बुराइयों को ढोते हुए चलना कतई समझदारी नहीं है जो हमें दूसरों की नजरों में हंसी का पात्र बनाती हैं। 

वैज्ञानिक सोच और उसके आधार पर जब हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निर्णय लेने की शुरूआत एक अनिवार्य प्रक्रिया के रूप में हो जाएगी, तब ही हम गरीबी, बेरोजगारी और विदेशों में प्रतिभा के पलायन को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठा पाएंगे।-पूरन चंद सरीन
 

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