संवेदनशील मामलों में जांच की गोपनीयता अत्यंत जरूरत

Edited By ,Updated: 16 Apr, 2021 05:57 AM

secrecy of investigation in sensitive cases is extremely important

हाल ही में बाम्बे उच्च न्यायालय ने मीडिया ट्रॉयल के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। जून 2020 में एक मशहूर फिल्मी कलाकार की मुम्बई में अप्राकृतिक मृत्यु के पश्चात् उसकी दोस्त अभिनेत्री की भूमिका को लेकर जिस प्रकार से संचार माध्यमों ने पुलिस...

हाल ही में बाम्बे उच्च न्यायालय ने मीडिया ट्रॉयल के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। जून 2020 में एक मशहूर फिल्मी कलाकार की मुम्बई में अप्राकृतिक मृत्यु के पश्चात् उसकी दोस्त अभिनेत्री की भूमिका को लेकर जिस प्रकार से संचार माध्यमों ने पुलिस अनुसंधान एवं जांच पूर्ण होने से पहले ही ट्रॉयल चलाकर उसे दोषी करार दिया, उच्च न्यायालय ने माना कि यह न्यायिक प्रशासन के उद्देश्यों के विपरीत होकर न्यायालय की अवमानना स्वरूप है। 

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि न्यायिक अर्जन की शुरूआत प्रथम-सूचना प्रतिवेदन के लिखने से हो जाती है। इसलिए यदि मीडिया द्वारा किसी प्रकरण के शिकायतकत्र्ता, साक्षी एवं आरोपी का साक्षात्कार लिया जाता है और मामले के अनुसंधान या ट्रॉयल को प्रभावित कर सकता है तो यह आपत्तिजनक होकर केबल टैलीविजन नैटवक्र्स अधिनियम-1995 की धारा 5 एवं नियम 6 के तहत गैर-कानूनी है। 

भारतीय प्रैस परिषद द्वारा 13 सितम्बर, 2019 को प्रैस विज्ञप्ति के माध्यम से मानसिक बीमारी और आत्महत्या के प्रकरणों में प्रिंट मीडिया के लिए एक मार्गदर्शिका जारी की जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2017 की रिपोर्ट पर आधारित है। इसमें आत्महत्या के प्रकरणों में आत्महत्या के तरीकों को स्पष्ट रूप से प्रकाशित करने की मनाही की गई है। यह भी निर्देश है कि स्थान व घटनास्थल का विवरण मीडिया में नहीं दिया जाए एवं आत्महत्या संबंधी संवेदनशील मुख्य बातें प्रयोग में नहीं लाई जाएं। यह भी स्पष्ट किया है कि आत्महत्या से संबंधित फोटोग्राफी एवं वीडियो का उपयोग नहीं किया जाए। 

प्रैस परिषद द्वारा मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा अधिनियम-2017 के तहत दिमागी स्वास्थ्य के मामलों में भी इलाज की जानकारी और पीड़ित की फोटो प्रकाशित नहीं करने के निर्देश दिए गए हैं। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय प्रैस परिषद द्वारा जारी यह निर्देश प्रिंट मीडिया के लिए कानून के तहत बंधनकारी है।

समाचार प्रसारण संघ (एन.बी.ए.) द्वारा भी एडिटर्स के लिए इसी प्रकार की गाइडलाईन्स जारी कर स्पष्ट किया गया है आत्महत्या के प्रकरणों के विजुअल नहीं दिखाए जाएं। कोर्ट ने कहा कि समाचार प्रसारण संघ द्वारा इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए जारी मार्गदर्शिका कानून के तहत बंधनकारी नहीं होने से केन्द्र द्वारा पृथक से कानून व नियम बनाए जाने तक भारतीय प्रैस परिषद द्वारा जारी मार्गदर्शिका का पालन इलैक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा भी किया जाए। यह उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रैस परिषद अधिनियम एक केन्द्रीय कानून होने से परिषद द्वारा जारी मार्गदर्शिका सभी प्रकार के प्रिंट मीडिया को पालन करना जरूरी है। 

बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा पुलिस को चेतावनी देते हुए कहा गया कि अनुसंधानकत्र्ता एजैंसियों को अनुसंधान के दौरान गोपनीयता बरतने की आवश्यकता है। उन्हें महत्वपूर्ण जानकारियों को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। यदि पुलिस द्वारा कोई गोपनीय जानकारी सार्वजनिक की जाती है तो वह अवमानना की श्रेणी में आएगा। न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के ‘राजेन्द्रन ङ्क्षचगारवेलू विरुद्ध आर.के. मिश्रा’ (2010) प्रकरण का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा अनुसंधान पूरा नहीं होने से पहले ही श्रेय लेने की होड़ में कई बार मीडिया को गोपनीय जानकारियां सांझा कर दी जाती हैं। 

यद्यपि उपरोक्त प्रकरण आयकर विभाग से संबंधित था, न्यायालय ने कहा कि सभी अनुसंधानकत्र्ता एजैंसी को ऐसी जानकारियां मीडिया से सांझा करने से दूर रहना चाहिए जिससे अनुसंधान एवं ट्रॉयल के दौरान विपरीत असर पडऩे की संभावना हो। बेहतर होगा कि अनुसंधानकत्र्ता एजैंसी एक नोडल अधिकारी नियुक्त करे जो अनुसंधानकत्र्ता और मीडिया के बीच लिंक का काम करे और समय-समय पर संवेदनशील और महत्वपूर्ण प्रकरणों की जानकारी मीडिया के साथ सांझा करे।  परंतु, इसमें यह ध्यान रखा जाए कि गोपनीय जानकारियां एवं सामग्री जो अनुसंधान के दौरान संग्रहित की गई हों और जिनका न्यायिक प्रशासन पर विपरीत असर पडऩे की संभावना हो, वे उजागर न की जाए। इसलिए उचित होगा कि प्रैस परिषद द्वारा जारी बंधनकारी मार्गदर्शिका के अनुसार आत्महत्या के प्रकरणों को प्रकाशित करने में मीडिया द्वारा आवश्यक सावधानी बरती जाए ताकि मृतक की गरिमा से कोई छेड़छाड़ न हो। 

इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार पुलिस अधिकारियों को भी चाहिए कि किसी भी घटना की गोपनीय जानकारी प्रैस से सांझा न करें ताकि न्याय प्रक्रिया पर कोई विपरीत असर पडऩे की संभावना न बन सके। यद्यपि बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय महाराष्ट्र राज्य पर बंधनकारी है परंतु प्रैस परिषद की मार्गदर्शिका केंद्रीय कानून के तहत होने से एवं सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पूरे देश में लागू होने से आत्महत्या के प्रकरणों को प्रकाशित करने व पुलिस को गोपनीय जानकारियां सांझा न करने के निर्देश पूरे देश पर लागू होंगें।(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)-आर.के. विज

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