भारत में सुरक्षा ‘रुतबे का मामला’

Edited By ,Updated: 25 Nov, 2019 01:48 AM

security in india matter of status

हमारे यहां सुरक्षा को मान-सम्मान से जोड़ कर देखा जाता है। हमारे राजनेता, जज, राज्यपाल और जनरल सुरक्षा घेरे में रहने को गर्व का विषय समझते हैं। जिस व्यक्ति के साथ जितना बड़ा सुरक्षा दस्ता होगा उसे उतना ही ज्यादा रुतबे वाला माना जाएगा। हालांकि कुछ...

हमारे यहां सुरक्षा को मान-सम्मान से जोड़ कर देखा जाता है। हमारे राजनेता, जज, राज्यपाल और जनरल सुरक्षा घेरे में रहने को गर्व का विषय समझते हैं। जिस व्यक्ति के साथ जितना बड़ा सुरक्षा दस्ता होगा उसे उतना ही ज्यादा रुतबे वाला माना जाएगा।

हालांकि कुछ लोगों के लिए वास्तव में सुरक्षा को लेकर खतरा होता है और यह लगातार रहता है। 35 वर्ष पहले 31 अक्तूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या की गई थी। उनके 25 वर्षीय बॉडीगार्ड बेअंत सिंह ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से उन्हें तीन गोलियां मारी थीं। जब प्रधानमंत्री जमीन पर गिर गईं तो दूसरे बॉडीगार्ड 22 वर्षीय सतवंत सिंह ने 67 वर्षीय असहाय इंदिरा पर अपनी स्टेनगन से 30 फायर किए। 7 गोलियां उनके पेट में लगीं, 3 छाती पर और एक दिल पर। प्रैस रिपोर्टस के अनुसार उस समय सोनिया गांधी घर पर थीं और वह  चिल्लाते हुए सीढिय़ों से नीचे भागीं ‘‘मम्मी! ओह माई गॉड, मम्मी।’’ 

राजीव के लिए हुआ एस.पी.जी. का गठन 
इस हत्या के बाद सरकार ने राजीव गांधी के लिए स्पैशल प्रोटैक्शन ग्रुप का गठन किया। इस ग्रुप का गठन अमरीकी खुफिया सेवा द्वारा 1865 में स्थापित सुरक्षा व्यवस्था की तर्ज पर किया गया था। 1865 में अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या की गई थी। अमरीकी खुफिया सेवा वर्तमान में राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति और उनके परिवारों तथा पूर्व राष्ट्रपतियों तथा उनके परिवारों को सुरक्षा प्रदान करती है। इसके अलावा वह विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं को भी सुरक्षा उपलब्ध करवाती है। 

1991 में तमिलनाडु में एक 17 वर्षीय लड़की द्वारा एक रैली के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। उसने अपने शरीर के साथ आर.डी.एक्स. से युक्त बम बांध रखा था जिसके विस्फोट से दर्जन भर से ज्यादा लोग मारे गए थे। मुझे नहीं मालूम कि उस समय एस.पी.जी. क्या कर रही थी लेकिन यदि मेरी याद्दाशत सही है तो इसकी जिम्मेदारी यह कहते हुए शहीद हुए नेता पर डाली गई थी कि उन्हें लोगों के साथ नजदीकी से मिलने पर कोई आपत्ति नहीं थी। यदि दुनिया में असुरक्षित परिवार है तो वह गांधी परिवार है। 

भारत में अमरीका की तरह एस.पी.जी. की सुरक्षा पाने वाले लोगों की कोई विशेष सूची नहीं है और यह वर्तमान सरकार पर निर्भर करता है कि किस को किस स्तर की सुरक्षा दी जानी है। अब मोदी सरकार ने गांधी परिवार से एस.पी.जी. सुरक्षा हटाने का फैसला लिया है। कांग्रेस पार्टी की ओर से सरकार से यह अनुरोध किया गया था कि इस निर्णय पर पुर्नविचार कर ले लेकिन सरकार ने कहा कि फैसला वापस नहीं होगा। 

सरकार का तर्क
सरकार ने संसद में कहा कि गांधी परिवार की सुरक्षा वापस नहीं ली गई है। लेकिन यह अर्थहीन तर्क है क्योंकि सरकार पर यह आरोप नहीं लगाया गया है कि उसने पूरी सुरक्षा हटा ली है। आरोप यह है कि भारत सरकार जानबूझ कर एक असुरक्षित परिवार की सुरक्षा को कम करके उनके जीवन को खतरे में डाल रही है। इस आरोप पर प्रधानमंत्री को सुरक्षा की गारंटी देनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। 

सरकार ने संसद में दूसरा दावा यह किया कि सुरक्षा कम करने का फैसला राजनीतिक तौर पर नहीं लिया गया है। इस बात पर केवल वही लोग विश्वास करेंगे जिन्हें भारत सरकार की कार्य प्रणाली के बारे में जानकारी नहीं है। सरकार का तीसरा दावा यह है कि सुरक्षा में कमी इसलिए की गई क्योंकि खतरे में कमी दर्ज की गई थी। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए यह जरूरी था कि वह उन तथ्यों को सामने रखती जिनसे यह बात साबित होती है। सरकार ने यह काम भी नहीं किया। सुरक्षा घटाने के इस कदम से सुरक्षा प्राप्त लोगों के जीवन पर खतरा पैदा होगा क्योंकि एस.पी.जी. कवर में भी वह बात नहीं जैसा कि हम सोचते हैं। मैं कुछ महीने पहले 10 जनपथ पर सोनिया गांधी से मिला था। मुझे केवल उस टैक्सी का नम्बर देना पड़ा जिसमें बैठकर मैं आया था और फिर इसे कम्पाऊंड में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी गई। 

जब मैं मोदी से मिला था तो वह एस.पी.जी. कैटेगरी में नहीं थे। यह बात कुछ वर्ष पहले की है। लेकिन मुझे यकीन है कि उन्हें उस समय जैड प्लस कवर प्राप्त था। यहां भी अलग हट कर कुछ खास नहीं था। वास्तविकता यह है कि भारत में सिस्टम कमजोर और नाजुक है और इससे छेड़छाड़ की संभावना बनी रहती है। कुछ वर्ष पहले मैं श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला से मिलने गया। उस समय वह अंदर नहीं थे और मुझे थोड़ी-सी चैकिंग के बाद उनके कार्यालय में भेज दिया गया। ऐसा लगा कि वह मुझसे नहीं मिलना चाहते थे लेकिन जब मैं उनके कार्यालय से बाहर निकल रहा था तो गलियारे में उनसे भेंट हो गई। 

20 वर्ष पहले एडीटर्स गिल्ड की एक बैठक में मैं उपस्थित था। इस मीटिंग में एल.के. अडवानी को भी बुलाया गया था और हम सब के भीतर जाने के बाद अडवानी और जेतली भी वहां पहुंचे लेकिन अंदर जाने से पहले हममें से किसी की भी चैकिंग नहीं की गई थी। हालांकि हमारे साथ एक ऐसा व्यक्ति था जिसे जैड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा प्राप्त थी और वह असुरक्षित थे। 30 वर्ष से भी अधिक समय पहले मैंने व्हाइट हाऊस का दौरा किया था (जब रोनाल्ड रीगन राष्ट्रपति थे)। राष्ट्रपति भवन में मौजूद थे लेकिन पहचान का प्रमाण उपलब्ध करवाने तथा बेसिक स्कैन के अलावा और कोई स्क्रीनिंग नहीं की गई। कुछ ऐसा ही उस समय भी हुआ जब मैंने तेल अवीव में इसराईली राष्ट्रपति शिमोन से मुलाकात की थी। यह कल्पना करना मुश्किल है कि इस स्तर की सुरक्षा के बावजूद ये लोग हमेशा सुरक्षित रहते हैं। 

जैसा कि मैंने पहले कहा कि हमारे यहां सुरक्षा रुतबे का मामला है। ऐसे में किसी व्यक्ति की सुरक्षा घटाना उसे उसकी औकात दिखाने के बराबर समझा जाता है। लेकिन यह एक खतरनाक खेल है जिसे मोदी सरकार खेल रही है। सरकार को चुपचाप गांधी परिवार का एस.पी.जी. कवर बहाल कर देना चाहिए।-आकार पटेल                      

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