असली शहंशाह साबित हुए शाह

Edited By ,Updated: 02 Jun, 2019 03:28 AM

shah proved true shah

बकौल मुनव्वर राणा-‘कभी थकान के असर का पता नहीं चलता, वो साथ हो तो सफर का पता नहीं चलता।’  प्रधानमंत्री चाहें तो अपने मित्र शाह के लिए यह शे’र गुनगुना सकते हैं जिन्होंने 2019 के चुनावी घमासान में न सिर्फ  कदम से कदम मिला कर मोदी का साथ दिया, बल्कि...

बकौल मुनव्वर राणा-‘कभी थकान के असर का पता नहीं चलता, वो साथ हो तो सफर का पता नहीं चलता।’  प्रधानमंत्री चाहें तो अपने मित्र शाह के लिए यह शे’र गुनगुना सकते हैं जिन्होंने 2019 के चुनावी घमासान में न सिर्फ  कदम से कदम मिला कर मोदी का साथ दिया, बल्कि बम्पर बहुमत से जब मोदी की वापसी हुई तो नए मंत्रियों के चयन से लेकर उनके विभागों के बंटवारे तक में शाह की एक अहम भूमिका रही। अपने स्वास्थ्यगत कारणों की वजह से अरुण जेतली को नए मंत्रिमंडल में नहीं लिया जा सका। प्रधानमंत्री स्वयं जेतली से मिलने, उन्हें मनाने उनके घर जा पहुंचे, पर बात नहीं बनी। 

संघ अमित शाह के लिए सरकार में एक बड़ी भूमिका चाहता था। शाह का दिल वित्त मंत्रालय में उलझा था पर संघ का मानना था कि इस वक्त देश को एक मजबूत और फैसले लेने वाला गृह मंत्री चाहिए। ऐसा गृह मंत्री जो धारा 370, 35ए, कश्मीर, कश्मीरी पंडितों की घर वापसी और राम जन्मभूमि जैसे मुद्दों को एक निर्णायक मुकाम तक ले जा सके। सूत्रों की मानें तो संघ प्रमुख की ओर से पी.एम. को यह मैसेज भेजा गया था कि वे शाह को या तो डिप्टी पी.एम. या फिर देश के गृह मंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं। कहते हैं संघ के समझाने-बुझाने के बाद ही सियासत के धुरंधर राजनाथ सिंह ने गृह मंत्रालय के ऊपर से अपना दावा छोड़ दिया और अपनी राजनीतिक अस्मिता की रक्षा के लिए रक्षा मंत्रालय के प्रस्ताव को लपक लिया। 

भाजपा की रणनीतियों से क्या सीखे विपक्ष
अगर खामोशियों से भी बतकही जरूरी है तो परास्त विपक्ष के लिए हताशा के सागर में डुबकी लगाने से पहले उन मोतियों को ढूंढ लाना जरूरी है जिसने मोदी-शाह के विजयी साफे की रौनकें बढ़ाई हैं। इतनी प्रचंड चुनावी विजय के बाद भाजपा अपने उन पृष्ठ प्रमुख और पन्ना प्रमुख को पुरस्कृत करने की योजना बना रही है जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से ब्रांड मोदी को हिन्दुस्तान के घर-घर तक पहुंचा दिया। भाजपा के रणनीतिकारों ने अपने बूथ मैनेजरों को ‘24 प्वाइंट एक्शन प्लॉन’ दिया था और उन्हें अपने संबंधित राज्यों में मठों, मंदिरों और आश्रमों के प्रमुखों से मेल-जोल बढ़ाने को कहा था। 

इस काम में पग-पग पर उन्हें संघ कार्यकत्र्ताओं का भी उतना ही साथ मिला। पार्टी ने अपने कार्यकत्र्ताओं से ग्राऊंड स्तर पर काम करने को कहा था और उन्हें यह ताकीद दी गई थी कि जमीनी स्तर पर ब्रांड मोदी के प्रचार के लिए वे सिर्फ  पारम्परिक तरीकों का इस्तेमाल करें, मसलन लोगों से मेल-जोल, बातचीत और मोदी सरकार की नीतियों और उपलब्धियों का बखान, साथ ही आम लोगों के दिल में राष्ट्रवाद की जोत भी प्रज्वलित होनी चाहिए। अपने कार्यकत्र्ताओं की हौसला अफजाई के लिए स्वयं पी.एम. अपने नमो एप का सहारा ले रहे थे, जिससे उनके 1 करोड़ से ज्यादा भाजपा कार्यकत्र्ता सीधे तौर पर जुड़े थे। 

सबसे खास बात तो यह कि ये समर्पित कार्यकत्र्ता अपनी बात सीधे मोदी तक पहुंचा सकते थे और यह पूरी तैयारी पिछले दो वर्षों से निरंतर चल रही थी। इस पूरी मुहिम में संघ के कार्यकत्र्तागण भी भाजपा कार्यकत्र्ताओं के कदम से कदम मिला कर चल रहे थे। सो, मोदी की प्रचंड जीत को अब संघ एक नए भारत के प्रादुर्भाव के तौर पर देख रहा है। संघ विचारक मनमोहन वैद्य ने तो इस बार की मोदी की जीत को हिन्दू जीवनशैली और हिन्दू विचारों की जीत बता दिया और कहा कि यह चुनाव हिन्दू आईडोलॉजी और देश को बांटने वाली विचारधाराओं के बीच था, जिसमें भारत विजयी रहा। 

नई परम्पराओं वाला शपथ ग्रहण
मोदी सरकार के इस शपथ ग्रहण समारोह में पहली बार राजनीतिक परम्पराएं तोड़ी गईं, नए रस्मो-रिवाज का आगाज हुआ। जैसे इस समारोह में शामिल होने के लिए बंगाल के पीड़ित परिवारों को न्यौता भेजा गया। पुलवामा के शहीद जवानों के परिवारों को भी आमंत्रित किया गया। पर राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आहूत इस विशाल शपथ ग्रहण समारोह में और पुलवामा शहीद के परिवारों तक मीडिया मुश्किल से पहुंच पाया, जिसमें 8 से 10 परिवार बंगाल से थे तो पुलवामा शहीदों का भी एक परिवार बंगाल से ही था। इन परिवारों को दिल्ली के काली बाड़ी मंदिर के गैस्ट हाऊस में ठहराया गया था, कुछ सदस्यों को कनॉट प्लेस के पंचतारा पार्क होटल में भी ठहराया गया था। इन परिवारों की देखभाल का पूरा जिम्मा भाजपा के एक ऐसे नेता ने उठा रखा था, जो इस बार अपना चुनाव हार गए थे। 

ममता का मंथन
ताजा-ताजा भगवा कैजुअल्टी का शिकार हुई ममता बनर्जी अब जमीनी हकीकत के साथ जीना चाहती हैं। पिछले दिनों कोलकाता में उन्होंने अपने पार्टी नेताओं के साथ तृणमूल के गिरते ग्राफ  और पश्चिम बंगाल में भाजपा के नए प्रादुर्भाव पर विस्तार से चर्चा की और इस मंथन बैठक से तीन प्रमुख बिन्दु उभर कर सामने आए जिसमें पहला है, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण। इसकी काट के तौर पर ममता ने बंगाली प्राइड को आगे रखने की बात कही है और कहा कि जब भी जय श्री राम के नारे लगें तो जवाब में ‘जय बांग्ला’ का नारा दो। दूसरे बिन्दू के तौर पर शायद पहली बार ममता को तृणमूल कार्यकत्र्ताओं की गुंडागर्दी का एहसास हुआ। ममता ने माना कि सी.पी.एम. के गुंडा तत्व उनके कैडर में घुस आए हैं, सो दीदी ने कड़े शब्दों में कहा, ‘टोला बाजी (अवैध वसूली) बंद होनी चाहिए। इन टोलाबाजों की वजह से हमारी यह दुर्गत हो रही है।’ 

सौगत कहां खोए हैं
तृणमूल ने अपने संसदीय दल की बैठक बुलाई जो तकरीबन दो घंटे चली। यह बैठक इस बात को लेकर बुलाई गई थी कि 17वीं लोकसभा में पार्टी का नेता, उप नेता और चीफ  व्हिप कौन होगा? सदन में तृणमूल के नेता के तौर पर आम राय से सुदीप बंधोपाध्याय के नाम पर मुहर लग गई। तब डिप्टी लीडर के तौर पर कल्याण बनर्जी के नाम पर विचार होना शुरू हुआ तो कल्याण बैठक में उठ खड़े हुए और उन्होंने ममता बनर्जी से आग्रह किया कि वे पहले भी सदन में चीफ  व्हिप रह चुके हैं, सो उन्हें यही जिम्मेदारी दे दी जाए। तब डिप्टी लीडर के लिए डा. काकोली घोष का नाम सामने आया। 

अभी यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि दीदी के जेहन में सहसा कौंधा कि आखिर सौगत राय कहां हैं? आम तौर पर ऐसी बैठकों में वाचाल रहने वाले राय की चुप्पी ने दीदी को यकबयक सकते में डाल दिया। सबका ध्यान तब एकबारगी सौगत की ओर गया जो पहली बार संसद में पहुंची दो बंगाली अभिनेत्रियों नुसरत जहां और मिमि चक्रवर्ती से घिरे उनसे बातचीत में लीन थे। वैसे भी भाजपा के बड़े नेताओं ने अपनी ई-आर्मी से कहा कि वे बिला वजह इन दोनों सुंदरियों को ट्रोल न करें। 

जगन की बहन क्यों है सबसे अलग
प्रियंका गांधी की तरह ही जगन मोहन रेड्डी की बहन वाई.एस. शर्मिला भी अपने भाई के पीछे इस पूरे चुनाव में चट्टान के माङ्क्षनद खड़ी रही। पर शर्मिला एक मायने में प्रियंका गांधी से अलग हैं कि उन्हें शोहरत और सुॢखयों की सवारी गांठनी पसंद नहीं, वे इस पूरे चुनाव में नेपथ्य में रह कर जगन के चुनावी अभियान को धार देती रहीं। जगन के पूरे सोशल मीडिया को भी शर्मिला ने ही संभाल रखा था और उनकी सोशल मीडिया आर्मी ने तो चंद्रबाबू नायडू पर ताबड़-तोड़ हमले किए। कई चर्चित चाइनीज एप मसलन ‘टिक टॉक’, ‘होला’ और ‘शेयर इट’ का बाखूबी इस्तेमाल कर उन्होंने नायडू खेमे में खलबली मचा दी। 

भाजपा की बंगाल नीति
पश्चिम बंगाल की ममता सरकार भाजपा के निशाने पर है। सो, राज्य में लगातार बढ़ रही हिंसा की घटनाओं खास कर जिस तरह वहां भाजपा नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है, इसे देखते हुए कुछ भाजपा नेताओं ने देश के नए-नवेले गृह मंत्री अमित शाह से मिल कर उनसे आग्रह किया कि ‘अब वक्त आ गया है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए’। 

सूत्रों की मानें तो जब शाह ने इस बारे में बंगाल के भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की राय जाननी चाही तो विजयवर्गीय की राय इससे दीगर थी। उन्होंने शाह से कहा कि वहां राष्ट्रपति शासन लगाने से ममता के पक्ष में सहानुभूति लहर पैदा हो सकती है। इससे बेहतर यह होगा कि ममता की पार्टी से टूट-टूट कर तृणमूल नेता, कार्यकत्र्ता, विधायक,पार्षद भाजपा में शामिल होते रहें और दीदी का मनोबल टूटता रहे और इससे उनकी पार्टी राज्य में कमजोर होती चली जाएगी। तब आसन्न विधानसभा चुनाव में उन्हें पछाडऩा आसान हो जाएगा। शाह को यह राय जंच गई। 

मेनका हो सकती हैं लोकसभा स्पीकर
अपने मंत्रालय महिला और बाल विकास में बतौर मंत्री उल्लेखनीय कार्य करने के बावजूद अगर नवगठित मोदी कैबिनेट में मेनका गांधी को जगह नहीं मिली तो मोदी का यह फैसला कइयों को हैरान करने वाला था। पर भाजपा से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्र खुलासा करते हैं कि मेनका गांधी लोकसभा की अगली अध्यक्ष हो सकती हैं। वे लगातार 9वीं बार जीत कर संसद पहुंची हैं यह अपने आप में एक रिकार्ड है। लोकसभा में उनके इतने लम्बे अनुभव को देखते हुए उन्हें स्पीकर का जिम्मा दिया जा सकता है। वह कड़क स्वभाव की हैं और हिन्दी-अंग्रेजी भाषा पर समान अधिकार रखती हैं। 

अभी कांग्रेस ने भी सोनिया गांधी को अपने संसदीय दल का नेता चुन लिया है। ऐसे में कुछ भाजपा नेताओं का ऐसा लगता है कि मेनका गांधी का अध्यक्षीय कुर्सी पर होना सोनिया व राहुल को सदन में असहज कर सकता है। सनद रहे कि लोकसभा का सत्र 17 जून से आहूत करने की सिफारिश की गई है, जो 26 जुलाई तक चलेगा। 

...और अंत में 
इस बार मोदी के दूसरे शपथ ग्रहण समारोह का निमंत्रण थोकभाव में फिल्मों की तमाम बड़ी हस्तियों को भेजा गया। यहां तक कि सोनाक्षी सिन्हा, काजल अग्रवाल और प्रियंका चोपड़ा जैसी अभिनेत्रियों को भी यह आमंत्रण भेजा गया था जो किसी वजह से इस आयोजन में शामिल नहीं हो पाईं। पर करण जौहर, कपिल शर्मा, राज कुमार हिरानी, रजनीकांत, कंगना राणावत, सुशांत सिंह राजपूत, विवेक ओबराय, आशा भोंसले, कैलाश खेर, आनंद राय, मधुर भंडारकर, अनुपम खेर, शाहिद कपूर, राकेश ओम प्रकाश मेहरा, बोनी कपूर जैसे लोगों ने इस आयोजन में शिरकत की। पर 2014 में जो सितारे इसमें शामिल थे उसमें सलमान खान, उनके पिता सलीम खान, धर्मेन्द्र, शत्रुघ्न सिन्हा इन लोगों की कमी जरूर खली।-त्रिदीब रमण              

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