चुनौतियों भरा होगा अमित शाह का ‘दूसरा कार्यकाल’

Edited By ,Updated: 22 Jan, 2016 12:40 AM

shah will be full of challenges second term

भाजपा प्रमुख 51 वर्षीय अमित शाह दूसरा कार्यकाल हासिल करने को तैयार हैं। ऐसा दिखाई देता है कि पार्टी के अभिभावक संगठन संघ ने भी इस मामले में स्वीकृति दे दी है

(कल्याणी शंकर): भाजपा प्रमुख 51 वर्षीय अमित शाह दूसरा कार्यकाल हासिल करने को तैयार हैं। ऐसा दिखाई देता है कि पार्टी के अभिभावक संगठन संघ ने भी इस मामले में स्वीकृति दे दी है और इस बारे में बहुत शीघ्र घोषणा होने की आशा है क्योंकि अमित शाह अपना वर्तमान कार्यकाल 23 जनवरी को पूरा कर रहे हैं। उनका नया कार्यकाल जनवरी 2019 में समाप्त होगा, जिस वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं। 

 
2014 के लोकसभा चुनावों और उनके बाद हरियाणा, झारखंड व महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में विजय का श्रेय अमित शाह को दिया गया था। उन्हें एक रणनीतिकार के तौर पर जाना जाने लगा, जब तक कि फरवरी 2015 में दिल्ली विधानसभा तथा नवम्बर में बिहार के चुनाव भाजपा द्वारा हारे जाने के बाद उनका पतन शुरू नहीं हो गया। यह तथ्य कि वह दूसरा कार्यकाल प्राप्त कर रहे हैं, यह दर्शाता है कि उनका मिश्रित रिपोर्ट कार्ड उनके कार्यकाल को जारी रखने के अवसरों पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाया। अमित शाह अभी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सर्वाधिक विश्वसनीय व्यक्ति हैं और जब तक उनका यह विश्वास बना रहेगा, कोई भी उन्हें छू नहीं सकता। वर्तमान में वह केवल राजनाथ सिंह के बाकी बचे कार्यकाल को पूर्ण कर रहे हैं और उनको अभी तक पूर्ण कार्यकाल नहीं मिला। 
 
अमित शाह के लिए दूसरे कार्यकाल का क्या अर्थ है? यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री के साथ-साथ संघ का पूर्ण समर्थन होने के कारण उनके चयन की घोषणा होने के साथ ही पार्टी में जारी फुसफुसाहटें शांत हो जाएंगी। 18 माह पहले पार्टी की कमान संभालने से लेकर वह इसे अपने तरीके से चला रहे हैं, जबकि पार्टी के कुछ लोगों का यह मानना है कि उन्हें कुछ अधिक ही अधिकार दिए गए हैं। वह लाल कृष्ण अडवानी, डा. मुरली मनोहर जोशी तथा यशवंत सिन्हा जैसे पार्टी के पुराने लोगों को दरकिनार करने में सफल रहे। मगर शत्रुघ्न सिन्हा तथा कीर्ति आजाद के बगावती सुरों को नहीं दबा पाए। 
 
पहला, यह निरंतरता का संकेत है, जो संगठन के लिए अच्छा हो सकता है। शाह के दूसरे कार्यकाल में उनके सामने चुनौतियां काफी डरावनी तथा पहले कार्यकाल के मुकाबले सख्त होंगी। जहां उन्हें प्रधानमंत्री सहित पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्यों से समर्थन मिलना जारी है, जरूरत इस बात की है कि शाह अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन लाएं। उन्हें पहले के मुकाबले अधिक लचीला तथा अधिक चतुर होना होगा तथा हर ओर से समर्थन जुटाना होगा। 
 
दूसरा, भाजपा 7 राज्यों में अलाभकारी स्थिति में है, जिनमें इस वर्ष तथा अगले वर्ष चुनाव होने हैं। उनकी शीघ्र होने वाली परीक्षा बहुत सख्त है क्योंकि पश्चिम बंगाल, असम,  तमिलनाडु, केरल तथा पुड्डुचेरी में गर्मियों में चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश तथा  पंजाब में 2017 में चुनाव होंगे। कांग्रेस असम तथा केरल में सत्तारूढ़ है, जबकि तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में, अन्नाद्रमुक तमिलनाडु में तथा राजग की सहयोगी ए.आई.एन.आर. कांग्रेस का पुड्डुचेरी में शासन है। इनमें से किसी भी राज्य में भाजपा प्रमुख खिलाड़ी नहीं है। यह पश्चिम बंगाल में विस्तार का प्रयास कर रही है। तमिलनाडु तथा केरल में कुछ अधिक सीटें ही प्राप्त करके पार्टी को खुशी मिलेगी। असम में इसकी अच्छी संभावनाएं हैं।
 
अत: यह वर्ष भाजपा के लिए कोई बहुत अच्छा जाने वाला नहीं है और यदि कुछ बोनस सीटें मिलती हैं तो पार्टी को खुश हो जाना चाहिए मगर वर्ष 2017 महत्वपूर्ण है जब उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में चुनाव होंगे। इसके लिए तैयारियां 2016 में ही शुरू करनी होंगी। आखिरकार 2014 की सफलता का मुख्य श्रेय इसकी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में कारगुजारी को जाता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 2014 में 80 में से 73 सीटें जीतीं मगर तब से इसने लगभग हर चुनाव में अपना आधार गंवाया है जिनमें स्थानीय निकाय से लेकर उपचुनाव शामिल हैं। अमित शाह को अपनी रणनीति पर दोबारा काम करना होगा मगर चुनौती यह है कि वह कितनी दूर तक जाएंगे और किस हद तक समझौता करेंगे। 
 
तीसरा तथा सबसे महत्वपूर्ण, यह  इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह नए कार्यकाल में मोदी का कितना विश्वास प्राप्त कर पाएंगे। नि:संदेह फिलहाल वह सबसे विश्वासपात्र व्यक्ति हैं, जो इस बात से प्रत्यक्ष है कि कैसे मोदी ने उन पर दूसरा कार्यकाल प्राप्त करने के लिए दबाव डाला। 
 
चौथा, क्या मोदी-शाह की जोड़ी पार्टी के पुराने लोगों के प्रति अपने बर्ताव में परिवर्तन लाकर उनके साथ पुन: बातचीत शुरू करेगी या उनका मार्गदर्शन प्राप्त करेगी और यदि ऐसा होता है तो किस हद तक। इस बात में कोई संदेह नहीं कि पुराने नेताओं ने पिछले दरवाजे से संघ के माध्यम से अमित शाह का कार्यकाल जारी रखने पर रोक लगाने के प्रयास किए, मगर सफल नहीं हुए।
 
पांचवां, आने वाले वर्षों में भाजपा किस तरह की रणनीति अपनाएगी। क्या यह अधिक उदार बनेेगी अथवा कड़ा रुख अपनाएगी या फिर दोनों का मिश्रण होगा? उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और ऐसा दिखाई देता है कि 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी राम मंदिर के मुद्दे की ओर लौट रही है। 15 अप्रैल से विश्व हिन्दू परिषद राम महोत्सव की शुरूआत कर रही है, जिसमें आशा है कि विश्व हिन्दू परिषद तथा संघ कार्यकत्र्ता भगवान राम की प्रतिमा के साथ 1.25 लाख गांवों में पहुंचेंगे। 
 
सबसे बढ़कर शाह को अपनी टीम चुननी होगी, जो पार्टी तथा कार्यकत्र्ताओं में विश्वास पैदा करने में सक्षम हो। यह उनकी सबसे पहली परीक्षा होगी। अभी तक उन्हें अपने सदस्यता अभियान में सफलता मिली है और उन्होंने कांग्रेस को पछाड़कर भाजपा को विश्व की सबसे बड़ी एकल पार्टी बना दिया है। उनके संगठनात्मक कौशल को हर ओर से प्रशंसा मिली है। अमित शाह को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी ‘काम करने’ वाली छवि उनके दूसरे कार्यकाल में भी बनी रहे। यदि भाजपा 2019 में वापसी करना चाहती है तो उसे अभी से तैयारियां शुरू करनी होंगी। उनका कौशल अवरोधों से पार पाने में निहित है और मोदी-शाह की जोड़ी को न केवल अच्छी रणनीति बल्कि भाग्य की भी जरूरत है। 
 
IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!