अदालती कार्रवाई को हर हालत में लटकाना चाहता है शरीफ परिवार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Oct, 2017 01:36 AM

sharif wants to hang court action in every condition

पाकिस्तानी नैशनल असैम्बली में नवाज शरीफ के दामाद कैप्टन (रि.) सफदर की अहमदियों के विरुद्ध निकाली भड़ास के तत्काल बाद पी.एम.एल. (एन.) के एक हताश नेता ने मेरे पास दुखड़ा रोया: ‘‘ऐसा लगता है कि हमारी पार्टी ने आत्महत्या करने का इरादा कर रखा है।’’ वैसे...

पाकिस्तानी नैशनल असैम्बली में नवाज शरीफ के दामाद कैप्टन (रि.) सफदर की अहमदियों के विरुद्ध निकाली भड़ास के तत्काल बाद पी.एम.एल. (एन.) के एक हताश नेता ने मेरे पास दुखड़ा रोया: ‘‘ऐसा लगता है कि हमारी पार्टी ने आत्महत्या करने का इरादा कर रखा है।’’

वैसे प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने पूरे प्रकरण को शांत करते हुए घोषणा की कि यह घृणा भाषण की बजाय भावनात्मक आक्रोश थी। यदि यह कोई इक्का-दुक्का घटना होती तो हम प्रधानमंत्री से सहमत हो सकते थे लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि स्थिति ऐसी नहीं। शुक्रवार की सुबह राष्ट्रीय जवाबदारी ब्यूरो (एन.ए.बी.) की अदालत के बाहर काले कोट पहने पी.एम.एल. (एन.) के गुंडों ने खूब हंगामा मचाया क्योंकि उस अदालत में शरीफ, उनकी बेटी मरियम तथा दामाद को दोषी सिद्ध किया जाना था।

पार्टी के गुंडों से ऐसी कार्रवाई करवाना शरीफ परिवार की मानसिकता को उजागर करता है। यह कोई पहला मौका नहीं जब पी.एम.एल.(एन.) ने अपने नेताओं की सुनवाई कर रही अदालतों पर हमला किया हो। ताजा हमला 1997 की घटनाओं की पुनरावृत्ति है जब पी.एम.एल. (एन.) के मंत्रियों के नेतृत्व में इसके दिग्गज नेताओं ने सुप्रीमकोर्ट की इमारत पर ही धावा बोल दिया था जहां मुख्य न्यायाधीश (सी.जे.पी.) सज्जाद अली शाह उनके नेता नवाज शरीफ के विरुद्ध अवमानना याचिका की सुनवाई कर रहे थे। 

कहने को बेशक ऐसी घटनाओं को पागलपन करार दिया जाता है लेकिन इस पागलपन के पीछे निश्चय ही सुनियोजित इरादे होते हैं। बेचारे जवाबदारी जज को मजबूर होकर अगले दिन तक कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी। स्पष्ट तौर पर ऐसा आभास होता है कि कभी पाकिस्तान का ‘प्रथम परिवार’ रह चुका शरीफ खानदान जवाबदारी अदालत की कार्रवाई को हर संभव ढंग से लटकाना चाहता है। चरमपंथी राजनीतिज्ञ के रूप में विख्यात मरियम अपनी ही किस्म का राजनीतिक खेल खेल रही हैं। सत्ता में रहते हुए शरीफ पर अपनी बेटी को अपनी राजनीतिक वारिस के रूप में सत्तासीन करने का भूत सवार था लेकिन भाग्य की विडम्बना देखिए कि वह सब कुछ खो बैठे। परन्तु अभी भी ऐसा लगता है कि उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है। 

ऐसा लगता है कि मरियम सेना विरोधी कुंठाओं से ग्रस्त हैं और उनके पति की नौटंकियों से भी यही आभास मिलता है। कायदे आजम यूनिवर्सिटी में अहमदी समुदाय से संबंधित नोबेल पुरस्कार विजेता डा. अब्दुस्लाम चेयर (पीठ) की स्थापना तथा सलमान तासीर के कातिल मुमताज कादरी को फांसी लगाने की दोनों ही घटनाएं बड़े मियां शरीफ की निगरानी में अंजाम दी गई थीं। समाचारों के अनुसार मरियम के करीबी सलाहकारों में कुछ ऐसे लोग हैं जिनका अपना ही सेना विरोधी एजैंडा है। 

सीनेट में विपक्ष के नेता चौधरी एतजाज अहसान के अनुसार अहमदियों के विरुद्ध सफदर का आग उगलना वास्तव में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को निशाना बनाने का एक घटिया प्रयास था। सेना के इस शीर्ष पद के लिए बाजवा का चयन खुद नवाज शरीफ ने किया था। इसके बावजूद तब सेना के ही कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की शह पर उनके विरुद्ध कानाफूसी अभियान चलाया जा रहा है ताकि उनका रास्ता रोका जाए। 

स्पष्ट तौर पर यह तोहमतबाजी चूंकि बाजवा के ही कुछ प्रतिद्वंद्वियों द्वारा फैलाई गई थी इसलिए यह अधिक प्रभावी नहीं हो पाई लेकिन फिर भी यह सचमुच शर्म की बात है कि प्रधानमंत्री रहते हुए तो नवाज शरीफ ने इन कानाफूसियों और झूठी अफवाहों की अनदेखी करते हुए सबसे काबिल व्यक्ति का सेना प्रमुख के रूप में चयन किया लेकिन बाद में अपने ही दामाद द्वारा चलाए जा रहे जहरीले निंदा अभियान से खुद को दूर नहीं रख पाए।

इंटर सर्विस लोक सम्पर्क (आई.एस.पी.आर.) के महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफूर ने बिल्कुल सही टिप्पणी की है कि किसी को भी अपने मुस्लिम होने के बारे में दूसरों को स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं। यह केवल व्यक्ति और अल्लाह के बीच का मामला है। पाकिस्तानी पंजाब के कानून मंत्री राणा सनाउल्लाह को बिना सोचे-समझे जुबान चलाने की बीमारी काफी पुरानी है। तब तो वह बिल्कुल सीमा ही लांघ गए जब उन्होंने यह घोषणा कर दी कि हजरत मोहम्मद साहिब को अंतिम पैगम्बर मानने की बात छोड़कर अन्य सभी मामलों में अहमदी समुदाय के लोग व्यावहारिक रूप में मुस्लिम ही हैं। इससे पहले कि मौलवी लोग उनके इस बयान की प्रतिक्रिया में जवाबी आंदोलन पर उतारू हो जाएं, सनाउल्लाह के बॉस शाहबाज शरीफ को चाहिए कि उन्हें अपना बयान वापस लेने का आदेश दें। 

सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित वकीलों की गुंडागर्दी और शरीफ के दामाद की बदजुबानियों के बावजूद पी.एम.एल. (एन.) अंदर से ही विखंडित हो रही लगती है। अफसरवादिता एवं दलबदली की साकार मूर्ति मीर जफरूल्लाह खान जमाली का अचानक पार्टी को अलविदा कह देना किसी के लिए हैरानीजनक नहीं होना चाहिए। वैसे इस तरह के लोग यदि सत्तारूढ़ पार्टी को छोड़ जाते हैं तो उसे इस पर रुदन करने की जरूरत नहीं। वास्तव में इसे उम्मीद करनी चाहिए कि कई अन्य लोग भी जमाली का ही अनुसरण करेंगे। 

शरीफ इस समय लंदन में अपनी बीमार पत्नी की सेवा-सुश्रुषा में लगे हुए हैं और इसी बहाने राष्ट्रीय जवाबदारी ब्यूरो के डंडे से भी बच रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री अब्बासी को या तो सूझ ही नहीं रहा कि वह इस स्थिति में क्या कहें या वे लाचार हैं या शायद दोनों ही बातें लागू होती हैं। ऐसा आभास होता है कि सत्ता से बाहर किए गए प्रधानमंत्री शरीफ अभी भी खुद अपने द्वारा चयनित प्रमुख सचिव फवाद हसन फवाद के माध्यम से लंदन में बैठे-बिठाए रिमोट कंट्रोल से सरकार चला रहे हैं। लेकिन इस्हाक डार का रहस्यमय मामला सबसे अधिक दिलचस्प है। उन्हें जवाबदारी अदालत पहले ही दोषी करार दे चुकी है और अब अभियोजकों द्वारा उनसे जबरदस्त ढंग से पूछताछ की जा रही है। इसके बावजूद वह वित्त मंत्री के तौर पर अपनी कुर्सी पर हठधर्मी से जमे हुए हैं। 

कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार डार न तो अपना पद छोडऩे वाले हैं और न ही प्रधानमंत्री ने उन्हें ऐसा करने को कहा है। यही समझा जाना चाहिए कि अब्बासी अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के दामाद के विरुद्ध कोई कड़ा कदम उठाने की इच्छा ही नहीं रखते। हाल ही में हुई एक सुरक्षा बैठक, जहां इस्हाक डार भी उपस्थित थे, में सेना प्रमुख ने अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर कुछ आशंकाएं व्यक्त की थीं। अब उन्होंने इन आशंकाओं को सार्वजनिक करने का फैसला ले लिया है। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा व अर्थव्यवस्था के अंतर संबंधों को रेखांकित करके बिल्कुल सही बात की है। 

यह तो स्वत: स्पष्ट है कि मजबूत आर्थिक आधार के बिना सदा के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी नहीं की जा सकती। इस संबंध में सेना प्रमुख ने पूर्व सोवियत यूनियन के विखंडन का उदाहरण दिया। यह पूर्व महाशक्ति अपने विशाल परमाणु शस्त्रागार और 300 डिवीजन की मजबूत शक्ति वाली सेना से अमरीका को चुनौती दे रही थी लेकिन आर्थिक बदहाली में से पैदा हुई राजनीतिक उथल-पुथल ने आखिर इसकी बलि ले ही ली। प्रधानमंत्री अब्बासी स्वयं एक व्यवसायी हैं और पी.एम.एल.(एन.)के एक पुराने दिग्गज नेता हैं, इसलिए वह भली-भांति जानते हैं कि अर्थव्यवस्था को कैसे संचालित करना है। उन्हें अपनी टीम गठित करने की छूट होनी चाहिए। लेकिन किसी न किसी बहाने नवाज शरीफ उनकी लगाम खुली छोड़ने को टाल रहे हैं। 

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