शेख हसीना की विजय भारत के लिए ‘अच्छी खबर’

Edited By Pardeep,Updated: 03 Jan, 2019 04:12 AM

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प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाले बंगलादेश के सत्ताधारी गठबंधन की हालिया चुनावों में रिकार्डतोड़ विजय के कारण जहां विपक्ष रोने-धोने में लगा है और चुनावों में धोखाधड़ी का आरोप लगा रहा है, वहीं उनकी विजय भारत के लिए एक अच्छी खबर है। जिन 300...

प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाले बंगलादेश के सत्ताधारी गठबंधन की हालिया चुनावों में रिकार्डतोड़ विजय के कारण जहां विपक्ष रोने-धोने में लगा है और चुनावों में धोखाधड़ी का आरोप लगा रहा है, वहीं उनकी विजय भारत के लिए एक अच्छी खबर है। जिन 300 संसदीय सीटों पर चुनाव हुए थे, शेख हसीना की पार्टी ने उनमें से अप्रत्याशित तौर पर 288 सीटें जीती हैं। दो सीटों पर अभी परिणाम घोषित होने हैं। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया, जो भ्रष्टाचार के मामले में जेल में हैं, के मुख्य विपक्षी गठबंधन ने केवल 7 तथा अन्य ने केवल 3 सीटें जीती हैं। 

शेख हसीना, जो बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं, जिन्हें राष्ट्रपिता माना जाता है क्योंकि उन्होंने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व किया था, के लिए यह लगातार तीसरा कार्यकाल है। मुजीब की दुखदायी हत्या से भारत-बंगलादेश संबंधों को चोट पहुंची थी। इसके पश्चात सेना समर्थित बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बी.एन.पी.) द्वारा अतिवादी संगठन जमात-ए-इस्लामी के सहयोग से सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद 2001-06 के बीच इसके शासनकाल के दौरान दोनों देशों के बीच संबंध अत्यंत निचले स्तर तक गिर गए। 

पिता की परम्परा को जारी रखा
हसीना अपने पिता द्वारा स्थापित परम्परा तथा गति बनाए हुए थीं और उन्होंने भारत के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों को बनाए रखा। दरअसल भारत बंगलादेश को विदेशी सहायता उपलब्ध करवाता है। यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि भारत के अधिकतर अन्य पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं हैं। इसका एक कारण क्षेत्र में चीनी हितों में वृद्धि तथा उस देश के उन शासनों की तरफ वापस लौटने का रुझान हो सकता है, जो भारत के साथ मैत्रीपूर्ण नहीं हैं। ऐसे तीन देशों, पाकिस्तान, भूटान तथा नेपाल में 2018 के दौरान सरकारों में बदलाव भारत के लिए कोई अधिक खुशी नहीं लाया। उस रोशनी में हसीना नीत गठबंधन की विजय भारत के लिए एक बहुत बड़ी राहत भी है। कोई हैरानी की बात नहीं कि हसीना को विजय की बधाई देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले व्यक्ति थे। उन्होंने आशा जताई कि अपने नागरिकों के कल्याणार्थ दोनों देश अपने संबंधों को मजबूत बनाना जारी रखेंगे। 

70 वर्ष पुराना विवाद निपटाया
पिछले ही वर्ष दोनों देशों ने जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर क्षेत्रीय अधिकार का 70 वर्ष पुराना विवाद सुलझाया था। दोनों देशों ने 1 अगस्त 2015 को औपचारिक रूप से 162 गांवों या बस्तियों का आदान-प्रदान किया। ये गांव एक-दूसरे देश के भीतर बिखरे हुए अथवा विवादित क्षेत्र थे। विभाजन के समय भारत तथा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान ने एक-दूसरे की नई बनी सीमाओं के भीतर लगभग 119 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बसे गांवों को अपने पास रख लिया था। इन गांवों के निवासियों को गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ता था तथा वे मूलभूत अधिकारों से भी वंचित थे। अदल-बदल के समय एक अनुमान के अनुसार 38000 भारतीय बंगलादेश में रह रहे थे तथा 15000 बंगलादेशी भारत में। यह दोनों देशों के बीच बड़े लम्बे समय से विवाद का बिन्दू बना हुआ था तथा इसके अंतिम समाधान का श्रेय अवश्य ही मोदी तथा शेख हसीना को सांझे तौर पर जाता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नई सरकार ने आशा जताई है कि सभी अन्तर्देशीय विवादों को इसी तरह सुलझा लिया जाएगा। इनमें तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद भी शामिल है। 

आलोचना के पहलू
जहां उनकी सरकार की वापसी भारत के लिए अच्छी खबर है, वहीं उनके शासन के कुछ ऐसे भी पहलू हैं, जो आलोचना का कारण बन रहे हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार में धकेलने की उनकी सरकार की कार्रवाई की मानवाधिकार समूहों ने कड़ी आलोचना की है। हालांकि भाजपा नीत भारत सरकार बंगलादेश सरकार का समर्थन करती दिखाई देती थी। ऐसे भी कई उदाहरण हैं जिनमें असंतुष्टों तथा विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया अथवा सार्वजनिक रूप से उनसे मारपीट की गई।

सरकार के खिलाफ बोलने के लिए लेखकों तथा सामाजिक कार्यकत्र्ताओं की पिटाई और यहां तक कि हत्या करने के भी मामले हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि चुनावों से पूर्व उनके उम्मीदवारों के बीच डर का माहौल था, जिस कारण लगभग 100 उम्मीदवारों ने चुनावों से अपने नाम वापस ले लिए। अगले 5 वर्षों तक निश्चित शासन के साथ शेख हसीना को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता तथा अपनी सरकार की आलोचना की ङ्क्षचता करने की जरूरत नहीं है। उन्हें उस देश में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने के लिए आवश्यक तौर पर लोकतांत्रिक नीतियां अपनानी होंगी। अन्यथा यह भी उसी रास्ते पर चला जाएगा जिस पर पाकिस्तान चला गया है, जिससे इसने 1971 में आजादी प्राप्त की थी।-विपिन पब्बी

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