महिला सशक्तिकरण के लिए कुछ करके दिखाएं राजनीतिक दल

Edited By ,Updated: 08 Apr, 2021 04:11 AM

show political party by doing something for women s empowerment

आधी आबादी में महिलाओं के शामिल होने के बावजूद देश में चुनावी प्रक्रिया में उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। कांग्रेस सहित अनेकों राजनीतिक पाॢटयां कम से कम 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वायदा करती आई हैं। लेकिन जब ये पाॢटयां टि

आधी आबादी में महिलाओं के शामिल होने के बावजूद देश में चुनावी प्रक्रिया में उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। कांग्रेस सहित अनेकों राजनीतिक पाॢटयां कम से कम 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वायदा करती आई हैं। लेकिन जब ये पाॢटयां टिकट वितरण की बात करती हैं तो वे इस पर खरी नहीं उतरतीं। 

फिर भी उनकी मतदान करने की शक्ति को ध्यान में रखते हुए महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी प्रकार के उपहारों की घोषणा की जाती है। इस बार तमिलनाडु में महिला मतदाताओं को वाशिंग मशीन दी जा रही है जबकि मुफ्त गैस स्टोव, घरेलू कार्यों के लिए नकदी, बालिकाओं के लिए आरक्षित रियायतें और इसी तरह के प्रोत्साहन का वायदा महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए किया गया है। 

4 राज्यों तथा एक केंद्र शासित प्रदेश में मौजूदा चुनाव दुर्भाग्य से वही कहानी दोहराते हैं। तमिलनाडु जिसने एक बार शक्तिशाली और प्रसिद्ध मुख्यमंत्री जे.जयललिता को देखा है, में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को मात्र 10 प्रतिशत टिकट ही दिए गए हैं। देश में सबसे अच्छी साक्षरता दर वाले राज्य केरल में महिलाओं को केवल 9 प्रतिशत टिकटें दी गई हैं। असम में तो यह 7.8 प्रतिशत की दर से महिला उम्मीदवारों को टिकटें दी गई हैं। 

पश्चिम बंगाल में जहां पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए जोर लगा रही हैं, की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने 50 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं, जो 17 प्रतिशत की दर बनती है। भाजपा से यह दर फिर भी अच्छी है। उसने तृणमूल द्वारा दी गई टिकटों का आधा ही दिया है। लेकिन अभी भी देश में महिलाओं की आबादी के अनुसार महिलाएं आदर्श प्रतिनिधित्व से बहुत दूर हैं। 

2019 के लोकसभा चुनावों में 7215 पुरुष उम्मीदवारों की तुलना में केवल 724 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा जो कुल उम्मीदवारों की संख्या का मात्र 10 प्रतिशत है। वर्तमान में महिलाएं भारत के निचले सदन में केवल 14 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करती हैं जो 2014 के बाद से मामूली 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उस समय 636 महिला उम्मीदवारों में से 61 ने जीत हासिल की थी। विडम्बना देखिए कि जहां पंचायत चुनावों के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का संवैधानिक प्रावधान है, वहीं प्रमुख राजनीतिक दलों में से कोई भी महिलाओं के लिए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए इस तरह का प्रावधान करने को तैयार नहीं है। 

दिलचस्प बात यह है कि जब पाॢटयां महिलाओं को टिकट देती हैं जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनावों में 8.8 प्रतिशत महिलाएं खड़ी थीं। इनमें से ज्यादातर आरक्षित सीटों जोकि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए नामित थीं। आश्चर्य नहीं है कि अपने राष्ट्रीय सांसदों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के प्रतिशत के आधार की बात करें तो भारत 2019 की 193 देशों की सूची में 149वें स्थान पर था। यह वास्तव में पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से भी पीछे है। पिछले सप्ताह जारी वार्षिक वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की नवीनतम रिपोर्ट में लिंग अंतर रैंकिंग में भारत की स्थिति 156 देशों के बीच 140वीं थी। फोरम ने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आॢथक अवसर और राजनीतिक सशक्तिकरण के 4 मापदंडों को अपने आंकड़ों के लिए आधार बनाया है। 

यदि राजनीतिक दल टिकट आबंटित करते समय महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं देते तो समय आ गया है कि संविधान में संशोधन किया जाए। राज्य विधानसभाओं और संसद में महिलाओं के लिए न्यूनतम प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।-विपिन पब्बी
 

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