Edited By ,Updated: 23 Jul, 2022 04:46 AM
भारत एक विविध तथा जीवंत लोकतंत्र है तथा वैश्विक समुदाय के विस्मय के लिए यह एकमात्र देश है जिसने अभिव्यक्तियों के रूप में सिंधु घाटी की सभ्यता से ही अपनी विरासत को संरक्षित करके
भारत एक विविध तथा जीवंत लोकतंत्र है तथा वैश्विक समुदाय के विस्मय के लिए यह एकमात्र देश है जिसने अभिव्यक्तियों के रूप में सिंधु घाटी की सभ्यता से ही अपनी विरासत को संरक्षित करके रखा है। भारत के लोकतांत्रिक संघ को किसी समय लोकतंत्र में विश्व की तीसरी प्रायोगिक प्रयोगशाला समझा जाता था। तथापि समय-समय पर देश द्वारा कई समस्याओं को झेलने के बावजूद यह क्रियाशीलता के तौर पर परिपक्व हुआ है।
हालांकि हाल ही के वर्षों में चीजें नाटकीय ढंग से बदली हैं क्योंकि इस देश में पहले से कहीं ज्यादा दमन और ज्यादा सामने आया है। नफरत के बोल, राष्ट्रवाद तथा असहनशीलता उन सिद्धांतों पर हमला कर रहे हैं जिन्होंने भारत को विश्व भर में एक समावेश और विविधता का एक अच्छा मॉडल बनाया था। हमारे लोकतंत्र में ऐसी ताकतों ने विश्वास का स्तर बहुत कम किया है। विविध पहचान, विश्वास और सामाजिक-आॢथक परिदृश्यों का सच्चा प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार नहीं रही।
राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की राजस्थान शाखा के तत्वावधान में संसदीय लोकतंत्र की 75वीं संगोष्ठी को संबोधित करने के दौरान सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्ट्सि एन.वी. रमन्ना ने कहा, ‘‘राजनीतिक विरोध, बैर में नहीं बदलना चाहिए। जैसा कि हम इन दिनों देख रहे हैं। यह स्वस्थ लोकतंत्र के संकेत नहीं हैं।’’ उन्होंने आगे कहा कि, ‘‘सरकार और विपक्ष के बीच आपसी आदर-भाव हुआ करता था, दुर्भाग्य से विपक्ष के लिए जगह कम होती जा रही है।’’
संसद एक लोकतंत्र का प्रमुख संस्थान है। इसका सम्मान विपक्ष तथा सत्ताधारी सरकार दोनों द्वारा किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में मेरा मानना है कि आपसी शत्रुता में से प्रतिस्पर्धा नकारात्मकता उपजाती है। यह बात किसी भी राजनीतिक दल को लम्बे समय तक अपनी सद्भावना को बनाए रखने में सहायक सिद्ध नहीं होती। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायपालिका तथा चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थानों को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष तौर पर कार्य करने के लिए यकीनी बनाया जाए। यहां तक कि सी.बी.आई. तथा सी.आई.डी. जैसी जांच एजैंसियों को भी ध्यानपूर्वक चलाना चाहिए। इन दोनों का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए जैसे कि दुर्भाग्यवश आज के दौर में हो रहा है।
देश की महत्वपूर्ण संस्थाओं को पेशेवराना और स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए। सुप्रीमकोर्ट ने एक बार सी.बी.आई. को ‘पिंजरे का तोता’ और ‘अपने मालिक की आवाज’ कह कर बुलाया था। इस संदर्भ में यह कहा जाना चाहिए कि सरकार की कार्यप्रणाली न केवल स्वच्छ और पारदर्शी हो बल्कि सभी के लिए एक जैसी हो। लोकतांत्रिक संस्थानों को बचाने के लिए यही बात राष्ट्रहित में है। हमें सरकारी संस्थानों को नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों तथा संवैधानिक तौर पर आशीर्वाद प्राप्त संस्थानों के साथ नहीं खेलने देना चाहिए।
भारत के समक्ष आज की बड़ी चुनौती भारत को फास्ट ट्रैक पर लाने की है जिसमें पारदर्शी और जवाबदेही वाली सरकारी प्रणाली हो। इसके लिए जीवंत तथा सक्रिय विपक्ष की जरूरत है ताकि सत्ताधारी सरकार को सही दिशा में लाया जा सके।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रमन्ना ने सरकार की कार्यप्रणाली को सही करने और सरकार का स्तर सुधारने के लिए एक जीवंत और क्रियाशील विपक्ष की भूमिका पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि, ‘‘एक आदर्श विश्व में प्रगतिशील लोकतंत्र का नेतृत्व करने के लिए विपक्ष तथा सरकार की कार्यप्रणाली में सहयोग होना चाहिए एक प्रोजैक्ट लोकतंत्र सभी हिस्सेदारों का एक संयुक्त प्रयास है।’’ हालांकि महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि एक जीवंत विपक्ष का किस तरह से निर्माण किया जाए? सभी लोकतंत्रों को क्रियाशील होने के लिए उन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष गति रखना जरूरी है। विपक्ष का काम है कि सरकार की गलतियों को उजागर करे।
हमारी कार्यप्रणाली का आलोचनात्मक आकलन करते हुए यह कहा जाना चाहिए कि लोकतांत्रिक भारत को सभी नागरिकों को सामान मौके उपलब्ध करवाने के लिए पुन: संगठित होने की जरूरत है। सिविल सोसाइटी की अनिवार्य भागीदारी भी जरूरी है जो जीवंत लोकतंत्र में एक नई ऊर्जा का संचार करती है। सत्ताधारी सरकार तथा विपक्षी दलों को सिविल सोसाइटी की शक्ति को उन्मुक्त करने की जरूरत है।
सत्ता जमीनी स्तर से उपजती है इसीलिए लोकतांत्रिक शक्ति को जमीनी स्तर से अपनी ताकत पकडऩी चाहिए और सभी गरीबों के समावेशी विकास के लिए कार्य करना चाहिए। हमारे विविध समाज में नागरिकों के सभी वर्गों के बीच आपसी तालमेल के विभिन्न सेतुओं के निर्माण की जरूरत है। यह भी महत्वपूर्ण बात है कि इस व्यवस्था में शून्य पर खड़े लोगों के उत्थान के लिए विपक्षी पार्टियां उनकी उम्मीदों को जीवित रखे।
मेरा मानना है कि सार्वजनिक जीवन में विपक्षी नेताओं के साथ-साथ महत्वपूर्ण पदों पर आसीन लोग सत्ता की हेकड़ी दिखाने और घोटालों की चाह में पैसे बनाने का कार्य न करें। हमारा लक्ष्य अच्छे प्रशासन को देना तथा विकासशील एजैंडे को आगे बढ़ाने का है। भारतीय लोकतंत्र में लोग अपने बेहतर पहलुओं को समझें। लोगों के समक्ष सरकारी मामलों के गंभीर क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर उचित व्यक्तियों को स्थापित करने की बात होनी चाहिए। यह बात प्रशासन में ज्यादा खुलापन लाएगी। यहां देश में समस्या नेताओं की गुणवत्ता की है जो लोगों को भटकाते हैं।-हरि जयसिंह