स्लोवाकिया की ताईवान से बढ़ती नजदीकी से चीन की नींद उड़ी

Edited By ,Updated: 22 Dec, 2021 05:39 AM

slovakia s growing proximity to taiwan made china sleepy

चीन और ताईवान की शत्रुता किसी से छिपी नहीं है। चीन इस रणनीति के तहत काम कर रहा है कि पहले ताईवान को दुनिया में अलग-थलग कर दो, फिर उस पर हमला कर उसे अपनी सीमा में मिला लो। इस र

चीन और ताईवान की शत्रुता किसी से छिपी नहीं है। चीन इस रणनीति के तहत काम कर रहा है कि पहले ताईवान को दुनिया में अलग-थलग कर दो, फिर उस पर हमला कर उसे अपनी सीमा में मिला लो। इस रणनीति पर चलते हुए चीन ने ताईवान के कुछ दोस्तों को अपने पाले में करने में सफलता भी पाई है। 

ताईवान के 21 दोस्तों में से अब सिर्फ 14 देश ही उसके पाले में बचे हैं। चीन ने इन देशों को लालच, झांसा, धमकी देकर अपने पाले में मिलाया है, साम, दाम, दंड, भेद चारों तरीके अपनाए हैं। किसी देश में चीन ने रेल लाइन बिछाई है तो किसी में फुटबॉल स्टेडियम बनाया, कहीं सड़कें बनाईं तो कहीं पर कुछ लाख डॉलर वहां के राजनीतिज्ञों को देकर उनका मत अपने पक्ष में खरीद लिया। 

वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जिन्होंने न चीन की धमकी की परवाह की और न ही उसके लालच और झांसे में पड़े। इन देशों ने बहादुरी और निडरता के साथ ताईवान का साथ दिया, जिनमें यूरोप के छोटे देश लिथुआनिया और स्लोवाक गणराज्य (पूर्व में चेकोस्लोवाकिया) शामिल हैं। हाल ही में स्लोवाक गणराज्य के उप-कारोल गालेक की अध्यक्षता में 43 सरकारी अधिकारियों, व्यापारिक संस्थानों के प्रतिनिधियों और शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों ने ताईपे की 6 दिनों की यात्रा की।

इस यात्रा के दौरान स्लोवाक गणराज्य के अधिकारियों ने ताईवान के अधिकारियों से भेंट की और प्रमुख उच्च तकनीकी शोध संस्थानों का दौरा किया, जिसके बाद ताईवान के साथ 9 अलग-अलग क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिसमें व्यापार और उच्च तकनीकी सहयोग शामिल हैं। जिन देशों को चीन की मक्कारी और जालसाजी समझ में आ रही है वो चीन से दूर जा रहे हैं और तकनीकी रूप से विकसित ताईवान के साथ अपने संबंध जोड़ रहे हैं। जानकारों की राय में अभी यह छोटी शुरूआत है, आने वाले दिनों में कई और देश भी खुलकर ताईवान के साथ अपने राजनयिक संबंध बनाएंगेे। 

स्लोवाक गणराज्य के ताईवान के साथ राजनयिक संबंध बनाने के पीछे मध्य और पूर्वी यूरोप में चीन और ताईवान को लेकर राय बंटी हुई है। कुछ देश चीन का समर्थन करते हैं तो कुछ ताईवान का। पिछले 2 वर्षों में स्लोवाक गणराज्य और ताईवान के बीच संबंधों में गर्माहट देखी जा रही है। कोरोना महामारी के दौरान वर्ष 2020 में ताईवान ने स्लोवाकिया को बड़ी संख्या में पी.पी.ई. किट दान में दीं, साथ ही ताईवान में बने 7 लाख मास्क भी दिए जिसके बदले में सितम्बर 2021 में स्लोवाकिया ने 1.5 लाख एस्ट्राजेनिका कोरोना टीके ताईवान को देने की बात कही, जबकि इस वर्ष की शुरूआत में स्लोवाकिया ने 10,000 वैक्सीन ताईवान को देने की बात कही थी। 

दोनों देशों के बीच संबंधों का सकारात्मक असर व्यापार और वाणिज्य में भी देखने को मिला, जहां दोनों के बीच वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में व्यापार में 18.4 फीसदी का इजाफा देखा गया। ताईवान और स्लोवाकिया के बीच 25 करोड़ डॉलर का व्यापार हुआ। वहीं निवेश में भी बढ़ौतरी हुई, स्लोवाकिया में ताईवान ने 56 करोड़ डॉलर का निवेश किया। यूरोपीय संघ में ताईवान का ये दूसरा सबसे बड़ा निवेश है। 

स्लोवाकिया शिष्टमंडल की ताईवान यात्रा से चीन जरूर बौखलाया होगा, लेकिन इस समय मध्य और पूर्वी यूरोप में जो स्थितियां बन रही हैं, उन्हें देखते हुए इस यात्रा का चीन और ताईवान दोनों के लिए रणनीतिक महत्व है। इससे चीन के माथे पर बल पडऩा स्वाभाविक है। चीन ने वर्ष 2012 में 17+1 देशों का गठजोड़ बनाया था, जिसके तहत बाल्कन और बाल्टिक देशों समेत मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों को विशाल चीनी बाजार में अपने उत्पादों को लाने का निमंत्रण दिया था, इन देशों में चीनी निवेश की बात कही थी। वहीं चीन ने अपने तैयार माल को यूरोपीय देशों में पहुंचाने का खेल भी शुरू किया था। 

असल में चीन 17+1 देशों के समूह के जरिए यूरोप में अपनी पैठ बनाना चाहता था और एक-एक कर इन यूरोपीय देशों में अपने पक्ष में राय बनाना चाहता था और यूरोपीय संघ में अपनी पैठ बनाने की फिराक में था। लेकिन चीन की दाल यहां नहीं गली और उसने इन देशों से जो वायदे किए थे, वे पूरे नहीं होने पर इनमें चीन के खिलाफ गुस्सा भड़कने लगा, जो पिछले 2 वर्षों में पूरे क्षेत्र में फैल गया। 

वर्ष 2020 के अगस्त में चैक गणराज्य के 89 लोगों के शिष्टमंडल ने ताईवान की यात्रा की, जिसकी अध्यक्षता सीनेट अध्यक्ष मिलोस वैस्ट्रेसिल और प्राग के मेयर जेडेनेक हरिब ने की। चीन ने इसकी भत्र्सना भी की। कुछ समय बाद जर्मनी के संयुक्त राष्ट्र दूत क्रिस्टोफर ह्युसेजेन ने 39 देशों का प्रतिनिधित्व कर शिनच्यांग और हांगकांग के मुद्दे को लेकर चीन की निंदा भी की थी, इन 39 देशों में 17+1 समूह वाले 11 देश शामिल थे। 

अपनी हालत खराब होते देख राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में चीन ने इस वर्ष फरवरी में 17+1 समूह देशों का वर्चुअल सम्मेलन आयोजित किया, जिसकी बागडोर चीनी प्रधानमंत्री के हाथों में थी लेकिन कोविड महामारी में चीन की लापरवाही और वहां बढ़ रही तानाशाही से इस क्षेत्र के देश इतने नाराज थे कि 17+1 समूह देशों में से 6 देश बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया और स्लोवानिया इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए। 

इस घटना के बाद लिथुआनिया 17+1 देशों के समूह का साथ छोड़कर ताईवान के साथ आ गया। लिथुआनिया के विदेश मंत्री गेब्रियल लैंड्सबर्गिस ने 27 यूरोपीय संघ के देशों को चीन के झांसे से बाहर निकलने को कहा जिसका चीन ने सख्त विरोध किया क्योंकि लिथुआनिया यूरोपीय संघ में चीन की कलई खोल रहा था। सर्बिया और हंगरी जैसे देशों का भी चीन से मोह भंग होने लगा है। इसे देख कर लगता है कि जल्दी ही मध्य और पूर्वी यूरोपीय देश चीन का साथ छोड़ सकते हैं। 

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