बेरोजगारी दूर करने के लिए लघु उद्योगों को बचाना होगा

Edited By ,Updated: 17 Apr, 2021 04:27 AM

small scale industries have to be saved to overcome unemployment

पूरे  आपके बच्चे न झेलें बेरोजगारी की मार,आने वाली पीढ़ी के लिए करो लघु उद्योग तैयार विश्व में..

पूरे आपके बच्चे न झेलें बेरोजगारी की मार,
आने वाली पीढ़ी के लिए करो लघु उद्योग तैयार 
विश्व में 30 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना और रोजगार उत्पन्न करना होता है। विकासशील देशों के आॢथक विकास में लघु उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है इसलिए लघु उद्योगों को किसी देश की ‘रीढ़ की हड्डी’ भी कहा जाता है। 

किसी भी राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में वहां के छोटे उद्योगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लघु उद्योगों से भाव उन छोटे कामों या उद्योगों से होता है जो आम लोग छोटे पैमाने पर घरों में ही करते हैं। भारत में पुराने समय से ही लघु उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अंग्रेजों के भारत में आने के बाद देश में छोटे उद्योग तेजी से नष्ट हुए और कारीगरों ने बेरोजगार होते देख किसी और काम को अपना लिया। अंग्रेजों ने बना बनाया माल भारत में लाकर बेचा। आजादी के पश्चात भी उस समय की सरकारों ने इस तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। 

वर्तमान युग मशीन का युग है। अब लोग मोची के जूतों की जगह मल्टीनैशनल कम्पनी के जूते पहनना पसंद करते हैं। कोल्हू के तेल के स्थान पर मिल से निकला हुआ तेल पसंद करते हैं। घर पर बनाए हुए कपड़ों के स्थान पर सिंथैटिक कपड़े पहनना पसंद करते हैं। यही कारण है कि छोटे उद्योगों में लगे सैंकड़ों हाथ बेकार हो गए। बड़ी-बड़ी मशीनों से निकलने वाले धुएं और कचरे के कारण जहां पर्यावरण दूषित हुआ है, वहीं पर बेरोजगारी भी बढ़ी है। यही कारण था कि गांधी जी को उस समय कहना पड़ा, ‘मशीनों को काम देने से पहले आदमी को काम दो।’ छोटे उद्योगों की स्थापना करके कुछ हद तक बेरोजगारी की समस्या को सुलझाया जा सकता है। 

इसके लिए घर-घर में छोटे उद्योगों का जाल बिछाना होगा। जैसे मधुमक्खी पालन, चमड़ा उद्योग, डायरी फार्म, लकड़ी और मिट्टी के खिलौने, रैडीमेड कपड़े का उद्योग, पापड़ उद्योग, जेली उत्पादन, अनेक प्रकार के अचार, टोकरी और बेंत के फर्नीचर का निर्माण, मुर्गी, मछली, भेड़, बकरी पालन, गिफ्ट पैकिंग करना, पानी के पाऊच बनाना, सिरका बनाना, हवन सामग्री बनाने का उद्योग, रंग-गुलाल बनाने का उद्योग, टूथ पाऊडर बनाने का उद्योग, लेई और गम बनाने का उद्योग, अगरबत्ती बनाने का उद्योग, साबुन बनाना तथा टिफिन बनाना जैसे उद्योगों को घर पर लगाकर लाखों लोगों को रोजगार दिया जा सकता है। 

आज के समय में गांव के अधिकतर लोग खेती करके ही अपना जीवन गुजारते हैं लेकिन जब बाढ़ आने के कारण सारी की सारी फसल नष्ट हो जाती है तब वे लोग भी इन्हीं छोटे उद्योगों की सहायता से अपना पालन-पोषण करते हैं। जिन क्षेत्रों में बड़े उद्योग धंधे स्थापित नहीं किए जा सकते तो उन क्षेत्रों में कम लागत से छोटे उद्योगों का विकास करके देश का विकास किया जा सकता है। छोटे उद्योगों में साड़ी, कालीन, शॉल, बांस द्वारा बनाई गई वस्तुओं की आज भी बहुत अधिक मांग है। वस्तुओं की अधिक मांग होने के कारण वस्तुओं का निर्माण भी अधिक होगा और लोगों द्वारा अधिक कार्य करने से लोगों की आय में वृद्धि भी अधिक होगी।

इस समय तकनीक की भरमार है, पुराने तरीके से छोटा व्यापार करना बेकार है। इस समय देश में छोटे कारखानों की संख्या मोटे तौर पर एक करोड़ से अधिक आंकी गई है क्योंकि भारत जैसे विशाल देश में देश की अधिकतर जनसंख्या अब भी छोटे-छोटे व्यवसायों  से अपनी जीविका चलाती है। किसानों को वर्ष में कई महीने बेकार बैठना पड़ता है क्योंकि कृषि में रोजगार की प्रकृति मौसमी होती है। 

इस बेरोजगारी को दूर करने के लिए कुटीर उद्योगों का सहायक साधनों के रूप में विकास होना चाहिए। भारत जैसे विकासशील देश के लिए लघु उद्योगों का विकास अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह बहुत बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न करते हैं। भारत में बेरोजगारी इस समय अपने चरम पर है। लघु उद्योगों के विकास में जो भी चुनौती है, उस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। भारत के युवा भी इस समय लघु उद्योग को ज्यादा महत्व देते हैं। 

आज का नौजवान कम उम्र में अपना एक बिजनैस खड़ा करना चाहता है, नाम कमाना चाहता है। देश को पूरी तरह सफल बनाने के लिए हमारी सरकार वैज्ञानिक तरीके से लोगों के साथ चलकर लघु उद्योगों को संचालित करने की व्यवस्था कर रही है। इसकी सफलता के बाद ही हमारे जीवन में पूरी तरह शांति, समृद्धि और सुख की कल्याणकारी आवाज गूंज सकेगी। अत: तकनीकी ज्ञान और अपने हुनर को बेहतर बनाकर देखो, एक बार लघु उद्योगों में अपनी किस्मत आजमाकर देखो।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 

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