एम.एस.एम.ईज का हक छीन चंद ऑटोमोबाइल कम्पनियों को प्रोत्साहन

Edited By ,Updated: 29 Sep, 2021 03:59 AM

snatch the rights of msmes and encourage few automobile companies

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को गति देने का अनुभव आधारित सच यह है कि उसे व्यावहारिक आकार देने में सरकार की प्रोत्साहन स्कीमों की बड़ी भूमिका है लेकिन उन्हें समग्र दृष्टिकोण के साथ बनाए जाने की जरूरत है। अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए भारत सरकार ने...

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को गति देने का अनुभव आधारित सच यह है कि उसे व्यावहारिक आकार देने में सरकार की प्रोत्साहन स्कीमों की बड़ी भूमिका है लेकिन उन्हें समग्र दृष्टिकोण के साथ बनाए जाने की जरूरत है। अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए भारत सरकार ने संकटग्रस्त मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर के लिए उत्पादन से जुड़ी इंसैंटिव ‘पी.एल.आई.’ स्कीमों की घोषणा की है। 23 सितम्बर को सरकार ने ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनैंट आपूर्तिकत्र्ता उद्योग के लिए 25,938 करोड़ रुपए की पी.एल.आई. स्कीम नोटिफाई की है। 

देखने में यह थोड़ा सुखद लग सकता है लेकिन तथ्य यह है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ईज.) को इस पी.एल.आई. स्कीम से एक भी धेला नहीं मिलेगा। यहां तक कि भारत के ऑटो कंपोनैंंट उद्योग के ‘मक्का’ कहे जाने वाले पंजाब के लुधियाना और जालंधर की भी घोर उपेक्षा की गई है। यदि एम.एस.एम.ईज के हितों को ताक पर रख कुछ बड़ी कम्पनियों को प्रोत्साहित किया जाता है तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिद्धांत ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के विपरीत है। 

ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनैंंट आपूर्त्तिकत्र्ता उद्योग के लिए इंसैंटिव स्कीम में शर्तें ही ऐसी रखी हैं कि इसका फायदा केवल 5-7 बड़ी ऑटोमोबाइल और 20-25 ऑटो कंपोनैंंट कम्पनियों को मिले जबकि इस उद्योग से जुड़े हजारों एम.एस.एम.ईज लाभ से वंचित रखे गए हैं। पहले एम.एस.एम.ईज को निर्यात पर इंसैंटिव मिल रहा था लेकिन अब 50,000 करोड़ रुपए सालाना निर्यात इंसैंटिव में से 40,000 करोड़ रुपए बड़ी कम्पनियों की पी.एल.आई. स्कीम में डाल दिए गए हैं। हालांकि एम.एस.एम.ईज  देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं जो कृषि के बाद दूसरे सबसे बड़े रोजगारदाता होने के नाते करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार दे रहे हैं, वहीं देश के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में इनके 30 प्रतिशत योगदान के साथ निर्यात कारोबार में भी 48 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। 

मौजूदा ऑटोमोबाइल ओ.ई.एम (मूल उपकरण निर्माता) के लिए ग्लोबल चैंपियन स्कीम के तहत 10,000 करोड़ रुपए से अधिक वैश्विक राजस्व के साथ फोर व्हीलर ओ.ई.एम. स्कीम में 5 वर्ष में ए.ए.टी. (एडवांस ऑटोमोटिव टैक्नोलॉजी) में 2000 करोड़ रुपए का निवेश, टू और थ्री-व्हीलर ओ.ई.एम. के लिए 1000 करोड़ रुपए के ए.ए.टी. निवेश के अलावा 3,000 करोड़ रुपए का ग्रॉस एसैट होना जरूरी है। वहीं मौजूदा ऑटोमोबाइल कंपोनैंट आपूर्त्तिकत्र्ताओं के लिए ग्लोबल चैंपियन स्कीम की शर्त में वैश्विक राजस्व 500 करोड़ रुपए से अधिक हो और 5 वर्षों में ए.ए.टी. में 250 करोड़ रुपए के न्यूनतम निवेश के अलावा 150 करोड़ रुपए के ग्रॉस एसैट की शर्त है। नए निवेशकों (गैर-ऑटोमोटिव) के लिए चैंपियन ओ.ई.एम. में शामिल होने के लिए नैटवर्थ 1000 करोड़ रुपए और पांच साल में 2000 करोड़ रुपए का ए.ए.टी. निवेश जरूरी है जबकि कंपोनैंंट आपूर्त्तिकत्र्ता चैंपियन स्कीम के तहत 500 करोड़ रुपए निवेश करना होगा। 

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर और कारोबार प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। पहले ही ऑटोमोबाइल कंपोनैंट सैक्टर में एम.एस.एम.ईज के घरेलू और निर्यात कारोबार में गिरावट है। मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में उनका कारोबार 25 प्रतिशत तक घटने की आशंका है। भारतीय प्रमोटरों के स्वामित्व वाली 90 फीसदी ऑटोमोबाइल कंपोनैंट कंपनियां पी.एल.आई. स्कीम में शामिल होने के लिए 500 करोड़ रुपए से अधिक के वैश्विक राजस्व की शर्त पूरी नहीं करतीं। ये देश में कुल ऑटो कंपोनैंट निर्माता इकाइयों का 64 फीसदी हैं लेकिन टर्नओवर में इनका योगदान 32 फीसदी है। 36 फीसदी कम्पनियां या तो संयुक्त उद्यम या विदेशी स्वामित्व वाली हैं, जिनका टर्नओवर में 68 फीसदी हिस्सा है। ऑटोमोबाइल सैक्टर के लिए इस पी.एल.आई. स्कीम से बड़ी कंपनियों और एम.एस.एम.ईज के कारोबार में फासला और बढ़ेगा। 

पी.एल.आई. स्कीम की खामियां: यह स्कीम केवल चंद बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है। यदि इसे एम.एस.एम.ईज को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है तो यह अगले एक दशक में देश के आत्मनिर्भर मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर का मार्ग प्रशस्त कर सकती है और देश में बढ़ती वर्कफोर्स को रोजगार मिलता पर एम.एस.एम.ईज को किनारे करके यह कैसे संभव हो सकता है? एम.एस.एम.ईज भारत की 1.28 लाख करोड़ रुपए की वाॢषक आयातित ऑटो कंपोनैंट की निर्भरता कम करने में भी मदद कर सकते हैं, जिसमें 26 प्रतिशत (33,750 करोड़ रुपए) चीन पर निर्भरता, 14 प्रतिशत जर्मनी, 10 फीसदी दक्षिण कोरिया और 9 फीसदी जापान से आयातित ऑटो कंपोनैंट पर निर्भरता कुछ कम की जा सकती है। 

लक्ष्य पाने में चुनौतियां : आटोमोबाइल और ऑटो कंपोनैंट पी.एल.आई. स्कीम की मदद से सरकार का लक्ष्य 42,500 करोड़ रुपए के नए निवेश का है जिससे 2,31,500 करोड़ रुपए के उत्पादन राजस्व में वृद्धि की उम्मीद है। इस स्कीम से अगले 5 वर्षों में 7.5 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर मिलने की संभावना है लेकिन इस लक्ष्य को पाने के लिए हमारे नीति निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि केवल बड़ी कंपनियों तक स्कीम का लाभ सीमित करना इस स्कीम के लिए बड़ी चुनौती है।

आगे का रास्ता : नीति निर्माताओं को ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनैंंट आपूर्तिकत्र्ताओं को एम.एस.एम.ईज के लिए इंसैंटिव पर पुनॢवचार करना चाहिए क्योंकि इन्हीं के दम पर मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकता है। ऑटोमोबाइल कंपोनैंट आपूर्त्तिकत्र्ता एम.एस.एम.ईज के लिए एक समर्पित पी.एल.आई. बेहतर विकल्प है क्योंकि इससे न केवल आयात पर निर्भरता कम होगी बल्कि रोजगार के अधिक अवसर भी पैदा होंगे। (सोनालीका ग्रुप के वाइस चेयरमैन, कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन।)-अमृत सागर मित्तल

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