Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Sep, 2017 01:29 AM
हाल ही में असम में आई बाढ़ से चिंतित भारत सरकार ने नदियों को आपस में जोडऩे का 2015...
हाल ही में असम में आई बाढ़ से चिंतित भारत सरकार ने नदियों को आपस में जोडऩे का 2015 का एक पुराना प्रपोजल कार्यान्वित करने का फैसला किया है। 2015 में इस प्रोजैक्ट की लागत 168 बिलियन डॉलर आंकी गई थी। 2017 में यह आंकड़ा और भी ऊपर जा सकता है।
2 साल पहले राज्यसभा में एक प्रश्न उठा था, जिसमें कहा गया था कि अंडेमान समुद्र में बैरन आईलैंड सक्रिय ज्वालामुखी के ऊपर ‘जियो थर्मल पॉवर प्लांट’ लगाकर, उस ज्वालामुखी के मुंह से निकलने वाले 1200 डिग्री सैं.ग्रे. के लावे की गर्मी को बिजली में परिवर्तित करके हम बंगाल की खाड़ी में पैदा होने वाले चक्रवात और हिमालयन स्टेट्स में आने वाली बाढ़ को सफलतापूर्वक रोक सकते हैं। मगर भारत सरकार के मंत्री ने इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया, जबकि स्वतंत्र वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर का कहना है कि सक्रिय ज्वालामुखियों के ऊपर पहले से ही इंडोनेशिया और दक्षिणी अमेरिका में ‘ऑरमेट टैक्नोलॉजी’ नामक और दूसरी कम्पनियों ने ‘जियो थर्मल पॉवर प्लांट’ लगाकर उन ज्वालामुखियों की गर्मी को बिजली में परिवर्तित करने का काम कर रखा है।
अगर भारत सरकार चाहे तो ‘ग्लोबल टैंडर’ देकर किसी भी दमदार कम्पनी को ‘बैरन आईलैंड’ के सक्रिय ज्वालामुखी के ऊपर ‘जियोथर्मल पॉवर प्लांट’ लगाने का दायित्व सौंप सकती है। यह प्लांट उस भूतापीय ऊर्जा को विकास के कामों में इस्तेमाल करने में सहायक सिद्ध होगा जो आज की तारीख में उस ज्वालामुखी की भूतापीय ऊर्जा से बंगाल की खाड़ी का पानी गर्म होने के बाद चक्रवात बनाता है, जिससे बंगलादेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु बर्बाद होते हैं। ज्वालामुखी के लावे की गर्मी से जब ‘सी सरफेस तापमान’ 26.5 डिग्री सैं.ग्रे. से ऊपर जाता है तो अक्तूबर-नवम्बर के महीने में ‘आई.टी.सी.जैड’ में चक्रवात का जन्म होता है।
इसके अलावा ज्वालामुखी के लावे की गर्मी से बंगाल की खाड़ी का पानी बादल बनकर उड़ता है और यह बादल जब हिमालयन स्टेट्स में बरसता है तो मानसून से फालतू बरसात होती है, जिसके फलस्वरूप जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, असम, नेपाल और बिहार में भारी बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न होती हैं। आज से कुछ वर्ष पूर्व 16 जून को उत्तराखंड में बादल फटने से केदारनाथ मंदिर में भारी तबाही हुई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे, जबकि जून के महीने में मानसून महाराष्ट्र तक भी नहीं पहुंचता। यह बादल फटना, शिवमूर्ति बहना और ऋषिकेश में वाहनों का कागज की नावों के समान बहना, यह सारा पानी बंगाल की खाड़ी से ‘बैरन आईलैंड’ ज्वालामुखी के लावे की गर्मी ने भेजा था। अगर अभी भी भारत सरकार उस ज्वालामुखी के लावे की गर्मी से बिजली बनाने के लिए प्लांट लगाती है तो देश आने वाले सालों में बाढ़ और चक्रवात के प्रकोप से बच जाएगा।
श्री कपूर ने भारत सरकार के तकनीकी मंत्रालय को इस आशय का एक प्रस्ताव दे दिया था, जिसे 2017 में भू-विज्ञान मंत्रालय भेज दिया गया था, पर कुछ नहीं हुआ। डा. कपूर का आरोप है कि भू-विज्ञान मंत्रालय अपनी निष्क्रियता से असम, बिहार और नेपाल की जनता को बाढ़ की बलि चढ़ा रहा है। इसी तरह अमरीका में आज फ्लोरिडा में चक्रवात से जो तबाही हुई है, उसेे रोकने के लिए ‘कैरिबियन आईलैंड’ पर ज्वालामुखी के ऊपर ‘जियोथर्मल पॉवर प्लांट’ है। उसी के साथ-साथ फिजी आईलैंड के ज्वालामुखी में ‘जियोथर्मल प्लांट’ लगाकर ऑस्ट्रेलिया को चक्रवात से बचाया जा सकता है। इन तीनों देशों में एक ही जैसी परिस्थितियां हैं।
डा. कपूर की शिकायत यह है कि हमारे सरकारी अधिकारी सस्ते में काम नहीं निपटाना चाहते। वे बड़े बजट का 168 बिलियन डॉलर का नदियों को आपस में मिलाने का पुराना प्रस्ताव ही कार्यान्वित करवाना चाहते हैं। जबकि ज्वालामुखी पर प्लांट लगाने का खर्चा ‘यू.एन.ओ.’ के कार्बन क्रैडिट से ही पूरा हो जाएगा। आम के आम और गुठलियों के दाम पर बिजली बनेगी। उसके ‘इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री का कॉम्पलैक्स बैरन आईलैंड के 8.33 वर्ग कि.मी. भूभाग पर लगाया जाएगा। क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और हर्षवर्धन इस गरीब देश के 168 बिलियन डॉलर का फंड बचाने में सफल होते हैं या नहीं? यह देखना बाकी है।