सोशल मीडिया को अधिक जिम्मेदारी के साथ अपना फर्ज निभाना होगा

Edited By ,Updated: 19 Sep, 2021 05:28 AM

social media has to fulfill its duty with more responsibility

आधुनिक युग तकनीक का युग है और इस युग में सोशल मीडिया लोगों की जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा नैटवर्क है, जो पूरी दुनिया को एक-दूसरे से जोडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह इंटरनैट के माध्यम से एक वर्चुअल...

आधुनिक युग तकनीक का युग है और इस युग में सोशल मीडिया लोगों की जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा नैटवर्क है, जो पूरी दुनिया को एक-दूसरे से जोडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह इंटरनैट के माध्यम से एक वर्चुअल दुनिया बनाता है जिसकी अनेकों विशेषताएं हैं, जैसे कि सूचनाओं का आदान-प्रदान करना, लोगों का मनोरंजन करना और मुख्य रूप से देखा जाए तो शिक्षित करना भी इसमें शामिल है। इसलिए इसको सूचना का एक सुगम माध्यम भी माना जाता रहा है।

परंतु पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया के मंचों पर जिस तरह से निराशा दिखाई देने लगी है, वह वास्तव में चिंता का विषय है क्योंकि सोशल मीडिया के मंच पर अपना खाता बनाने या व्यक्तिगत समाचार चैनल चलाने के लिए किसी तरह के लाइसैंस या किसी भी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ती। जिस कारण बहुत सारे लोगों ने सोशल मीडिया को अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का सबसे सरल साधन के रूप में अपना लिया है। 

यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि सोशल मीडिया समाज के लिए खतरा है, बल्कि  यह तो उन लोगों पर निर्भर करता है जो इसका उपयोग करते हैं। सोशल मीडिया जोखिमों के बावजूद, बच्चों के कौशलों को विकसित करने और एक अच्छा डिजिटल मंच बनाने के लिए मूल्यवान अवसर प्रदान करता है। इन दिनों सोशल नैटवर्किंग साइटों से जुड़े रहना सबको पसंद है। कुछ लोगों का मानना तो यह भी है कि यदि आप डिजिटल रूप में उपस्थित नहीं हैं तो आपका कोई अस्तित्व ही नहीं है । सोशल नैटवर्किंग साइटों पर उपस्थिति का बढ़ता दबाव और प्रभावशाली प्रोफाइल, युवाओं के दिमाग  को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है। 

आंकड़ों के मुताबिक एक सामान्य किशोर प्रति सप्ताह औसत रूप से 72 घंटे सोशल मीडिया का उपयोग करता है, ये चीजें अन्य कार्यों के लिए बहुत कम समय छोड़ती हैं, जिनके कारण उनके अंदर गंभीर समस्याएं पैदा होने लगती हैं जैसे अध्ययन, शारीरिक और अन्य फायदेमंद गतिविधियों में कमी, न्यूनतम ध्यान, चिंता और अन्य जटिल मुद्दों को उजागर करती है। अब हमारे पास वास्तविक मित्र की तुलना में अप्रत्यक्ष मित्र सबसे अधिक होते जा रहे हैं और हम दिन प्रतिदिन एक-दूसरे से संबंध खोते जा रहे हैं। इसके साथ ही अजनबियों तथा अपराधियों को अपनी निजी जानकारियां दे बैठना आदि भी कई खतरे हैं। 

यह सोचने का विषय है कि सोशल मीडिया जहां लोगों की शिक्षा के लिए एक अच्छा माध्यम साबित हो सकता है तथा कई सामाजिक मुद्दों के लिए जागरूकता पैदा कर सकता है व ऑनलाइन जानकारी तेजी से भेजी जा सकती है, जिसकी मदद से उपयोगकत्र्ताओं को सूचना तत्काल ही प्राप्त हो जाती है। किंतु समस्या यह है कि इनमें से ऐसे लोगों की संख्या बहुत बड़ी है जो धार्मिक मान्यताओं तथा सांप्रदायिक विचारधाराओं से अपने निजी स्वार्थ के लिए वशीभूत होकर नफरत फैलाने की मंशा से फर्जी सूचनाएं फैलाते हैं। कुछ निजी चैनलों पर तो साम्प्रदायिक रंग देते हुए फर्जी खबरें दिखाई जाती हैं। 

हालांकि फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के मकसद से केंद्र सरकार ने यू-ट्यूब आदि पर चलने वाले निजी चैनलों पर निगरानी रखने का इरादा किया था लेकिन उसमें पारदर्शिता न होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि केवल सत्ता के विरोध में आवाज उठाने वाले लोगों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। अदालत ने जोर देकर कहा था कि मीडिया प्रिंट, इलैक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया को अधिक जिम्मेदारी के साथ अपना फर्ज निभाना होगा, बिना खबरों की पुष्टि के उनको छपने, प्रसारित करने, उन पर टिप्पणी करने से परहेज करना होगा। चेहरे पर फेसबुक-सी रौनक है, दिल व्हाट्सएप हुआ जा रहा है, समाज से कटकर भी इंसान सोशल हुआ जा रहा है।-प्राचार्य डा. मोहन लाल शर्मा 

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