Edited By ,Updated: 06 Feb, 2017 11:35 AM
अखिलेश की हैसियत ही क्या है। शिवपाल नहीं होंगे तो पार्टी बिखर जाएगी। ये तो नव-निर्वाचित विधायक तय करेंगे कि मुख्यमंत्री ...
अखिलेश की हैसियत ही क्या है। शिवपाल नहीं होंगे तो पार्टी बिखर जाएगी। ये तो नव-निर्वाचित विधायक तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा, अखिलेश मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होंगे। अखिलेश का दिमाग खराब हो गया है। उसे रामगोपाल बरगला रहे हैं। कांग्रेस से गठबंधन की कोई जरूरत नहीं। यह सब कहते रहने वाले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने पिछली 29 जनवरी को सपा-कांग्रेस गठबंधन को अमान्य करते हुए यह तक कह दिया था कि वह उसके लिए चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। लेकिन दो दिन बाद ही वह अपनी बात से पलट गए और बोले: मैं पहले शिवपाल के लिए प्रचार करूंगा, उसके बाद अखिलेश के लिए। उन्होंने सारे भम्र दूर करते हुए यह भी कह दिया कि वह कांग्रेस के लिए भी प्रचार करेंगे। समाजवादी पार्टी के पिछले साल के अंतिम प्रहर के झंझट में जो कुछ हुआ, उसने मुलायम सिंह यादव की रीति-नीति को आम लोगों की समझ से परे बना दिया।
पहले कभी मुलायम सिंह यादव को समझना इतना मुश्किल नहीं था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कई मौकों पर अपने रुख बदले हैं लेकिन जो कुछ उन्होंने अब 78 साल की उम्र पार करने के बाद किया, वह पहले कभी नहीं हुआ था। ऐसा क्या हुआ कि वह बार-बार अपने बयानों से पलटे, बार- बार उन्होंने अपने तेवर बदले, बार-बार दिशाएं बदलीं और अपनी सारी जानी-पहचानी सख्ती भुलाकर लगातार ‘मुलायम’ होते चले गए? जवाब एक ही है वह अपने पहलू में अपने भाई और अपने बेटे दोनों को रखकर चलना चाहते रहे हैं लेकिन जब दोनों में से एक को पसंद करने का मुकाम आया तो बेटे के साथ हो लिए और भाई को बिना ऐसा कहे किनारे कर दिया।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री शिवपाल यादव को अब तक यह बात समझ में आ गई होगी कि परिवार में और राजनीति में भी बेटे से बड़ा कुछ नहीं होता। जो कुछ अब तक कांग्रेस में, अकाली दल में, शिवसेना में, द्रविड़ मुनेत्र कषगम में, राष्ट्रीय लोकदल में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में, टिकट वितरण के समय भारतीय जनता पार्टी में और यहां वहां हर राजनीतिक कुनबे में होता रहा है, वही तो आखिर समाजवादी पार्टी में हुआ है। एक वरिष्ठ सपा नेता ने अक्तूबर में ही मेरे कान में कह दिया था: देखते चलिए शिवपाल यादव को धीरे-धीरे किनारे कर दिया जाएगा।
समाजवादी पार्टी की राजनीति में पिछले चार महीनों में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन जब भी मुकाबला अंतिम दौर में पहुंचा, अखिलेश को स्वर्ण पदक मिला और शिवपाल को पदक तालिका के पायदान पर कहीं जगह नहीं मिली। एक बार, बस एक बार पिछले साल की 24 अक्तूबर को उनका कद उस समय कुछ बढ़ा था जब लखनऊ में हो रहे पार्टी सम्मेलन में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश से शिवपाल के पैर छूने को कहा था और उन्होंने ऐसा किया भी था, हालांकि उसी सम्मेलन में इससे पहले शिवपाल ने एक मौके पर अखिलेश के हाथों से माइक छीन लिया था।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से हटा दिए जाने के बाद से अखिलेश लगातार आक्रामक रहे हैं। पहले उन्होंने शिवपाल के सारे महत्वपूर्ण विभाग ले लिए, फिर 23 अक्तूबर को उन्हें व तीन अन्य मंत्रियों को मंत्रिमण्डल से बर्खास्त कर दिया। उसके बाद मुलायम सिंह की सलाह के बाद भी उन्होंने अपने चाचा को अपनी सरकार में वापस नहीं लिया। जब सपा में सत्ता संघर्ष तेजी पर था तो मुलायम सिंह यादव ने अजित सिंह सहित कई नेताओं को फोन करके गठबंधन पर बात की थी और बकौल राष्ट्रीय लोकदल वह उसके अध्यक्ष के सामने गठजोड़ के लिए गिड़गिड़ाए थे। खुद कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर से उन्होंने दिल्ली में और फिर लखनऊ में प्रस्तावित गठबंधन पर बात की थी। जाहिर है कि वह प्रारम्भिक दौर में सपा-कांग्रेस मिलन के पक्षधर थे।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो बार-बार यह कहते ही रहे कि वह कांग्रेस के साथ गठजोड़ के पक्ष में हैं और यदि गठबंधन हुआ तो वह 300 सीटें जीतेगा। जब चुनाव आयोग ने सपा की बागडोर अखिलेश को सौंप दी तो उसी क्षण यह तय हो गया था कि सपा-कांग्रेस गठजोड़ होगा। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने इस गठबंधन को गैर-जरूरी करार देते हुए उसे अस्वीकार कर दिया। गठजोड़ के बाद जब राहुल और अखिलेश ने लखनऊ में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन किया था तो उसमें यह संकेत दिया था कि यह गठजोड़ 2019 के अगले लोकसभा चुनाव तक जारी रह सकता है। उसी क्षण मुलायम सिंह ने इस मधुर मिलन को नकार दिया था। हो सकता है यह बात मुलायम सिंह को इसलिए पसंद न आई हो क्योंकि ऐसा गठजोड़ लोकसभा चुनाव में हुआ तो उसमें कांग्रेस का वर्चस्व होगा।
आखिर कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है जबकि सपा क्षेत्रीय। बहरहाल, मुलायम सिंह के सबसे ताजा बयान से सपा - कांग्रेस गठबंधन और खासकर अखिलेश को बहुत राहत मिली है क्योंकि उनकी यह शंका मिट गई कि प्रदेश की राजनीति, जो जैसे तैसे त्रिकोणीय हुई है, मुलायम सिंह की विपरीत दिशा में सक्रियता से फिर से कहीं चतुष्कोणीय न हो जाए। मुलायम सिंह यादव यदि अपनी शुरू की बात पर अड़े रहते तो सपा-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ वे तमाम सपाई मोर्चा लगा लेते जो कई कारणों से नए शक्ति-संतुलन में असहज महसूस कर रहे हैं।
ज्ञानेंद्र शर्मा