बिना वर्दी के सिपाही- बनें देश के हमराही

Edited By ,Updated: 03 Apr, 2021 03:28 AM

soldiers without uniforms  become aliens of the country

न्याय का अन्याय में रूपांतर रोकने के लिए मानव-मनीषा अर्थात जन सहयोग की भावना और स्वस्थ सामाजिकता सर्वोपरि होती है। प्रत्येक शहरी ही वह छुरी है जो सच्चे मानवीय मूल्यों को अपने अंदर उकेरने, उभारने

न्याय का अन्याय में रूपांतर रोकने के लिए मानव-मनीषा अर्थात जन सहयोग की भावना और स्वस्थ सामाजिकता सर्वोपरि होती है। प्रत्येक शहरी ही वह छुरी है जो सच्चे मानवीय मूल्यों को अपने अंदर उकेरने, उभारने व निखारने की क्षमता रखती है। आम समाज में अन्याय, अपराध शोषण या उत्पीड़न अमरबेल की तरह फैल रहा है जिसे रोकने के लिए मानव-मनीषा अपना अमूल्य योगदान दे सकती है। नीति-नियम, कानून व संविधान मानव की असद्वृतियों का सामयिक दमन तो करते हैं परन्तु मनुष्य के अंतर्मन को परिष्कृत नहीं करते। 

लोकेष्णा की प्रतिष्ठा की चाह स्वार्थ की भावना तथा आपराधिक प्रवृति मनुष्य में गुप-चुप बनी रहती है जिस पर नियंत्रण केवल मानसिकता में बदलाव लाकर ही किया जा सकता है। आपराधिक बेडिय़ां चाहे वह लोहे की हों या सोने की हों, को काटने के लिए मनुष्य को सदाचारी व परोपकारी बनना आवश्यक है। 

यदि प्रत्येक मनुष्य अपने आसपास की व्यवस्था व सुरक्षा को प्रखर निगाहों से देखे तथा अपने गुण, कर्म, स्वभाव व सामथ्र्र्य से अपनी जिम्मेदारी को निभाए तब सामाजिक व अन्य अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है। उन्हें कहीं कुछ अन्यायपूर्ण या अनुचित दिखाई दे तो पुलिस को तत्काल सूचना दे तथा इसी तरह न्यायालय में गवाही देने से न डरें। पहले व्यक्ति को स्वयं को सुधारने की आवश्यकता है तथा फलस्वरूप समाज अपने आप ही सुधर जाएगा। वैसे तो कानून के अंतर्गत प्रत्येक मनुष्य को अपराधों की सूचना पुलिस या मैजिस्ट्रेट को देने की व्यवस्था है, परन्तु इसका आम लोगों को पूर्ण ज्ञान भी नहीं है तथा इसी अज्ञानता के कारण वह चुप्पी साधे बैठे रहते हैं। 

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 व धारा 40 के अंतर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति जो किसी व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले अपराध से अवगत है तो उसकी जिम्मेदारी होगी कि वह निकटतम मैजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को सूचना दे तथा धारा 43 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति यदि उसकी उपस्थिति में कोई संज्ञा अपराध करता है तो वह उस व्यक्ति को पकड़ कर या अपनी हिरासत में लेकर पुलिस या मैजिस्ट्रेट के हवाले कर सकता है। समाज में विभिन्न प्रकार के अपराध घटित होते आ रहे हैं, चाहे आतंकवाद, भ्रष्टाचार, लूट-डकैती, महिलाओं से संबंधित अपराध, अवैध खनन, मादक पदार्थों का व्यापार, विभिन्न प्रकार के दंगे व कई प्रकार के आॢथक अपराध इत्यादि। इन सबकी रोकथाम के लिए आम नागरिकों का योगदान अति आवश्यक है। 

अकेली पुलिस इन अपराधों को नियंत्रण में नहीं ला सकती क्योंकि भारत में लगभग 1000 व्यक्तियों के पीछे एक पुलिसमैन तैनात है। इसी तरह न्यायालयों द्वारा दी गई सजा की औसत दर 25 प्रतिशत से अधिक नहीं है तथा इसका विशेष कारण ही यही है कि या तो लोग गवाह बनते ही नहीं या फिर न्यायालयों में जाकर मुकर जाते हैं परिणामस्वरूप मुलजिम सजा मुक्त हो जाते हैं। यदि किसी बहू-बेटी के साथ बलात्कार हो जाए या फिर अन्य कोई जघन्य अपराध हो जाए तो कोई व्यक्ति आगे आकर गवाह बनने को तैयार नहीं होता। दुर्घटनास्थल पर पीड़ित व्यक्ति चाहे तड़प-तड़प कर अपनी सांसें निकाल रहा हो परन्तु वहां से गुजरने वाला कोई भी व्यक्ति उस पीड़ित व्यक्ति की सहायता के लिए नहीं रुकता। 

जरा सोचिए, ऐसे अपराध आपके साथ भी घटित हो जाएं तो आप मानव-मनीषा के बारे में क्या सोच रखेंगे। यह सब कुछ मानसिक संकीर्णताओं के कारण ही संभव हो रहा है। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा की ओर व उनकी नैतिक शिक्षा व मानवीय मूल्यों के प्रति अधिक ध्यान दिया जाए। बच्चों को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाए जिसके लिए अध्यापकों व माता-पिता को उत्तरदायी ठहराया जाए तथा उन्हें अपने चरित्र को भी ऊंचा उठाने के लिए मापदंड तय किए जाएं। समय बदलने के साथ-साथ अब लोगों में जागरूकता आने लगी है तथा बहुत-सी घटनाओं का वे अपने मोबाइल द्वारा छाया-चित्र एकत्रित करके पुलिस को उपलब्ध करवाने लगे हैं जिसके परिणामस्वरूप पुलिस, मुलजिमों को पकड़ने में सफल हो पा रही है। 

मानव यह न सोचे कि उसके अकेले कुछ करने या न करने से क्या होगा परन्तु उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि परशुराम ने अकेले ही पृथ्वी से समस्त दुराचारी-अपराधियों का मानस किस तरह पलट दिया था। अत: जनमानस को जागृत सोच व संवेदनशील होने की आवश्यकता है तथा पुलिस व अन्य संस्थाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रखर प्रहरी बन समाज में घटित हो रहे अपराधों को रोकने में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करना होगा। हम सभी को कुंभकर्णी नींद को त्याग कर, नपुंसकता व हिजड़ों की बादशाहत को छोडऩा होगा।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)
 

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