Edited By ,Updated: 20 Jul, 2020 02:14 AM
‘अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए मोदी शीर्ष 50 अधिकारियों से ले रहे इनपुट’ नामक शीर्षक से न्यूज एजैंसी ए.एन.आई. ने एक स्टोरी प्रकाशित की। यह बैठक 90 मिनट लम्बी थी जिसमें वित्त तथा वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने हालात पर अपनी प्रस्तुति ...
‘अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए मोदी शीर्ष 50 अधिकारियों से ले रहे इनपुट’ नामक शीर्षक से न्यूज एजैंसी ए.एन.आई. ने एक स्टोरी प्रकाशित की। यह बैठक 90 मिनट लम्बी थी जिसमें वित्त तथा वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने हालात पर अपनी प्रस्तुति दी। आखिर ऐसी बैठक कैसी नजर आती होगी? यदि 50 अधिकारियों ने इनपुट देने के लिए मौका पाया तब किसी भी व्यक्ति ने न तो कोई सवाल पूछे होंगे और न ही कुछ बोला होगा। उन्हें अपनी बात कहने के लिए 2 मिनट से भी कम समय मिला होगा। हैडलाइन का कहना था कि प्रधानमंत्री उन अधिकारियों से इनपुट प्राप्त कर रहे थे। उनमें से कुछ ने ही बात की होगी। चंद मिनटों में कितनी बात संभव हुई होगी?
मोदी इस प्रकार की बैठकों को पसंद करते हैं। पहली बार उनसे दलीप पाडगाऊंकर (जोकि टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक थे) तथा बी.जी. वर्गीज (हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक थे) के साथ 2002 में दंगों पर ऑडीटर्स गिल्ड की रिपोर्ट के लिए मिला था। दोनों ही अब जीवित नहीं हैं। बैठक में मोदी ने अपने सचिवों को बुलाया जोकि 2 दर्जन के करीब थे और शायद पंक्ति में बैठे लोगों में से ज्यादा संख्या में थे जिन्होंने हमसे प्रतिक्रिया ली। वहां पर कोई मंत्री नहीं था। स्पष्ट तौर पर यह सब कुछ मोदी स्टाइल में था।
सवाल यह है कि ऐसी बड़ी बैठकों में इनपुट के लिए क्या होता है तथा उनसे क्या हासिल किया जाता है। आपके पास कुछ गिनती के लोग होंगे जो संक्षिप्त बात कहेंगे और नियम के अनुसार चलेंगे। परेशानी पहले से ही पता थी। ए.एन.आई. की स्टोरी का कहना है कि बैठक का मतलब अर्थव्यवस्था की तेजी से रिकवरी करना है जिसने हाल ही की तिमाहियों में मांग की गिरावट के कारण मंदी देखी है। 2 मिनटों की बात का मतलब क्या है।
इसका मतलब यह है कि काले धन की मुश्किल को हमेशा के लिए हाई वैल्यू करंसी नोटों को समाप्त कर सुलझाया जा सकता है। हम किसी को भी अपने नोटों को छोटे नोटों से बदलने के लिए बाध्य कर सकते हैं तथा काले धन के स्रोतों का पता लगा सकते हैं। यह जालसाजी को समाप्त तथा आतंक में कमी ला सकता है। ऐसी प्रस्तुति में नाजुक फर्क होता है तथा इसमें पूरा विवरण नहीं होता। यह मुश्किलों को दूर नहीं कर सकती क्योंकि ऐसी कार्रवाई को करना मुश्किल होता है और इसके लिए काफी समय भी नहीं होता। यह तो मात्र एक प्रकार का उपाय है और यदि यह उपाय स्थायी हो या फिर वास्तविक तब इसे अनुमति दी जा सकती है।
निर्णय को लेने के लिए यही मुश्किल है जिसे अल्प तथा तेजी वाले इनपुट के आधार पर किया जा सकता है। जब कोई 50 लोगों को एकत्रित होने के लिए कहे और उनसे छोटे और तेज इनपुट देने के लिए कहे तब यह स्पष्ट है कि यह कार्य करने का एक पसंदीदा स्टाइल है। मोदी प्रशासन के ऐसे ढंग के बारे में मैं पहले भी बात कर चुका हूं। मोदी ने मधु किश्वर के साथ एक साक्षात्कार के दौरान कहा कि वह फाइलों को नहीं पढ़ते क्योंकि वह शैक्षिक अध्ययन के माध्यम से शासन नहीं कर सकते। वह अपने लोगों से चाहते हैं कि मुद्दों का वृत्तांत छोटा हो और 2 मिनटों का सार हो, वह हजम कर जाएंगे और उसके बाद ही निर्णय लेंगे। यहां मुश्किल इस बात की है कि कुछ चीजों को छोटा नहीं किया जा सकता क्योंकि वह बड़ी जटिल होती हैं। कुछ चीजें स्पष्ट नहीं होतीं। कुछ विवरण संक्षेप में नहीं होते क्योंकि यहां पर उनके बारे में कोई डाटा या सूचना पर्याप्त नहीं होती। कई बार निर्णयों के परिणाम को पूरे आकलन के माध्यम के बिना समझा नहीं जा सकता।
काला धन ऐसा ही एक मुद्दा था। चीन के साथ रिश्ते एक अलग तरह का मुद्दा है जोकि कोविड की तरह है। 2 महीनों के लॉकडाऊन के प्रभाव भी जटिल हैं। अर्थव्यवस्था को ध्यानपूर्वक जानने की जरूरत है। हमें पूरे लॉकडाऊन या फिर नोटबंदी जैसे तीखे हथियारों के इस्तेमाल करने से पहले चेतावनी को भी देखना होगा। यहां पर मेरा मंतव्य गैर-जरूरी आलोचना नहीं है। मोदी जो निर्णय लेते हैं उसका प्रभाव हम सब पर पड़ता है तथा हमें अपने राष्ट्र तथा लोगों के हित में सही कदम उठाना होता है। दूसरी परेशानी सप्लाई चेन की थी। ऑटो निर्माण एक ही जगह पर नहीं होता। यह तो मुख्य फैक्टरी में केवल जोड़ा जाता है मगर पूरे देशभर में से पुर्जे मंगवाए जाते हैं। कुछ राज्यों में लॉकडाऊन था जिसका मतलब यह कि यदि मेन एसैंबली प्लांट लॉकडाऊन से मुक्त था या फिर राज्य में लॉकडाऊन नहीं था तब उत्पादन धीमा या फिर बंद हो जाता।
तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, ओडिशा तथा असम में कहीं लॉकडाऊन था। यहां पर किसी प्रकार का समन्वय नहीं था कि सप्लाई चेन की निरंतरता बनी रहे। इसी तरह कम्पनियों की पहुंच वेयरहाऊस तक नहीं हुई क्योंकि इनमें से कुछ लॉकडाऊन में थे। अन्य परेशानी कर्मचारियों की थी जो घर वापसी के लिए अड़े हुए थे। ये ऐसे मुद्दे हैं जो जटिल तथा विस्तार में हैं। इन्हें निर्णय लेने की जरूरत नहीं। इन्हें तो बस प्रशासन की जरूरत है मतलब कि राज्य के कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए सख्त मेहनत करने की जरूरत है। यह सत्य है कि प्रशासन करने के लिए भारत एक कठोर स्थान है क्योंकि यहां पर अराजकता तथा अव्यवस्था व्याप्त है। ज्यादातर सरकार अपने ही नियमों को नहीं मानती। हमारे लिए यह आसान नहीं कि लॉकडाऊन के चलते अर्थव्यवस्था में पहुंची क्षति को ठीक कर लें। उपाय 2 मिनट के दिखावे से नहीं निकाले जा सकते।-आकार पटेल