कुछ लोग राष्ट्रीय हित में मरते हैं तो कुछ लोग पैसा कमाते हैं

Edited By ,Updated: 31 Jul, 2022 02:48 PM

some people die in national interest some people earn money

रूस युद्ध को 21 सप्ताह से ज्यादा का समय हो चला है। इस युद्ध ने पूरे विश्व भर के समाचार पत्रों में जगह बनाई हुई है और यह कम नहीं हो रही। बावजूद इसके कि लाखों यूक्रेनियन बेघर हो चुके हैं

रूस युद्ध को 21 सप्ताह से ज्यादा का समय हो चला है। इस युद्ध ने पूरे विश्व भर के समाचार पत्रों में जगह बनाई हुई है और यह कम नहीं हो रही। बावजूद इसके कि लाखों यूक्रेनियन बेघर हो चुके हैं और अनगिनत  नागरिक रूस की क्रूरता झेल रहे हैं। युद्ध के प्रति रूसियों की भी अपनी अलग कहानी है। ‘रशिया टी.वी.’  जैसे रूस समर्थित टी.वी. चैनलों की ओर देखें तो हमें सारा वृत्तांत पता लगता है। इस हाथापाई के बीच वाणिज्य एक अलग मुद्दा है। हाल ही में रूस और यूक्रेन ने संयुक्त राष्ट्र और तुर्की के बीच बचाव के बाद एक डील पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके चलते यूक्रेन के गेहूं, तेल के बीज तथा अन्य कृषि उत्पादों को ब्लैक सी बंदरगाह से निर्यात किया जाए जिसे अभी तक रूसी नौसेना ने ब्लॉक कर रखा है। ब्लैक सी में यूक्रेन ने भी अपना वर्चस्व कायम रखा हुआ है। 

 

वह रूस को और ज्यादा बंदरगाहों पर कब्जा करने से रोके हुए है। इस डील के बदले में रूस के पास खादें और अपने गेहूं को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात करने का अधिकार होगा। इस्तांबुल में लिखी गई इस डील का कारण यह है कि विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यू.एफ.पी.) ने अनुमान लगाया है कि विश्व भर में 47 मिलियन लोग पहले से ही भुखमरी की कगार पर हैं जोकि यूक्रेन में रूसी अतिक्रमण का नतीजा है। 

 

यूक्रेन ग्रेन संगठन के अध्यक्ष माइकोला होरबाचोव के अनुसार एक वैश्विक खाद्य संकट को रोकने के लिए एकमात्र उपाय यूक्रेनियन बंदरगाहों का स्वतंत्र होना है। ये बंदरगाहें यूक्रेनी किसानों को भी बचाने का उपाय है।  माइकोला ने आरोप लगाया है कि रूसियों ने कब्जे वाले क्षेत्रों से 5 लाख टन का अनाज चुराया है और लगभग  एक मिलियन टन अनाज रूसी बलों के नियंत्रण में है। एक अनुमान के अनुसार 2021 में विश्व के 10 प्रतिशत गेहूं निर्यात के लिए यूक्रेन जिम्मेदार है। जबकि रशिया विश्व का 17 प्रतिशत गेहूं अपने यहां उगाता है। 

 

इससे पहले कि इस्तांबुल में लिखे गए समझौते की स्याही सूख जाती रूसी क्रूज मिसाइलों ने यूक्रेन की महत्वपूर्ण बंदरगाह ओडेसा पर हमला कर दिया। रूस ने पहले से ही मैरियू पोल, बरदीनस्क तथा सकादोवस्क की समुद्री बंदरगाहों के साथ-साथ काले सागर की खेर सोन बंदरगाह पर कब्जा कर रखा है। अब इसके कब्जे में ओडेसा भी हैं। अब देखने वाली बात यह है कि दोनों देशों के बीच यह समझौता कितनी दूर तक और कितने समय तक चलता है। इस सारे समीकरण में एक और गहरा नैतिक सवाल यह खड़ा होता है कि रूस और यूक्रेन इस समझौते के बाद धरातल पर कितने ईमानदार दिखाई देंगे। कोई भी देश इस जरूरतमंद तथा भूखे मुल्क की मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा जोकि खाद्य पदार्थों की कमी से जूझ रहा है। इस निर्यात से रूस तथा यूक्रेन जो पैसा कमाएंगे उसका क्या होगा इसके बारे में कुछ नहीं पता।

 

सवाल यह उठता है कि यदि संयुक्त राष्ट्र और तुर्की इस विशेष व्यवस्था के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं तो दोनों पक्षों के बीच उपजी शत्रुता को कम करने के लिए इनको किसने रोक रखा है?
दोनों देशों के इस संघर्ष में गेहूं और खाद्य प्रमुख वस्तुएं नहीं हैं। इनके अलावा छूट पर मिलने वाले अन्य उत्पाद भी शामिल हैं जिन्हें विश्व अपनी ओर लपक रहा है। मिसाल के तौर पर भारत का रूस से तेल आयात जून 2022 में 950,000 बैरल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारत के पूरे आयात में यह गिनती 5वें स्थान पर आती है। कारण स्पष्ट है कि रूसी तेल छूट पर मिल रहा है।

 

इस प्रयास में भारत ही अकेला ऐसा देश नहीं है। फ्रांस, चीन, यू.ए.ई. तथा सऊदी अरब  ने भी रूस से अपना तेल आयात बढ़ाया है। विडम्बना देखिए कि यूरोपियन संघ जोकि यूक्रेन में रूसी आक्रमण का कट्टर विरोधी रहा है वह भी युद्ध के पहले 100 दिनों के दौरान 60 बिलियन अमरीकी डालर का तेल खरीद चुका है। युद्ध के शुरू होने के पहले 15 सप्ताहों में रूस ने 98 बिलियन डालर का तेल बेचा है।

 

संसद में एक जवाब के दौरान सरकार ने सूचित किया कि इस वर्ष अप्रैल और जून के मध्य में रूस खाद के मामले में भी भारत के लिए अग्रणी रहा है। भारत ने 7.74 लाख मीट्रिक टन खाद रूस से पहली तिमाही में खरीदी थी। कारण स्पष्ट है कि रूसी खाद देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए छूट पर बेची जा रही है क्योंकि रूस को युद्ध मशीनरी के लिए धन की सख्त आवश्यकता है। 

इस वर्ष मई में ही भारत ने चीन को 1.6 बिलियन अमरीकी डालर की वस्तुएं निर्यात कीं। अप्रैल और मई में संयुक्त रूप से भारत का निर्यात 31 प्रतिशत के करीब गिरा। चीन से आयात मई 2022 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 5.47 प्रतिशत बढ़ गया। इसलिए असली राजनीति के नाम पर जहां कुछ लोगों को राष्ट्रीय हित में मरना पड़ता है वहीं कुछ लोगों को राष्ट्रहित में फिर से पैसा कमाना पड़ता है। लोगों और राष्ट्रों के मामलों में नैतिक परिधि को भावुकता के रूप में कुछ माना जाता है।
manishtewari01@gmail.com

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