सोनिया ही रख सकती हैं विपक्ष को एकजुट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Dec, 2017 04:14 AM

sonia can only keep opposition united

गत शनिवार को 47 वर्षीय राहुल गांधी के इन अनुमानों के बीच कि क्या उनकी मां तथा पूर्ववर्ती अध्यक्ष सोनिया गांधी सेवानिवृत्त हो जाएंगी, पार्टी की कमान सम्भालने से कांग्रेस पार्टी में शासन परिवर्तन हुआ है। सोनिया भी सार्वजनिक तौर पर अपनी यह इच्छा जाहिर...

गत शनिवार को 47 वर्षीय राहुल गांधी के इन अनुमानों के बीच कि क्या उनकी मां तथा पूर्ववर्ती अध्यक्ष सोनिया गांधी सेवानिवृत्त हो जाएंगी, पार्टी की कमान सम्भालने से कांग्रेस पार्टी में शासन परिवर्तन हुआ है। सोनिया भी सार्वजनिक तौर पर अपनी यह इच्छा जाहिर करती रही हैं कि उनकी भूमिका अब सेवानिवृत्त होने की है। मगर क्या सोनिया गांधी अपनी जगह पर अपने बेटे को कांग्रेस प्रमुख का स्थान देने के बावजूद वास्तव में सेवानिवृत्त होंगी? 

जैसा कि उनकी पार्टी का अनुमान है, यदि वह कांग्रेस संसदीय दल की चेयरपर्सन के साथ-साथ यू.पी.ए. की चेयरपर्सन भी बनी रहती हैं तो शायद नहीं। आम तौर पर जब राजनीतिज्ञ सार्वजनिक जीवन को त्यागते हैं तो वे सभी पदों को छोड़ देते हैं मगर सोनिया उन जैसी नहीं दिखाई देतीं। सम्भवत: उन्होंने केवल पार्टी की अध्यक्षता छोड़ी है। तो सेवानिवृत्ति को लेकर इतना संशय क्यों? गांधी परिवार (सोनिया, राहुल तथा प्रियंका) में सभी एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और पारिवारिक सदस्यों से संबंधित सभी निर्णय मिलकर लेते हैं। यह परिवार ही था जिसने 2004 में प्रधानमंत्री न बनने के लिए सोनिया को मनाया था। यह परिवार ही था जिसने निर्णय लिया कि कब राहुल गांधी को पदोन्नत करना है। 

जब 2 वर्ष पूर्व सोनिया का स्वास्थ्य बिगड़ा था तो परिवार ने ही यह निर्णय लिया कि कब उनको पृष्ठभूमि में जाना है। परिवार ने ही यह सोचा कि अब राहुल गांधी के लिए कमान संभालने का समय है इसलिए परिवार ने उनकी तथाकथित सेवानिवृत्ति के बाद ही उनके लिए कोई नई भूमिका अवश्य तैयार कर ली होगी। तो सोनिया को सेवानिवृत्त होने में इतनी कठिनाई क्यों हुई? और या फिर पार्टी सोनिया से ही चिपकी रहेगी क्योंकि वह ही दो बार पार्टी को सत्ता में लाईं (2004-2014)। यह छोटी उपलब्धि नहीं थी। हालिया गुजरात चुनावों में भीड़ जुटाने के बावजूद राहुल वोटें खींचने वाले साबित नहीं हुए हैं। पार्टी राहुल गांधी की टोकरी में अपने सारे अंडे रखने की बजाय सोनिया जैसे पहले से आजमाए हुए नेताओं के साथ जुडऩा चाहेगी, हालांकि पार्टी राहुल को एक अवसर देने के खिलाफ नहीं है।

दूसरे, पार्टी में पुराने लोग राहुल के नेतृत्व को लेकर काफी आशंकित हैं। दरअसल पार्टी के भीतर यह आमतौर पर कहा जाता है कि पुराने नेताओं ने ही राहुल गांधी की पदोन्नति का रास्ता रोक रखा था, वरना सोनिया काफी पहले अपने बेटे को पार्टी प्रमुख बना देतीं। राहुल गांधी के समर्थक यह शिकायत करते रहे हैं कि उनको पुराने नेताओं के कारण ही खुला हाथ नहीं दिया गया था। वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी के साथ काफी सहज महसूस करते हैं और उनके बेटे की बजाय उनके साथ काम करना चाहेंगे। वे राहुल गांधी के नेतृत्व में अपने भविष्य को लेकर भी आशंकित थे क्योंकि राहुल अपनी टीम में युवाओं को अधिमान देते हैं। 

तीसरे, पार्टी को कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्षता करने के लिए सोनिया जैसे एक वरिष्ठ नेता की जरूरत है। ऊपरी सदन में कांग्रेस नीत विपक्ष काफी लड़ाकू है और सरकारी विधेयकों को रोक सकता है। भाजपा को राज्यसभा में बहुमत प्राप्त करने के लिए कुछ और समय प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, यद्यपि इसे कांग्रेस के मुकाबले एक सीट अधिक मिल गई है और ऊपरी सदन में यह अकेली सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा व अन्य जैसे पुराने नेता, जो अभी तक प्रमुखता से आवाज उठाते रहे हैं, वे सभी सोनिया गांधी के करीबी हैं।

यदि राहुल एक युवा टीम लाते हैं, जिसे संसदीय रिवायतों की अधिक जानकारी नहीं होगी तो इससे उद्देश्य प्राप्त नहीं किया जा सकेगा। जहां तक विपक्ष के अन्य नेताओं से निपटने की बात है तो विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए सोनिया से बेहतर कौन होगा? गत कुछ महीनों से पृष्ठभूमि में जाने के बावजूद यह उनका ही नेतृत्व था जो हालिया राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनावों में संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार चुनने के लिए 18 राजनीतिक दलों को साथ लाया। 

चौथा और सबसे महत्वपूर्ण, कांग्रेस की नजर 2018 में होने वाले विधानसभा चुनावों तथा 2019 के लोकसभा चुनावों में बेहतर कारगुजारी दिखाने पर है। पार्टी जानती है कि चुनावों में गणित काम आता है। सोनिया ने साबित किया है कि वह यू.पी.ए. को एक साथ रख सकती हैं, हालांकि इसका आकार सिकुड़ रहा है। लोकसभा चुनावों के नजदीक यू.पी.ए. को और अधिक सहयोगियों की जरूरत होगी। शरद पवार, ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव जैसे वरिष्ठ विपक्षी नेता शायद राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करना पसंद नहीं करें, जबकि उन्हें सोनिया के साथ काम करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने हाल ही में एक टी.वी. साक्षात्कार में कहा था कि सोनिया एक ऐसा गोंद हैं जिन्होंने यू.पी.ए. को बरकरार रखा है और उनके बिना यू.पी.ए. टूट जाएगा। इसलिए कांग्रेस कम से कम 2019 के चुनावों तक तो सोनिया को उनके पद पर बने रहना पसंद करती। 

इसलिए कोई हैरानी की बात नहीं कि शनिवार को पार्टी अध्यक्ष का पद त्याग देने के बावजूद सोनिया कांग्रेस संसदीय दल की नेता तथा यू.पी.ए. की चेयरपर्सन बनी रहेंगी। नए पार्टी अध्यक्ष होने के नाते राहुल संगठनात्मक मामलों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे। पार्टी धीरे-धीरे डूब रही है और इसे गांधियों के पूर्णकालिक ध्यान की जरूरत है। एक बार राहुल खुद को ‘वोट कैचर’ के तौर पर स्थापित कर लेते हैं तो उनके लिए चीजों में सुधार हो जाएगा। राहुल पहले ही हालिया गुजरात चुनावों में एक विश्वसनीय नेता के तौर पर उभरे हैं। उन्हें जो करना है वह यह कि संगठन बनाएं और 2019 के चुनावों से पूर्व जमीनी कार्यकत्र्ता तैयार करें।-कल्याणी शंकर

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