दक्षिण व उत्तर कोरिया का एक होना ‘भारत-पाक’ के लिए सबक

Edited By Pardeep,Updated: 04 May, 2018 03:27 AM

south and north korea lessons for india pak

विश्व के शांतिप्रिय देशों ने उत्तर-कोरिया और दक्षिण कोरिया के 65 वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद दोस्ताना माहौल पैदा होने पर सुख की सांस ली है। यह आपसी मसलों को हल करने का एक सकारात्मक तरीका ही नहीं है बल्कि एक नए युग का भी आगाज है। हकीकत में...

विश्व के शांतिप्रिय देशों ने उत्तर-कोरिया और दक्षिण कोरिया के 65 वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद दोस्ताना माहौल पैदा होने पर सुख की सांस ली है। यह आपसी मसलों को हल करने का एक सकारात्मक तरीका ही नहीं है बल्कि एक नए युग का भी आगाज है। हकीकत में अमरीका में राष्ट्रपति ट्रंम्प के आने से उत्तर कोरिया के साथ संबंध बड़े खतरनाक मोड़ पर पहुंच गए थे और ऐसा मालूम होता था कि किसी भी समय दोनों देशों में एटमी युद्ध हो सकता है और तीसरे विश्वयुद्ध की बुनियाद रखी जा सकती है क्योंकि उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने अपने 7 वर्षों में 89 टैस्ट  किए हैं। जबकि 33 सालों में 150 मिसाइलें और 6 परमाणु टैस्ट वह पहले भी कर चुके हैं। 

एटम बम और हाईड्रोजन बम के टैस्ट ने दुनिया को ही हिलाकर रख दिया था। परंतु विश्व के इस क्षेत्र में एकदम आए परिवर्तन ने एक नई आशा को जन्म दिया है क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर 1945 में जापान को करारी हार का सामना करना पड़ा और कोरिया द्वीप समूह दो हिस्सों में बंट गया। 1953 में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर अचानक आक्रमण करके उस पर अधिकार जमाने की कोशिश की। उत्तर कोरिया की पीठ पर रूस और दक्षिण कोरिया की अमरीका सहायता करने लगा। आखिर 1953 में लड़ाई समाप्त हो गई और इस युद्ध में 25 लाख से अधिक सैनिक और आम लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। 

इन दोनों देशों को एकत्रित करने के लिए कुछ बड़ी शक्तियों को अधिकार दिया गया। तब से लेकर 2018 तक दोनों देशों में किसी तरह का कोई संबंध नहीं रहा। इन 65 वर्षों के दौरान दक्षिण कोरिया में 2010 में 73 लाख करोड़ रुपए की जी.डी.पी. थी, जोकि अब 94 लाख करोड़ रुपए हो चुकी है और इसकी जी.डी.पी. विश्व अर्थव्यवस्था के 2.28 प्रतिशत के बराबर है। जबकि उत्तर कोरिया की जी.डी.पी. 2010 में 93 हजार करोड़ रुपए की थी जोकि 2016 में 1.07 लाख करोड़ रुपए थी और इसकी जी.डी.पी. विश्व अर्थव्यवस्था के 0.03 प्रतिशत के बराबर है। केवल दक्षिण कोरिया की सबसे बड़ी कम्पनी सैमसंग का लाभ 2017 में 3.3 लाख करोड़ रुपए था। जबकि उत्तर कोरिया की जी.डी.पी. सैमसंग के मुनाफे का एक-तिहाई हिस्सा है। 

इससे स्पष्ट है कि दक्षिण कोरिया ने अपनी सारी शक्ति देश का औद्योगिकीकरण करने और विकास के पथ पर चलने में लगा दी और उत्तर कोरिया केवल एटम बम बनाने में अपना समय बर्बाद करता रहा। दक्षिण कोरिया के लोग बहुत खुशहाल हो गए, जबकि उत्तर कोरिया में लोगों की माली हालत दिन-प्रतिदिन बिगडऩे लगी। उत्तर कोरिया के तानाशाह के एकदम हृदय परिवर्तन से साबित होता है कि वह अब देश के लोगों के विकास की तरफ अधिक तवज्जो देना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अपने परमाणु परीक्षण स्थलों को भी खत्म करने का फैसला किया है और अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी इसका खुलकर स्वागत किया है। दोनों कोरियाई देशों में मधुर संबंध पैदा होना विश्व के अन्य देशों के लिए एक मिसाल है और विशेष करके अगर ये दोनों देश 65 सालों की लड़ाई-झगड़े के बाद आपस में मिलकर समस्याओं का समाधान कर सकते हैं तो फिर भारत और पाकिस्तान ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

दूसरी तरफ  भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 4 साल में चौथी बार संबंधों को नए आयाम देने के लिए चीन गए और उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करके यह स्पष्ट किया कि इन 4 देशों में एशिया की 36 प्रतिशत आबादी रहती है। भारत और चीन मिलकर विश्व शांति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हकीकत में यह एक अनौपचारिक वार्ता थी, जिसमें आपसी संबंधों को सुधारने का एक अच्छा मौका मिला। सीमा विवाद तो विश्व के कई देशों में हैं परन्तु वे सैनिक कार्रवाई की बजाय आपस में मिल-बैठकर उनका समाधान करना चाहते हैं। यही वर्तमान युग की कूटनीति है। यही अव्वल दर्जे की अक्लमंदी है और यही मानवता को शोभा देती है। अमरीका और कनाडा में भी सीमा विवाद रहे। 

अमरीका ने 2 बार कनाडा पर चढ़ाई की परन्तु उसे पीछे हटना पड़ा और अंत में दोनों ने मिलकर सीमा विवाद को सदा के लिए समाप्त कर लिया। अब सीमा पर कहीं-कहीं कोई सैनिक नजर आता है अन्यथा दोनों देश अच्छे पड़ोसियों की तरह जीवन बसर कर रहे हैं। चीन और रूस के भी कई जगह पर सीमा विवाद हैं। रूस और जापान के भी सीमा विवाद हैं। परन्तु वे आपस में फौजी ताकत से समस्याओं का समाधान नहीं चाहते, जिसके परिणामस्वरूप ये सभी देश शांतिपूर्ण विकास के पथ पर चल रहे हैं। आर्थिक तौर पर अति शक्तिशाली हुए हैं। जनसाधारण के जीवन में भी बहुत सुधार आया है। भारत और पाकिस्तान को इन संबंधों से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। परंतु पाकिस्तान ऐसा अडिय़ल रवैया अपनाए हुए है कि वह मानता ही नहीं। हकीकत में दोनों देशों की समस्याएं गरीबी, बेकारी और लोगों का आॢथक जीवन सुधारने की हैं, न कि हर समय तनावपूर्ण स्थिति बनाकर रखने की। वर्तमान युग में कई देश एटम बमों से लैस हो चुके हैं। पुरानी लड़ाई के तरीके अब पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं। अब यदि लड़ाई होती है तो एक ही एटम बम से 3 से 4 लाख तक लोग पलभर में अपना जीवन खो बैठेंगे और इससे कहीं ज्यादा बुरी तरह से जख्मी हो जाएंगे। समय की मांग है कि ऐसी लड़ाइयों की नौबत कभी न आए और राष्ट्र अध्यक्ष मिल-जुलकर अपनी समस्याओं का समाधान करें। 

अब प्रश्न यह पैदा होता है कि यदि उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम इकट्ठे हो सकते हैं, पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी 1990 में एक राष्ट्र के रूप में बन सकते हैं और अब कोरिया ने नई मिसाल दुनिया के सामने रखी है तो यह पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए आंखें खोलने वाला एक उदाहरण है। जब विभिन्न धर्मों को मानने वाले दुनिया के दूसरे लोग आपस में मिलजुल कर रह सकते हैं तो भारत और पाकिस्तान को क्या मुश्किल है?-के शांतिप्रिय देशों ने उत्तर-कोरिया और दक्षिण कोरिया के 65 वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद दोस्ताना माहौल पैदा होने पर सुख की सांस ली है। यह आपसी मसलों को हल करने का एक सकारात्मक तरीका ही नहीं है बल्कि एक नए युग का भी आगाज है। हकीकत में अमरीका में राष्ट्रपति ट्रम्प के आने से उत्तर कोरिया के साथ संबंध बड़े खतरनाक मोड़ पर पहुंच गए थे और ऐसा मालूम होता था कि किसी भी समय दोनों देशों में एटमी युद्ध हो सकता है और तीसरे विश्वयुद्ध की बुनियाद रखी जा सकती है क्योंकि उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने अपने 7 वर्षों में 89 टैस्ट  किए हैं। जबकि 33 सालों में 150 मिसाइलें और 6 परमाणु टैस्ट वह पहले भी कर चुके हैं। 

एटम बम और हाईड्रोजन बम के टैस्ट ने दुनिया को ही हिलाकर रख दिया था। परंतु विश्व के इस क्षेत्र में एकदम आए परिवर्तन ने एक नई आशा को जन्म दिया है क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर 1945 में जापान को करारी हार का सामना करना पड़ा और कोरिया द्वीप समूह दो हिस्सों में बंट गया। 1953 में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर अचानक आक्रमण करके उस पर अधिकार जमाने की कोशिश की। उत्तर कोरिया की पीठ पर रूस और दक्षिण कोरिया की अमरीका सहायता करने लगा। आखिर 1953 में लड़ाई समाप्त हो गई और इस युद्ध में 25 लाख से अधिक सैनिक और आम लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। 
इन दोनों देशों को एकत्रित करने के लिए कुछ बड़ी शक्तियों को अधिकार दिया गया। तब से लेकर 2018 तक दोनों देशों में किसी तरह का कोई संबंध नहीं रहा। इन 65 वर्षों के दौरान दक्षिण कोरिया में 2010 में 73 लाख करोड़ रुपए की जी.डी.पी. थी, जोकि अब 94 लाख करोड़ रुपए हो चुकी है और इसकी जी.डी.पी. विश्व अर्थव्यवस्था के 2.28 प्रतिशत के बराबर है। जबकि उत्तर कोरिया की जी.डी.पी. 2010 में 93 हजार करोड़ रुपए की थी जोकि 2016 में 1.07 लाख करोड़ रुपए थी और इसकी जी.डी.पी. विश्व अर्थव्यवस्था के 0.03 प्रतिशत के बराबर है। केवल दक्षिण कोरिया की सबसे बड़ी कम्पनी सैमसंग का लाभ 2017 में 3.3 लाख करोड़ रुपए था। जबकि उत्तर कोरिया की जी.डी.पी. सैमसंग के मुनाफे का एक-तिहाई हिस्सा है। 

इससे स्पष्ट है कि दक्षिण कोरिया ने अपनी सारी शक्ति देश का औद्योगिकीकरण करने और विकास के पथ पर चलने में लगा दी और उत्तर कोरिया केवल एटम बम बनाने में अपना समय बर्बाद करता रहा। दक्षिण कोरिया के लोग बहुत खुशहाल हो गए, जबकि उत्तर कोरिया में लोगों की माली हालत दिन-प्रतिदिन बिगडऩे लगी। उत्तर कोरिया के तानाशाह के एकदम हृदय परिवर्तन से साबित होता है कि वह अब देश के लोगों के विकास की तरफ अधिक तवज्जो देना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अपने परमाणु परीक्षण स्थलों को भी खत्म करने का फैसला किया है और अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी इसका खुलकर स्वागत किया है। दोनों कोरियाई देशों में मधुर संबंध पैदा होना विश्व के अन्य देशों के लिए एक मिसाल है और विशेष करके अगर ये दोनों देश 65 सालों की लड़ाई-झगड़े के बाद आपस में मिलकर समस्याओं का समाधान कर सकते हैं तो फिर भारत और पाकिस्तान ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

दूसरी तरफ  भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 4 साल में चौथी बार संबंधों को नए आयाम देने के लिए चीन गए और उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करके यह स्पष्ट किया कि इन 4 देशों में एशिया की 36 प्रतिशत आबादी रहती है। भारत और चीन मिलकर विश्व शांति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हकीकत में यह एक अनौपचारिक वार्ता थी, जिसमें आपसी संबंधों को सुधारने का एक अच्छा मौका मिला। सीमा विवाद तो विश्व के कई देशों में हैं परन्तु वे सैनिक कार्रवाई की बजाय आपस में मिल-बैठकर उनका समाधान करना चाहते हैं। यही वर्तमान युग की कूटनीति है। यही अव्वल दर्जे की अक्लमंदी है और यही मानवता को शोभा देती है। अमरीका और कनाडा में भी सीमा विवाद रहे। 

अमरीका ने 2 बार कनाडा पर चढ़ाई की परन्तु उसे पीछे हटना पड़ा और अंत में दोनों ने मिलकर सीमा विवाद को सदा के लिए समाप्त कर लिया। अब सीमा पर कहीं-कहीं कोई सैनिक नजर आता है अन्यथा दोनों देश अच्छे पड़ोसियों की तरह जीवन बसर कर रहे हैं। चीन और रूस के भी कई जगह पर सीमा विवाद हैं। रूस और जापान के भी सीमा विवाद हैं। परन्तु वे आपस में फौजी ताकत से समस्याओं का समाधान नहीं चाहते, जिसके परिणामस्वरूप ये सभी देश शांतिपूर्ण विकास के पथ पर चल रहे हैं।आर्थिक तौर पर अति शक्तिशाली हुए हैं। जनसाधारण के जीवन में भी बहुत सुधार आया है। भारत और पाकिस्तान को इन संबंधों से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। परंतु पाकिस्तान ऐसा अडिय़ल रवैया अपनाए हुए है कि वह मानता ही नहीं।हकीकत में दोनों देशों की समस्याएं गरीबी, बेकारी और लोगों का आॢथक जीवन सुधारने की हैं, न कि हर समय तनावपूर्ण स्थिति बनाकर रखने की।

वर्तमान युग में कई देश एटम बमों से लैस हो चुके हैं। पुरानी लड़ाई के तरीके अब पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं। अब यदि लड़ाई होती है तो एक ही एटम बम से 3 से 4 लाख तक लोग पलभर में अपना जीवन खो बैठेंगे और इससे कहीं ज्यादा बुरी तरह से जख्मी हो जाएंगे। समय की मांग है कि ऐसी लड़ाइयों की नौबत कभी न आए और राष्ट्र  अध्यक्ष मिल-जुलकर अपनी समस्याओं का समाधान करें। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि यदि उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम इकट्ठे हो सकते हैं, पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी 1990 में एक राष्ट्र के रूप में बन सकते हैं और अब कोरिया ने नई मिसाल दुनिया के सामने रखी है तो यह पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए आंखें खोलने वाला एक उदाहरण है। जब विभिन्न धर्मों को मानने वाले दुनिया के दूसरे लोग आपस में मिलजुल कर रह सकते हैं तो भारत और पाकिस्तान को क्या मुश्किल है?-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा


 

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