Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Mar, 2018 03:39 AM
क्या हम एक राष्ट्रव्यापी युवा आंदोलन की शुरूआत देख रहे हैं? क्या बेरोजगारी का मुद्दा देश की राजनीति का प्रमुख मुद्दा बनेगा? क्या दुनिया के इस सबसे युवा देश में युवाओं के मुद्दे और उनकी ऊर्जा राजनीति को संचालित करेगी..
क्या हम एक राष्ट्रव्यापी युवा आंदोलन की शुरूआत देख रहे हैं? क्या बेरोजगारी का मुद्दा देश की राजनीति का प्रमुख मुद्दा बनेगा? क्या दुनिया के इस सबसे युवा देश में युवाओं के मुद्दे और उनकी ऊर्जा राजनीति को संचालित करेगी?
पिछले एक सप्ताह से एस.एस.सी. विरोधी आंदोलन के कारण यह सवाल बहुत लोगों के मन में आया है। अगर इसका सिरा पकड़े रखें तो यह सवाल हमें हमारी व्यवस्था के पूरे सच को उजागर करने में मदद देता है। पहली पायदान पर खड़े होकर देखें तो मामला छोटा-सा है। केंद्र सरकार के स्टाफ सिलैक्शन कमीशन (एस.एस.सी.) की सी.जी.एल. नामक परीक्षा के कुछ केंद्रों पर धांधली होने का आरोप था। इस धांधली के कुछ प्रमाण भी परीक्षाॢथयों के हाथ लग गए।
इस मुद्दे पर परीक्षार्थियों ने सी.बी.आई. द्वारा स्वतंत्र, निष्पक्ष और समयबद्ध जांच की मांग को लेकर एस.एस.सी. के दफ्तर के बाहर मोर्चा संभाल लिया। पिछले एक सप्ताह में यह विरोध प्रदर्शन अब एक बड़ा रूप धारण कर चुका है। शुरूआत में एक विरोध प्रदर्शन के लिए इकट्ïठे हुए युवा पिछले 8 दिनों से वहीं दिन-रात टिके हुए हैं। सोशल मीडिया पर हजारों युवाओं ने इस आंदोलन को जमकर समर्थन करना शुरू किया, फिर अलग-अलग शहरों में इस आंदोलन के पक्ष में युवा संगठनों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। अब तक जयपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, रायबरेली, बनारस, पटना, भोपाल, बेंगलूर और अन्य अनेक शहरों में प्रदर्शन हो चुके हैं। इस घटना से एक राष्ट्रव्यापी युवा आंदोलन की सुगबुगाहट महसूस होने लगी है। कई लोगों को गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन और बिहार आंदोलन की याद आने लगी है, जहां एक छोटे से मुद्दे से शुरू होकर एकाएक बड़ा युवा आंदोलन खड़ा हो गया था।
ऐसे क्यों हुआ? यह सवाल हमें दूसरी पायदान पर उतरने को विवश करता है। हम पाते हैं कि यह मामला इतना छोटा भी नहीं था। केंद्र सरकार की यह संस्था हजारों सरकारी नौकरियों की कई परीक्षाएं कराती है। इनमें परीक्षार्थियों की संख्या 1 करोड़ से भी अधिक है। जिस सी.जी.एल. परीक्षा में धांधली के सवाल पर आंदोलन शुरू हुआ था उसमें कुल 8000 नियुक्तियां होनी थीं जिसके लिए करीब 30 लाख लोगों ने आवेदन किया था। यूं भी एस.एस.सी. में घपले और घोटाले की यह कोई पहली शिकायत नहीं है।
पिछले कई सालों में एस.एस.सी. द्वारा आयोजित अनेक परीक्षाओं के बारे में शिकायतें आती रही हैं। एक बड़ी शिकायत एस.एस.सी. द्वारा परीक्षाएं आयोजित करने का ठेका एक प्राइवेट कम्पनी को दिए जाने के बारे में है। यह कम्पनी अनेक व्यावसायिक संस्थानों को परीक्षा केन्द्र बना देती है। परीक्षा कैसे ली जा रही है इस पर एस.एस.सी. का कोई नियंत्रण नहीं होता है। कई-कई साल तक परीक्षाएं टाली जाती हैं और परिणाम आने के बाद भी नियुक्ति पत्र नहीं मिलते। नौकरी में ज्वाइनिंग नहीं करवाई जाती, यानी कुल मिलाकर अंधेरगर्दी है। लेकिन आज तक एस.एस.सी. इन शिकायतों के निवारण की कोई व्यवस्था नहीं बना पाई है।
एक पायदान और उतरें तो हम पाएंगे कि यह समस्या किसी एक संस्था या किसी एक सरकार तक सीमित नहीं है। केन्द्र सरकार के साथ-साथ लगभग सभी राज्य सरकारों में भी नौकरियों में नियुक्ति में बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायत आती रहती है। मध्य प्रदेश का व्यापमं कांंड प्रसिद्ध हो गया लेकिन सच यह है कि राज्य के अपने-अपने व्यापमं हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के समय उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा की गई नियुक्तियों में धांधली का मामला देश के सामने आया था। हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में नियुक्ति के मामले में हाईकोर्ट के वरिष्ठï अधिकारियों की मिलीभगत का मामला सामने आया है। ध्यान से देखेंगे तो हर राज्य में हर महीने ऐसा कोई न कोई कांड खुलता रहता है।
सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं और उम्मीदवार बेहिसाब, इसलिए जाहिर है कि इन चंद नौकरियों के लिए जानलेवा प्रतिस्पर्धा होती है। विद्यार्थी अपनी औपचारिक पढ़ाई को छोड़ कर कई-कई साल तक इन परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। मां-बाप के सीमित संसाधनों में से किसी तरह पैसा निकाल कर कोचिंग लेते हैं। सामान्य घर से आने वाले विद्यार्थियों की पूरी जवानी इसी चक्कर में बीत जाती है इसलिए जब इन परीक्षाओं में धांधली की बात सामने आती है तो युवाओं के आक्रोश की कोई सीमा नहीं बचती।
एक सीढ़ी और गहराई में जाने पर हम देखते हैं कि यह समस्या सिर्फ सरकारी नौकरियों में धांधली की नहीं है। इस समस्या की जड़ में है देश में व्यापक बेरोजगारी। हर साल कोई एककरोड़ युवा रोजगार के बाजार में उतरते हैं और हमारी व्यवस्था इनमें से मुट्ïठी भर को ही कायदे का रोजगार दे पाती है। आंकड़ों में देखें तो देश में आर्थिक वृद्धि हुई है लेकिन इसका रत्ती भर भी असर रोजगार के अवसरों में वृद्धि के रूप में दिखाई नहीं देता। रोजगार की तलाश में घूम रहे अधिकांश युवाओं को किसी न किसी कच्ची नौकरी से संतोष करना पड़ता है या तो असंगठित क्षेत्र की नौकरी जिसमें जब मालिक का मन हुआ लगाया जब मन हुआ हटा दिया या फिर पिछले 2 दशक में इसी कच्ची नौकरी के नए स्वरूप यानी कांट्रैक्ट की नौकरी।
प्राइवेट सैक्टर ही नहीं, सरकारी नौकरी में भी अब इन्हीं अस्थायी कांट्रैक्ट नौकरियों की भरमार है। कहने को यहां नियुक्ति पत्र मिलता है, बैंक में वेतन भी मिलता है लेकिन व्यवहार में यह नौकरी असंगठित क्षेत्र की कच्ची नौकरी से बहुत अलग नहीं है। जिन्हें ये भी नसीब नहीं होता वे बेरोजगारों की फौज में गिने जाते हैं। सचमुच बेरोजगारों की संख्या इस औपचारिक आंकड़े से बहुत अधिक है। यानी एस.एस.सी. दफ्तर के बाहर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन सिर्फ एस.एस.सी. नामक संस्था के विरुद्ध नहीं है। अंतत: यह विरोध सिर्फ धांधली और भ्रष्टाचार के विरुद्ध ही नहीं, इस व्यवस्था के विरुद्ध है जो नियमित रूप से बेरोजगारी को जन्म देती है।
सी.बी.आई. द्वारा जांच की मांग में कहीं न कहीं इस व्यवस्था की पड़ताल की इच्छा दबी हुई है। जरूरत है इन अंतर्सम्बन्धों का खुलासा करने वाली दृष्टिï और संगठन की। अगर होस्टल मैस के खाने की पड़ताल से शुरू हुआ नवनिर्माण आंदोलन गुजरात में सत्ता की जड़ हिला सकता है तो एस.एस.सी. घोटाले के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन हमारी राजनीति के ढर्रे को भी बदल सकता है।-योगेन्द्र यादव