Edited By ,Updated: 09 Mar, 2017 01:51 PM
स्वामी विवेकानन्द ने नारी चेतना के संदर्भ में भारतीय स्त्राी को आदर्श बताते हुए कहा-फ्भारत। तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रिायों का आदर्श सीता, सावित्राी, दमयंती है। मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, तुम्हारा धन और तुम्हारा जीवन इन्द्रिय सुख के लिए ...
स्वामी विवेकानन्द ने नारी चेतना के संदर्भ में भारतीय स्त्राी को आदर्श बताते हुए कहा-फ्भारत। तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रिायों का आदर्श सीता, सावित्राी, दमयंती है। मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, तुम्हारा धन और तुम्हारा जीवन इन्द्रिय सुख के लिए हैं, अपने व्यक्तित्व सुख के लिये नहीं है। मत भूलना की तुम जन्म से ही माता के लिये बाती स्वरूप रखे गए हो, मत भूलना कि तुम्हारा समाज उस विराट महामाया की छत्राछाया है। फ्वाक्य अधूरा ही रहता, जब तक क्रिया नहीं होती पुरूप ‘परष’ ही रहता है, जब तक प्रिया नहीं होती।य् आदिकाल में बुद्धि के विकास के साथ ही उसने अपने कार्यक्षेत्रा को बढ़ाया साथ ही सम्पति का संग्रहण भी आरम्भ कर दिया। संपति के संग्रहण के साथ ही उसको समस्या आयी कि उसकी संपति की देखभाल कौन करेगा और उसकी मृत्यु के बाद उसका उपभोग कौन करेगा? इसी विचार के साथ विवाह की आवश्कता अनुभव हुई ताकि पुरूष द्वारा उसकी जीवन संगिनी से उत्पन्न संतान ही उसकी उत्तराध्किारी होकर उसके द्वारा छोड़ी गई संपति का उपभोग कर सके। प्राचीन आर्य समाज में इन्हें ‘जानि’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है जन्म देने वाली। आगे चलकर उसे ही बदलकर ‘जननी’ शब्द बना दिया गया।
परिवार के दो स्तम्भ होते हैं- पुरूष और नारी। उन्हीं के संयुक्त प्रयास से परिवार बनते और चलते हैं, किन्तु परिवार की सुव्यवस्था का उत्तरदायित्व नारी के कंधें पर ही आता है। परिवार के लिए नारी शक्ति स्वरूपा है। घर-परिवार का पूरा वातावरण उसी के आचरण पर निर्भर करता है। नारी जन्मदात्राी है। बच्चों का प्रजनन ही नहीं, पालन-पोषण भी उसके हाथ में है। माता के द्वारा बच्चों को जो संस्कार बचपन में दिए जाते हैं वे जीवन भर उनका मार्गदर्शन करते रहते हैं। जैसे- शिवाजी की माता जीजाबाई ने शिवाजी को एक योग्य रूप में स्थापित किया और आगे चलकर इसी रूप में वे विख्यात हुए। लेकिन शिवाजी के पिता मुस्लिम शासकों के प्रभाव में होने के कारण ऐसा नहीं करना चाहते थे। घर प्रथम पाठशाला है बालक के लिए और माता उसकी प्रथम शिक्षक है। नारी जन्मदात्राी है। समाज का प्रत्येक भावी सदस्य उसकी गोद में पलकर संसार में खड़ा होता है। उसके स्तन का अमृत पीकर पुष्ट होता है। माँ की हंसी से हंसना और माँ की वाणी से बोलना सीखता है। उसके स्नेह के जल से सींचकर पोषित होता है और उसी से अच्छे-बुरे संस्कार लेकर अपने जीवन की दिशा बनाता है।
नारी के समुचित सहयोग से ही संतान के साथ ही पति एवं परिवार के वातावरण का निर्माण करती है। परिवार के स्तर एवं वातावरण को बनाने में सुसंस्कृत नारी की ही भूमिका होती है। परिवार के अन्य लोग उसके सहायक या सहयोगी मात्रा ही हो सकते हैं, निर्णायक नहीं। नारी को घर परिवार का उत्तरदायित्व विशेष रूप से सम्हालना होता है। सामान्यतः पुरूष बाहर जाकर परिश्रम करके ध्न कमाता है। परिवार को चलाने के लिए मेहनत करता है। नारी घर में उसकी सुख सुविध का प्रबन्ध् करती है उसके खाने -पीने का, उसके आराम का प्रबंध् करती है। उसे नवजीवन एवं नव स्फूर्ति प्रदान करती है। उसे गृहस्थी में रहने के लिये आकर्षित करती है। आज सर्वत्रा भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेईमानी फैली हुई है। मां, बहन और पत्नी चाहें तो इन बुराईयों को समूल नष्ट कर सकती है। परिवार सुसंस्कृत होगा तो समाज स्वयं ही सुध्र जाएगा।
शिक्षा सफलता की कुंजी है। बिना शिक्षा के जीवन अपंग है। यदि नारी शिक्षित होगी तो वह अपने परिवार की व्यवस्था ज्यादा अच्छी तरह से चला सकेगी। एक अशिक्षित नारी न तो स्वयं का विकास कर सकती है और न ही परिवार के विकास में सहयोग दे सकती है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को घर का काम, बच्चों का पालन-पोषण ही करना है तो महिलाओं के लिए शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है। शिक्षा की कमी के कारण महिलाएं परिवार नियोजन जानकारियों को समझ नहीं पाती हैं जिसके कारण गर्भावस्था व प्रसूति के समय अनेक बीमारियां का शिकार हो जाती हैं। शिक्षा के अभाव में स्वयं के पोषण पर ध्यान नहीं दे पाती हैं।
भारतीय समाज में नारी का मातृशक्ति के पद पर प्रतिष्ठित रखा है, उसने ऐसे श्रेष्ठ मानव रत्न समाज को दिए जिनका नाम आज भी अमर है। जब-जब उसे गृहस्वामिनी, गृहलक्ष्मी, कुलमाता के रूप में आदर दिया है तब-तब भारत का नाम विश्व में गूंजा है। मनु का कहना है कि-
फ्यत्रा नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमंते तत्रा देवता
यत्रौतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रा फलाः क्रियाः।
हमारी सभ्यता एवं संस्कृति में नारी को देवी जैसा माना गया है। हमारे वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ सभी में नारी को बराबरी का स्थान दिया जाता था। वह पुरूष के समान हर कार्य में बराबर से हिस्सा लेती थी। समाज, घर, परिवार में आदर का पात्रा थी। दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में सभी के द्वारा पूजी जाती थी। प्रत्येक धर्मिक कार्य में उसकी उपस्थिति अनिवार्य थी। भारत की सामाजिक मान्यताओं और परम्पराओं ने नारी को बचपन में पिता के अधीन, युवाकाल में पति के अधीन और व्यवस्था में पुत्रों के अधीन कर दिया गया है। पुत्राी को जन्म देने पर माता को प्रताड़ित किया जाता है। आज भारतीय नारियाँ देश की संस्कृति, सभ्यता एवं धर्म की संरक्षिका बनी हुई है। साथ ही घर, गृहस्थी, परिवार, देश, समाज एवं घर के संचालन में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है।