नए केंद्र शासित प्रदेश ‘लद्दाख’ की कहानी

Edited By ,Updated: 25 Aug, 2019 02:15 AM

story of the new union territory of ladakh

क्या आपने लोकसभा में लद्दाख के युवा सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल को धारा-370 पर बोलते सुना? फिर तो आपने इस युवा सांसद को 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर हर्षोल्लास से नाचते टैलीविजन पर भी देखा होगा? इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को यह भी पता होगा कि...

क्या आपने लोकसभा में लद्दाख के युवा सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल को धारा-370 पर बोलते सुना? फिर तो आपने इस युवा सांसद को 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर हर्षोल्लास से नाचते टैलीविजन पर भी देखा होगा? इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को यह भी पता होगा कि महाराजा रणजीत सिंह की 1839 में मृत्यु हो गई थी। यह भी पता होगा कि उनकी मृत्यु के बाद सिख दरबार में अराजकता फैल गई थी? इतना तो इतिहासकार भी बताते हैं कि महाराजा रणजीत सिंह की मृत्योपरांत अंग्रेजों और सिखों में सत्ता के लिए निरंतर युद्ध हुए थे। 

इन युद्धों में डोगरा बंधुओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह भी याद होगा कि डोगरा वजीर ध्यान सिंह की सिखों की आपसी लड़ाई में निर्मम हत्या कर दी गई थी। यह भी सर्वविदित होगा कि दूसरे डोगरा वजीर गुलाब सिंह से उनकी जागीर छीनने के षड्यंत्र रचे गए थे। यह भी कि अंग्रेजों और सिखों के बीच मार्च, 1946 में कुछ संधियां हुई थीं? संधियों की शर्तों अनुसार अंग्रेजों ने सिखों पर डेढ़ करोड़ रुपए का जुर्माना ठोंका था क्योंकि सिख अंग्रेजों से युद्ध में हार गए थे? यह भी इतिहासकार जानते होंगे कि सिख जुर्माना अदा न कर सके और वजीर गुलाब सिंह ने 75 लाख जुर्माना अंग्रेजों को अदा कर जम्मू-कश्मीर अपने नाम करवा लिया था। 

इसी गुलाब सिंह का एक महान जरनैल जोरावर सिंह था जिसने एक-दो बार नहीं बल्कि छ: बार लद्दाख पर चढ़ाई कर उसे हमेशा-हमेशा के लिए डोगरा राज में मिला लिया। राजा गुलाब सिंह जम्मू-कश्मीर के स्वामी और जनरल जोरावर सिंह महाराजा गुलाब सिंह के सेनापति। सैन्य विशेषज्ञ हैरान होते हैं कि कैसे एक जनरल ने समुद्र तल से 15,000 फुट की ऊंचाई पर, दुर्गम पठारों और बर्फ से ढके क्षेत्र में 1841 में लड़ाइयां लड़ी होंगी? जनरल जोरावर सिंह ने लद्दाख ही विजय नहीं किया, जन्संकार और बाल्तिस्तान को भी कश्मीर राज्य में मिला लिया। न केवल यह, बल्कि रुदोक, गारो और तकलालाकोट जैसे क्षेत्र भी कश्मीर राज में मिलाए। इस महान योद्धा का देहांत भी लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर हुआ। 

लद्दाख को कश्मीर में मिलाया और अब तो कश्मीर भी भारत में मिल चुका है परन्तु लद्दाख, कारगिल, बाल्तिस्तान, चुशूल, द्रास इत्यादि क्षेत्रों को भारतीय भूभाग का अभिन्न अंग बनाने में महाराजा गुलाब सिंह के इस महान जरनैल का अविस्मरणीय योगदान है। भारत के लोग कृतघ्न होंगे यदि महान योद्धा जनरल जोरावर सिंह के प्रति नतमस्तक नहीं होंगे। 

लद्दाख बारे कुछ जानकारी
थोड़ी-सी और जानकारी इस लद्दाख जैसे केंद्र शासित प्रदेश बारे जनता को मिलनी चाहिए। लद्दाख कश्मीर घाटी के पूर्व में स्थित है। मैं यह बताना भी अपना कत्र्तव्य समझता हूं कि लद्दाख की सीमाएं एक स्वतंत्र देश तिब्बत से लगती थीं परन्तु 1950 में चीन ने तिब्बत को अपने में मिला लिया। कभी चीन लद्दाख और तिब्बत को कर देता था। लद्दाख की भाषा, सभ्यता और संस्कृति तिब्बत से मिलती है। कभी तिब्बत ने चीन पर विजय भी प्राप्त की थी। 

विश्व राजनीति का दुर्भाग्य है कि ज्यों ही संसद ने धारा 370 जम्मू-कश्मीर से हटाई और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया, चीन छटपटाने लगा। चीन लद्दाख पर हुई अन्तर्राष्ट्रीय संधियों पर भी उंगली उठाने लगा। पाठकवंृद, लद्दाख भारत का लघु तिब्बत है। यह नया केंद्र शासित प्रदेश दुनिया की छत है। लेह-लद्दाख, कारगिल, बाल्तिस्तान, गिलगित, द्रास, जम्मू-कश्मीर रियासत के अंग हैं। यह अलग बात है कि हमारी राजनीतिक भूलों के कारण इसी जम्मू-कश्मीर राज्य के 78000 वर्ग किलोमीटर पर पाकिस्तान और 45,000 वर्ग किलोमीटर पर चीन ने बलात् कब्जा कर रखा है। 

लद्दाख प्रदेश की समुद्र तल से ऊंचाई कहीं 2440 मीटर तो कहीं 4570 मीटर है। एकदम शुष्क पठारी क्षेत्र, बर्फ से ढकी चोटियां। आक्सीजन की कमी समतल इलाके में रहने वालों को लद्दाख में अखरती रहेगी। जनसंख्या का घनत्व कठिनाई से 2 प्रतिशत प्रति वर्ग किलोमीटर, पर स्मरण रहे राजनीतिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र भारत के लिए अति महत्वपूर्ण है। हां, कहीं-कहीं वनस्पति देखने को मिल जाती है। बौद्ध-मठ लद्दाख की विशेषता हैं। 

कभी-कभी यहां पहुंच कर ऐसा लगता है कि यह क्षेत्र एक परित्यक्त नारीकी तरह है जिसे पाने की ललक चीन, रूस और अफगानिस्तान तक को है। प्राचीन काल में यहां कबीलों के मुखियों का ढीला-ढाला प्रशासन रहा होगा। राजा कनिष्क के समय लद्दाख बौद्ध धर्म से ओत-प्रोत हो गया। बौद्ध धर्म सातवीं शताब्दी में भारत के रास्ते यहां पहुंचा। बौद्ध मत की बहुलता के कारण ‘लामाओं’ का वर्चस्व लद्दाख में हमेशा रहा। यह भी सभी पाठक जान लें कि बौद्ध मत पहले लद्दाख में आया और फिर कहीं चीन पहुंचा। जिस सदी में हिंदू मत का भारत में पुनर्जागरण हो रहा था, उसी सर्दी में लद्दाख बौद्ध मत का आश्रय ले चुका था। कृषि, भेड़-बकरियां पालना और ऊन का व्यापार लद्दाख की विशेषता है। 

कश्मीर राज्य के लोकप्रिय और शक्तिशाली सम्राट जिसने 724 ईस्वी से 761 ईस्वी तक शासन किया, उसी सम्राट ललितादित्य ने लद्दाख को कश्मीर राज्य का अंग बनाया। 842 ईस्वी में जब ललितादित्य का पतन हुआ तो लद्दाख पर ‘लाचिन’ वंश का कब्जा हो गया। इसी वंश की उथल-पुथल में ‘लिन चिना’ या ‘रिनचिन’ एक लद्दाखी बौद्ध भिक्षु कश्मीर घाटी में शरण लेने पहुंचा। यहां पहुंच कर उसने एक साहसी मुसलमान सिपहसालार शाहमीर से सांठगांठ की और कश्मीर घाटी का राजा बन गया। राजा बनते ही उसने वहां के पंडितों से उसे हिन्दू बनाने की प्रार्थना की परन्तु कश्मीरी पंडितों ने उसकी प्रार्थना को यह कह कर ठुकरा दिया कि उसे किस हिन्दू जाति में शामिल किया जाए? शाहमीर ने उसे तत्काल मुस्लिम बना इस्लाम धर्म में शामिल कर लिया। बस यहीं से कश्मीर घाटी के बाशिंदे मुसलमान बनने लगे। जो नहीं बने, उन्हें कत्ल कर दिया गया। आगे का इतिहास धीरे-धीरे अन्य लेखों द्वारा पाठकों के सामने रखता रहूंगा। 

मुगल राज का हिस्सा
1420 से 1470 तक कश्मीर में मिर्जा हैदर का राज रहा। उसके बाद लद्दाख मुगल राज का हिस्सा रहा। औरंगजेब के शासन तक लद्दाख दिल्ली सल्तनत को कर की अदायगी करता रहा। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद लद्दाख पुन: आजाद हो गया। 1616 से 1642 ईस्वी तक लद्दाख पर सिंगे नामग्याल का राज रहा। उसने लद्दाख में बहुत से बौद्ध मठ स्थापित किए। उन्हें भवन निर्माण कला का बहुत शौक था। उन्होंने लेह में नौ मंजिला एक शाही महल भी बनाया। महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 तक राज किया और उन्होंने जम्मू-कश्मीर तक को अपने राज्य में शामिल करने के अपने प्रयत्नों में ढील नहीं आने दी। सिख राज के पतन के बाद, जैसे मैंने पहले अर्ज किया, डोगरा वजीर गुलाब सिंह ने 75 लाख में जम्मू-कश्मीर खरीद लिया। जम्मू-कश्मीर महाराजा गुलाब सिंह की निजी जागीर हो गई। इसी महाराजा गुलाब सिंह के बहादुर जरनैल जोरावर सिंह ने लद्दाख को कश्मीर राज्य का हिस्सा बनाया। 

अब हुआ क्या कि धारा 370 के तरह कश्मीर घाटी तो भारत द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता से इस्लामिक स्टेट बनती गई परन्तु उसी राज्य के दो क्षेत्र जम्मू और लद्दाख पिछड़ते गए। सारी आर्थिक योजनाओं का लाभ कश्मीर घाटी को और भारत की जय के नारे लगाने वाले दोनों क्षेत्र जम्मू और लद्दाख के हाथ लगता रहा ‘बाबे का ठुल्लू’। सशक्त सरकार आई तो उसने इस अन्याय को खत्म करने की ठान ली। 70 साल के नासूर धारा 370 को संसद के दोनों सदनों ने रद्द कर दिया। जम्मू-कश्मीर राज्य को केंद्र शासित प्रदेश तो बनाया ही, वहीं लद्दाख को भी केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया। अत: वहां के युवा सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल खुशी से झूमने लगे। लद्दाख की जनता अपने सांसद के साथ हो ली। इस पर हाय-तौबा कैसी? कश्मीर घाटी, जम्मू क्षेत्र और लद्दाख भारत का अभिन्न अंग। आगे की लड़ाई पाक अधिकृत कश्मीर की।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!