अपने भविष्य को लेकर चिंतित विद्यार्थी

Edited By ,Updated: 18 Jun, 2021 06:04 AM

students worried about their future

महामारी एक ऐसा काल बनकर पूरे विश्व व हमारे देश-प्रदेश, घर-गांव पर मंडराई है मानो अपनी जान बचाना ही इस समय जन्म लेने की यथार्थता हो गई हो। इस महामारी ने न जाने कितनों को अपनों

कोरोना महामारी एक ऐसा काल बनकर पूरे विश्व व हमारे देश-प्रदेश, घर-गांव पर मंडराई है मानो अपनी जान बचाना ही इस समय जन्म लेने की यथार्थता हो गई हो। इस महामारी ने न जाने कितनों को अपनों से जुदा कर दिया और न जाने अभी यह कोरोना महामारी कितनों को अपनी आगोश में लेने के लिए विषैली घात लगाएगी।

कोरोना ने न जाने कितनों को बेरोजगार कर घरों में बिठा दिया और न जाने कितनों को दो वक्त की रोटी के लिए सड़कों पर उतार दिया है। इसने देश का कोई क्षेत्र व कोना ऐसा नहीं छोड़ा है जिसको अपनी विषैली घात से प्रभावित न किया हो। चाहे वह परिवहन हो, पर्यटन हो, अर्थव्यवस्था हो, कृषि हो या फिर सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा व स्वास्थ्य ही क्यों न हो। इन सब पर कोरोना ने अपने जहरीले फन से आक्रमण किया है, जिससे संभलने में अभी कई साल इनको लग सकते हैं। 

कोरोना को विश्व व हमारे देश में आए हुए लगभग डेढ़ वर्ष हो चुके हैं। इस संक्रमण के फैलने पर जिस क्षेत्र को सबसे पहले बंद किया गया था, वह था शिक्षा का क्षेत्र। आज लगभग डेढ़ वर्ष के बाद शिक्षा व विद्याॢथयों के बीच पनपी दूरी कम नहीं हो पाई है, बल्कि धीरे-धीरे और बढ़ती ही जा रही है। कहने को तो डिजिटल माध्यम को शिक्षा का विकल्प बताया जा रहा है लेकिन शिक्षा के लिए एक माहौल व परिवेश तथा गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिससे समस्त विद्यार्थी वर्ग कोरोना के कारण वंचित हो गया है। 

विद्यार्थी असमंजस में हैं कि कोरोना से सुरक्षा हो, शिक्षा हो या इन दोनों के बाद बात परीक्षा तक पहुंचेगी भी या नहीं। कई विद्याॢथयों को सीधे अगली कक्षाओं में पदोन्नत कर दिया गया है लेकिन योग्यता का पैमाना इस पदोन्नत प्रक्रिया से दूर रहा। पदोन्नति तो मजबूरी थी।

आखिर सरकारें व शिक्षा विभाग करते भी तो क्या? या तो जीरो वर्ष घोषित करते या एक वर्ष के नुक्सान की भरपाई पदोन्नति से करते और हुआ भी ऐसा ही। लेकिन अब इतने लंबे समय से घरों में कैद विद्यार्थी, चाहे वे स्कूल के विद्यार्थी हों या महाविद्यालयों के, सभी एक मानसिक दबाव महसूस कर रहे हैं, उन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है कि क्या उनकी परीक्षाएं होंगी या उन्हें उनका परिणाम किस प्रकार दिया जाएगा? इस प्रकार के अनेकों सवाल हैं जो घरों के अंदर कैद होने के साथ इनके मन को और अधिक घुटन महसूस करवाते हैं। विद्यार्थी वर्ग शिक्षा तो चाहता है मगर परिस्थितियों के आगे नतमस्तक है क्योंकि कोरोना अपनी चरम-सीमा व गति से लोगों को मौत का ग्रास बनाए जा रहा है। 

इस महामारी के दौरान विद्याॢथयों का जीवन अस्त-व्यस्त या मानो त्रस्त-सा होता जा रहा है। जहां विद्यार्थी मार्च माह में परीक्षाओं में जुटे होते थे, वहीं आज स्थिति ऐसी असमंजसपूर्ण बन गई है कि परीक्षाएं होंगी या नहीं, इसे लेकर ही विद्याॢथयों का जीवन तनाव में घुट-सा रहा है। घर में बैठे विद्यार्थी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह महामारी कब खत्म होगी और कब उनका जीवन आगे की परीक्षाओं के लिए सुखदायक होगा। जिन छात्रों ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की है या करनी थी, वे भी 2 वर्ष पीछे चले गए हैं। इसलिए जहां अभिभावक परेशान हैं वहीं छात्र भी इस स्थिति से दुविधा व परेशानी में हैं। 

यही नहीं उन बच्चों का जीना भी दूभर हो चुका है जो गत 2 वर्षों से स्कूल परिसर भी नहीं देख पाए हैं और घर के आंगन और छत के नीचे मजबूर होकर हर रोज बयां करते हैं कि हम कब स्कूल पहुंचेंगे। इन नन्हे-मुन्ने बच्चों का तो बुरा ही हाल है ही, जिन्होंने पहली कक्षा में दाखिला लेना था वे भी घर में कैद हो चुके हैं। अगर यही हाल रहा तो बच्चों की जिंदगी इन प्रतिकूल परिस्थितियों में ऐसी बन जाएगी कि वे घर से निकलना पसंद नहीं करेंगे।

इसलिए सरकार को चाहिए कि कोई ऐसी योजना बनाएं कि जो छोटे बच्चे हैं, उनके लिए घर द्वार पर जहां पढ़ाई हो, वहीं मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध हों। सरकारों ने अनेक ऐसे प्रयास पिछले एक वर्ष के दौरान किए हैं, जिनसे शिक्षा व विद्यार्थी के बीच पनपी दूरी को कम किया जा सके, चाहे वह ‘हर घर पाठशाला’ जैसे कार्यक्रम हों या गूगल मीट,जूम मीट प्लेटफार्म के माध्यम से कक्षाएं लगानी हों। सरकारों ने अनेक प्रयास किए हैं लेकिन सब कोरोना के इस भयंकर आगोश में फीके-से लगते हैं। 

आज घरों में कैद विद्यार्थी सिर पर हाथ धरे बैठने व अपने भविष्य की चिंता करने के अलावा किसी अन्य स्थिति में नजर नहीं आ रहे, मानो मानसिक दबाव, तनाव व चिंता और कोरोना की भयंकर लहर सब कुछ नष्ट करने को आतुर-सी हो, ऐसा प्रतीत होता है। लेकिन इन युवा विद्यार्थियों को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ मजबूत दृढ़ इच्छा बनाए रखते हुए इस बुरे वक्त से पार पाना है।

आज न सही, कल वह सवेरा आएगा जब कोरोना का नामो-निशान देश से समाप्त होगा। यह वक्त ही तो है गुजर ही जाएगा लेकिन अपने पीछे कुछ काले अध्याय जरूर छोड़ जाएगा, जिनसे पूरे समाज को मिलकर लडऩा है। भविष्य के लिए सीख लेते हुए राष्ट्र व समाज के उत्थान के लिए कार्य करते अपना श्रेष्ठ योगदान देते हुए राष्ट्र निर्माण की एक ऐसी अलख जगानी है जिसके प्रकाश से एक ऐसा वैश्विक मार्ग प्रशस्त हो, जिससे भारत एक बार पुन: ‘विश्व गुरु-जगत् गुरु भारत कहलाए’।-डॉ. मनोज डोगरा

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