कई मायनों में महत्वपूर्ण होगा अयोध्या पर ‘सुप्रीम’ फैसला

Edited By ,Updated: 23 Oct, 2019 01:21 AM

supreme  decision on ayodhya will be important in many ways

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगले माह आ जाएगा और अयोध्या इस फैसले से होने वाले असर का सामना करने के लिए तैयार हो रही है। इस फैसले से मालिकाना हक को लेकर दो समुदायों के बीच चल रहे विवाद का अंत हो जाएगा। 6 दिसम्बर 1992 को...

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगले माह आ जाएगा और अयोध्या इस फैसले से होने वाले असर का सामना करने के लिए तैयार हो रही है। इस फैसले से मालिकाना हक को लेकर दो समुदायों के बीच चल रहे विवाद का अंत हो जाएगा। 6 दिसम्बर 1992 को कारसेवकों की हिंसक भीड़ ने राम मंदिर के निकट स्थित बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था जिससे देश के साम्प्रदायिक ताने-बाने पर असर पड़ा था। हिन्दू पक्ष (जिसमें सात पाॢटयां शामिल हैं) ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि मस्जिद के निर्माण से पहले यहां भगवान राम के जन्म स्थल को समॢपत मंदिर था। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के 17 नवम्बर को रिटायर होने से पहले फैसला आने की उम्मीद है।

भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि फैसला उनके पक्ष में आएगा और इसलिए वे काफी उत्साहित हैं। फैसला पक्ष में आने पर उनको इस बात की खुशी होगी कि दशकों के लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार उनका ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा हकीकत बनने जा रहा है। स्थानीय नेताओं का दावा है कि प्रस्तावित मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम 65 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है और बहुत से कारसेवकों ने मंदिर के लिए कार्य करने की पेशकश की है। यदि फैसला पक्ष में आता है तो भाजपा सांसद साक्षी महाराज के अनुसार प्रधानमंत्री 6 दिसम्बर को मंदिर का नींव पत्थर रख सकते हैं। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि उन्हें मंदिर के पक्ष में फैसला आने की उम्मीद है। उन्होंने प्रशासन को भी फैसले के बाद की स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा है। फैजाबाद जिले का नाम बदल कर अयोध्या रख दिया गया है और इसकी सड़कों को चौड़ा करके तथा घाटों को विकसित करके पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनाया जा रहा है। 

फैसले का राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्रों में असर
अयोध्या मामले में आने वाले फैसले से कानूनी, राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्रों में असर पड़ेगा। उच्चतम न्यायालय के फैसले से कानूनी तौर पर यह मामला समाप्त हो सकता है लेकिन राजनीतिक और धार्मिक पहलुओं से भी यह मामला उतना ही महत्वपूर्ण है। संभव है कि दोनों पक्ष फैसले को स्वीकार कर लें। मुस्लिम धार्मिक विद्वानों और नेताओं ने भी कहा है कि फैसला जो भी आए,  दोनों पक्षों को उसे स्वीकार करना चाहिए।

यह भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि पिछले 3 दशकों से पार्टी की राजनीतिक और चुनावी उन्नति इस मसले से जुड़ी रही है। यदि हम पीछे मुड़ कर देखें तो भाजपा ने राम मंदिर के लिए 90 के दशक में प्रचार करना शुरू किया था। 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना भाजपा और इसकी हिंदुत्व की राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। वास्तव में 1990 में गुजरात के सोमनाथ से अडवानी ने जो राम रथ यात्रा निकाली थी उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी भूमिका थी। हालांकि योजना के अनुसार यह यात्रा अयोध्या में समाप्त नहीं हो पाई क्योंकि उससे पहले ही अडवानी को गिरफ्तार कर लिया गया था। 

बाबरी मस्जिद को ढहाने से न केवल देश के राजनीतिक नैरेटिव में एक परिवर्तन आया बल्कि इस घटना ने भाजपा को राष्ट्रीय राजनीति में अपने आपको स्थापित करने में मदद की। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा को राष्ट्रीय पहचान और राष्ट्रीय कद मिला। जिस पार्टी को कभी बनिया और ब्राह्मण पार्टी माना जाता था और उसकी उपस्थिति केवल हिन्दी बैल्ट में ही मजबूत थी, वह आज एक राष्ट्रीय पार्टी बन गई है और उसने कांग्रेस का स्थान ले लिया है। 

संघ परिवार का पुराना मुद्दा
अयोध्या संघ परिवार और इससे जुड़े संगठनों के लिए एक महत्वपूर्ण एजैंडा रहा है और इसलिए शायद भाजपा बार-बार इस मुद्दे को उठाती रही है। भाजपा ने लगातार राम मंदिर की बात की है और 1996 के चुनावों से लेकर यह अपने चुनाव घोषणा पत्र में इस मुद्दे को शामिल करती आई है। हालांकि भाजपा नेता एल.के. अडवानी ने विध्वंस के बाद कहा था, ‘‘आंदोलन केवल मंदिर निर्माण के लिए नहीं है बल्कि हिंदुत्व के मूलभूत सिद्धांत-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित करने के लिए भी है।’’ 

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा बसपा समेत अन्य राजनीतिक दल इस मुद्दे पर काफी एहतियात बरतते रहे हैं। भाजपा की बढ़त को देखते हुए कांग्रेस ने पिछले कुछ समय में उदार ङ्क्षहदुत्व राजनीति में ढलने की कोशिश की है और इसके राहुल गांधी जैसे नेताओं ने मंदिरों के दौरे किए हैं। सपा, बसपा, राजद जैसे दल जो 90 के दशक में महत्वपूर्ण भूमिका में थे, वे अब काफी हद तक अपना आधार खो चुके हैं। 

पार्टी का भावी एजैंडा
भाजपा का भावी एजैंडा इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपना हिंदुत्व कार्ड किस तरह से खेलती है। पार्टी मुख्य तौर पर पूरे देश में अपना जनाधार मजबूत करना चाहेगी। इसे अभी पूर्व-उत्तर और दक्षिण में अपने पैर जमाने हैं। भाजपा पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अपने प्रसार का लक्ष्य लेकर चल रही है। इसके अलावा आॢथक एजैंडे पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि आॢथक स्थिति काबू से बाहर हो रही है। रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था की मजबूती पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। यह काम काफी मुश्किल है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था भी मंदी के दौर से गुजर रही है। 

भाजपा का अगला एजैंडा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर हो सकता है। अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सार्वजनिक तौर पर पी.ओ.के. पर दावा किया है लेकिन इसके लिए अगले चुनावों से पहले काफी समय बचा है। बेशक, राजनीति में एक सप्ताह भी लम्बा समय होता है और 5 वर्ष तो बहुत लम्बा समय है तथा इस बीच और भी कई मुद्दे उभर कर सामने आ सकते हैं।-कल्याणी शंकर
  

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!