धर्मस्थलों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की अच्छी पहल

Edited By Pardeep,Updated: 09 Jul, 2018 04:23 AM

supreme courts good initiative in religion

पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने जगन्नाथ जी मंदिर के प्रवेश के नियमों की समीक्षा के दौरान पूरे देश के जिला जजों को एक अनूठा निर्देश दिया। उनसे कहा गया है कि उनके जिले में जो भी धर्मस्थल, चाहे किसी भी धर्म के हों, अगर अपनी व्यवस्था...

पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने जगन्नाथ जी मंदिर के प्रवेश के नियमों की समीक्षा के दौरान पूरे देश के जिला जजों को एक अनूठा निर्देश दिया। उनसे कहा गया है कि उनके जिले में जो भी धर्मस्थल, चाहे किसी भी धर्म के हों, अगर अपनी व्यवस्था भक्तों के हित में ठीक से नहीं कर रहे या अपनी आय-व्यय का ब्यौरा पारदर्शिता से नहीं रख रहे या इस आय को भक्तों की सुविधाओं पर नहीं खर्च कर रहे, तो उनकी सूची बनाकर अपने राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के माध्यम से 31 अगस्त, 2018 तक सर्वोच्च न्यायालय को भेजें। 

इस पहल से यह स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान धर्मस्थलों में हो रही भारी अव्यवस्थाओं और चढ़ावे के धन के गबन की तरफ  गया है। अभी सुधार के लिए कोई आदेश जारी नहीं हुए हैं लेकिन सुझाव मांगे गए हैं। यह एक अच्छी पहल है। समाज के हर अंग की तरह धार्मिक संस्थाओं का भी पतन बहुत तेजी से हुआ है। अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए धर्मस्थलों पर आने वाले धर्मावलंबियों की भीड़ लगातार बढ़ रही है। हर श्रद्धालु अपनी हैसियत से ज्यादा दान भी देता है। 

इससे ज्यादातर धर्मस्थलों की आय में तेजी से इजाफा हुआ है, पर दूसरी तरफ देखने में यह आता है कि दान के इस पैसे को भक्तों की सुविधा विस्तार के लिए नहीं खर्च किया जाता बल्कि उस धर्मस्थल के संचालकों के निजी उपभोग के लिए रख लिया जाता है जबकि होना यह चाहिए कि एक निर्धारित सीमा तक ही इस चढ़ावे का हिस्सा सेवायतों या खिदमदगारों को मिले। शेष भवन के रख-रखाव और श्रद्धालुओं की सुविधाओं पर खर्च हो। मौजूदा व्यवस्थाओं में चढ़ावे के पैसे को लेकर काफी विवाद सामने आते रहते हैं। मुकद्दमेबाजियां भी खूब होती हैं। जनसुविधाओं का प्राय: अभाव रहता है। आय-व्यय की कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। इन स्थानों की प्रशासनिक व्यवस्था भी बहुत ढुलमुल होती है, जिससे विवाद होते रहते हैं। अच्छा हो कि सर्वोच्च न्यायालय सभी धर्मस्थलों के लिए एक-सी प्रशासनिक व्यवस्था की नियमावली बना दे और आय-व्यय पारदशर््िाता के साथ संचालित करने के नियम बना दे, जिससे काफी हद तक व्यवस्थाओं में सुधार आ जाएगा। 

यहां कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत होगी। सरकारें या उनके द्वारा बनाए गए बोर्ड इन धर्मस्थलों के अधिग्रहण के हकदार न हों क्योंकि फिर भ्रष्ट नौकरशाही अनावश्यक दखलअंदाजी करेगी। वी.आई.पी. संस्कृति बढ़ेगी और भक्तों की भावनाओं को ठेस लगेगी। बेहतर होगा कि हर धर्मस्थल की प्रशासनिक व्यवस्था में दो चुने हुए प्रतिनिधि सेवायतों या खिदमदगारों के हों, 6 प्रतिनिधि पिछले वित्तीय वर्ष में उस धर्मस्थल को सबसे ज्यादा दान देने वाले हों। दो प्रतिनिधि जिला अधिकारी व जिला अधीक्षक हों और दो प्रमुख व्यक्ति, जो उस धर्मस्थल के प्रति आस्थावान हों और जिसके सद्कार्यों की उस जिले में प्रतिष्ठा हो, उन्हें बाकी के सदस्य को सामूहिक राय से मनोनीत किया जाए। इस तरह एक संतुलित प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना होगी, जो सबके कल्याण का कार्य करेगी। 

यहां एक सावधानी और भी बरतनी होगी। यह प्रशासनिक समिति कोई भी कार्य ऐसा न करे, जिससे उस धर्मस्थल की परम्पराओं, आस्थाओं और भक्तों की भावनाओं को ठेस लगे। हर धर्मस्थल पर भीड़ नियंत्रण, सुरक्षा निगरानी, स्वयंसेवक सहायता, शुद्ध पेयजल व शौचालय, गरीबों के लिए सस्ता या नि:शुल्क भोजन उपलब्ध हो सके, यह प्रयास किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अगर उस धर्मस्थल की आय आवश्यकता से बहुत अधिक है तो इस आय से उस जिले के समानधर्मी स्थलों के रख-रखाव की भी व्यवस्था की जा सकती है। जिन धर्मस्थलों की आय बहुत अधिक है, वे शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य जनसेवाओं में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं और कर भी रहे हैं। 

जब सर्वोच्च न्यायालय ने यह पहल कर ही दी है तो हर जिले के जागरूक नागरिकों का यह कत्र्तव्य बनता है कि वे अपने जिले के, अपने धर्म के स्थलों का निष्पक्षता से सर्वेक्षण करें और उनकी कमियां और सुधार के सुझाव यथाशीघ्र बाकायदा लिखकर जिला जज के पास जमा करवा दें, जिससे हर जिले के जजों को इनको व्यवस्थित करके अपने प्रांत के मुख्य न्यायाधीश को समय रहते भेजने में सुविधा हो। जो नौजवान कम्प्यूटर साइंस के विशेषज्ञ हैं, उन्हें इस पूरे अभियान को समुचित टैंपलेट बनाकर व्यवस्थित करना चाहिए जिससे न्यायपालिका बिना मकडज़ाल में उलझे आसानी से सभी बिंदुओं पर विचार कर सके।अगर इस अभियान में हर धर्म को मानने वाले बिना राग-द्वेष के उत्साह से सक्रिय हो जाएं, तो इस क्षेत्र में आ रही कुरीतियों पर रोक लग सकेगी, जो भारत जैसे धर्मप्रधान देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने यह पहल की है। आशा है कि यह किसी ठोस अंजाम तक पहुंचेगी।-विनीत नारायण

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