Edited By ,Updated: 16 Nov, 2016 06:41 PM
पंजाब के लोगों के लिए सदा से भावनात्मक बना हुआ सतलुज-यमुना ङ्क्षलक नहर (एस.वाई.एल.) मुद्दा सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहुप्रतीक्षित और अनेक विस्फोटक...
पंजाब के लोगों के लिए सदा से भावनात्मक बना हुआ सतलुज-यमुना ङ्क्षलक नहर (एस.वाई.एल.) मुद्दा सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहुप्रतीक्षित और अनेक विस्फोटक सम्भावनाओं से भरा हुआ फैसला सुनाए जाने के बाद गत कुछ दिनों से बहस और चर्चा के नए निम्न स्तर को छू गया है।
‘‘जब सुप्रीम कोर्ट ने एस.वाई.एल. नहर पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी है तो पंजाब किस तरह हरियाणा को पानी देने से इंकार कर सकता है? इस मुद्दे पर पंजाब ने इतना अडिय़ल रुख क्यों अपनाया हुआ है? क्या पानी ऐसा प्राकृतिक संसाधन नहीं है जिस पर सारी मानव जाति का अधिकार है? तो फिर पंजाब इतना स्वार्थी और लालची क्यों हो गया है?’’
कोई व्यक्ति हो सकता है कि इन प्रश्नों को बिल्कुल जायज माने। लेकिन जो लोग पंजाब समस्या के मुख्य मुद्दे को सचमुच सम्बोधित होना चाहते हैं वे ऐसा नहीं करेंगे और यह मुख्य मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लम्बे समय तक इस मामले के लटके रहने के बावजूद न तो कभी उठाया गया और न ही इस पर कभी दलीलबाजी हुई है। परिणाम यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के उस उल्लेख के आधार पर अपना निष्कर्ष सुना दिया जो न तो तथ्यों और जमीनी हकीकतों पर आधारित है और न ही देश के संवैधानिक सिद्धांतों पर बल्कि अधूरी जानकारी और अपर्याप्त आंकड़ों पर आधारितहै।
अब वर्तमान में जो शोर-शराबा इस मुद्दे पर हम देख रहे हैं उसके पीछे मूल सवाल यह है कि वह पानी है कहां जो पंजाब को पड़ोसी हरियाणा के साथ सांझा करने को कहा जा रहा है? यदि हम पंजाबियों को अटल विनाश से बचाना चाहते हैं तो यह एक ऐसा महत्वपूर्ण सवाल है जिसका समाधान तत्परता से ढूंढे जाने की जरूरत है। आखिर जिस चीज का अस्तित्व ही नहीं वह किसी के साथ बांटी कैसे जा सकती है? यह तो किसी बेघर आदमी को दूसरे के साथ अपना आवास सांझा करने या किसी गरीब भिखारी को अपनी भिक्षा दूसरे के साथ बांट कर खाने की नसीहत देने के तुल्य है। केवल दूरदृष्टि विहीन लोगों को छोड़कर अन्य हर किसी को यह दलील फिजूल लगेगी।
सार्वजनिक रूप में उपलब्ध आंकड़े यह दिखाते हैं कि पंजाब में पानी की कुल मांग वर्तमान में 50 मिलियन एकड़ फुट से कुछ अधिक है। जहां तक नदियों के बंटवारे का सवाल है पंजाब की हिस्सेदारी 14.33 मिलियन एकड़ फुट (एम.ए.एफ.) है (इसमें 1947 से पहले का 1.98 एम.ए.एफ. पानी भी शामिल है)। पानी की इस मात्रा में से 8.02 एम.ए.एफ. सतलुज नदी से और 4.33 एम.ए.एफ. रावी व ब्यास नदियोंसे मिलने की उम्मीद है। यह आंकड़ा बेशक देखने को प्रभावशाली लगता हो लेकिन वास्तव में यह इन तीनों नदियों की कुल अनुमानित जल क्षमता का केवल 40 प्रतिशत ही है और यह पंजाब प्रदेश की पानी की कुल जरूरतों के केवल 28 प्रतिशत की ही पूॢत कर पाता है।
जल से संबंधित पंजाब की समस्याएं यहीं समाप्त नहीं होतीं। यदि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय आंकड़ों पर विश्वास किया जाए (वैसे सचमुच ऐसा कोई कारण नहीं जिसके चलते इन पर विश्वास न किया जाए), तो उत्तरी भारत के मैदानों में जलस्तर बहुत तेजी से नीचे गिर रहा है। यहां तक कि अमरीकी एजैंसी नासा के अनुसार पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में कृषि उत्पादन ठप्प होने के कगार पर पहुंच चुका है।
यदि अपने देश की एजैंसी की बात करें तो जल संसाधन एवं पर्यावरण निदेशालय ने यह रहस्योद्घाटन किया है कि पंजाब के 80 प्रतिशत भू-क्षेत्र में जलस्तर गिर चुका है। पंजाब में अधिकतर सिंचाई नहरों के माध्यम से होती है लेकिन कई वर्षों से पर्याप्त वर्षा न होने के कारण नदियों और नहरों में पर्याप्त पानी नहीं रह गया और कई वर्षों से सूखे जैसे हालात बनते आ रहे हैं। इस समस्या को और भी भयावह रूप तब प्रदान होता है जब हम देखते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं। केवल 2013 और 2015 के बीच ही चेनाब, रावी, ब्यास और सतलुज नदियों में ग्लेशियरों के पिघलकर गिरने के कारण 109 नई झीलें बन गई हैं।
पंजाब में लगभग 14 लाख ट्यूबवैल हैं और नहरों में जल की कमी के कारण पंजाब के किसान इनका अधिक से अधिक अनियमित प्रयोग करने लग पड़े हैं जिसके फलस्वरूप भू-जल स्तर और भी नीचे गिरता जा रहा है। होशियारपुर और सरदूलगढ़ जैसे इलाकों में भू-जल स्तर में 58 मीटर से अधिक गिरावट आ चुकी है जो जल के मामले में पंजाब के समक्ष पैदा हो रही विपत्तियों का बदशगुनी भरा संकेत है।
इस विचलित कर देने वाले परिप्रेक्ष्य में हमें एस.वाई.एल. मुद्दे और पंजाब के लिए इसके परिणामों को आंकने की जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार एस.वाई.एल. में जल प्रवाह शुरू होते ही पंजाब की उपजाऊ भूमि में से 9.75 लाख एकड़ रकबा वीरान हो जाएगा जिससे 15 लाख परिवारों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ जाएगी।
अब यदि ये दलीलें आपको गम्भीरतापूर्ण नहीं लगतीं तो आगे पढ़ें : यदि हरियाणा को एस.वाई.एल. नैटवर्क के लिए 3.5 एम.ए.एफ. पानी दिया जाता है तो पंजाब के कई जिले, खासतौर पर भटिंडा, फिरोजपुर, मानसा व फरीदकोट जहां पहले से ही भू-जल जहरीला व नमकीन हो चुका है, पूरी तरह सूख जाएंगे।
विडम्बना देखिए कि भारत सरकार ने पंजाब के तीन चौथाई क्षेत्र को ‘अंध क्षेत्र’ घोषित कर रखा है। यानी कि इस इलाके की जमीन में से कुछ भी निकालनामना है, यहां तक कि पानी भी। इस प्रकार सरकार ने राज्य में पानी की कमी को स्वयं ही स्वीकार किया है, फिर भी यह एस.वाई.एल. मामले की सुनवाई के दौरान इस महत्वपूर्ण तथ्य को अदालत के संज्ञान में लाने में विफल रही है। जिसका परिणाम यह हुआ कि माननीय न्यायाधीश पूरी तरह अन्यायपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंच गए।
स्पष्ट है कि यह एक ऐसी स्थिति है जब सामूहिक बुद्धिमत्ता और सक्रिय हस्तक्षेप जरूरी है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि चुनाव की ओर बढ़ रहे पंजाब के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ये दोनों ही बातें गैर-हाजिर हैं। लेकिन राजनीतिक लड़ाइयां लड़ते हुए भी हमें यह याद रखना चाहिए कि यदि समय पर जल संकट को हल करने में हम विफल रहे तो पंजाब के लिए इसके परिणाम बहुत विनाशकारी रहेंगे। पंजाब की स्थिति तो पहले ही बारूद के किसी ढेर जैसी है जिसमें मात्र एक छोटी-सी ङ्क्षचगारी से विस्फोट हो सकता है।
तो क्या इस समस्या का कोई हल नहीं? वैसे तो सदा ही जल बंटवारे के सिद्धांत मौजूद रहे हैं जिन्हें दुनिया भर में मान्यता हासिल है और इन्हें लागू भी किया जाता है। हम एस.वाई.एल. एवं अन्य विवादों को निपटाने के लिए इन सिद्धांतों को अपना सकते हैं। भारत में हम लोगों को राजनीतिक मजबूरियां यह सरल सा रास्ता अपनाने से रोक रही हैं और इसी का नतीजा है कि कई राज्य पानी को लेकर अफरा-तफरी के शिकार बने हुए हैं। यदि हम इन मजबूरियों से पिंड नहीं छुड़ाते और इस मुद्दे पर अधिक यथार्थवादी तथा मानवीय पहुंच नहीं अपनाते तो किसी जमाने में हरे-भरे रहे भारत के इस क्षेत्र को एक झुलसते हुए रेगिस्तान में परिवर्तित कर देंगे जहां पर न तो जीवन फल-फूल सकेगा और न ही राष्ट्र को रोजी-रोटी मिलेगी।
इसलिए आइए एक बार फिर हम अपने ओछे और निहित स्वार्थों से ऊपर उठें और पंजाब को बचाने तथा इसके लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए एकजुट हो जाएं। ऐसा करने में यदि हम विफल रहे तो पंजाब का तो अटल तौर पर विनाश होगा ही लेकिन कालांतर में देश का हाल भी ऐसा ही होगा।