तब्लीगी जमात ने दिल्ली को ‘वायरस हॉटस्पॉट’ में बदल दिया

Edited By ,Updated: 10 Apr, 2020 02:34 AM

tablighi jamaat turns delhi into a  virus hotspot

इस समय देश बुरी तरह से कोरोना वायरस की जकड़ में है। यह जकड़ काल्पनिक नहीं बल्कि वास्तविक है। देश में लॉकडाऊन जारी है तथा आर्थिक संकट की मार विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ रही है जिससे मानवीय चिंताएं और बढ़ गई हैं। ज्यादातर औद्योगिक क्षेत्रों में...

इस समय देश बुरी तरह से कोरोना वायरस की जकड़ में है। यह जकड़ काल्पनिक नहीं बल्कि वास्तविक है। देश में लॉकडाऊन जारी है तथा आर्थिक संकट की मार विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ रही है जिससे मानवीय चिंताएं और बढ़ गई हैं। ज्यादातर औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्टरियों के पास कोई विकल्प नहीं। श्रमिक फैक्टरियां छोड़ चुके हैं तथा वायरस से पनपे संकट से जूझ रहे हैं। हालांकि मोदी सरकार ने अपने ही आपदा नियमों का अनुसरण किया है। अपने दृष्टिकोण तथा प्रतिक्रियाओं में मोदी सरकार के रवैये में लचीलेपन की कमी देखी जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध के चलते राज्य के मुख्यमंत्रियों से बातचीत के दौरान लक्ष्य निर्धारित करने वाले क्षेत्रों के बारे में बात की। उन्होंने मुख्यमंत्रियों को आम रणनीति बनाने पर जोर दिया। 

पी.एम. को समन्वय एजैंडे तथा नीतियों को आगे बढ़ाना होगा
मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी को खुद आगे आकर अपने समन्वय एजैंडे तथा नीतियों को आगे बढ़ाना होगा। उन्हें अपने दिमाग में किसानों की परेशानियों, कर्मचारियों के उन्मूलन तथा गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे लोगों के बारे में सोचना होगा। अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान का क्षेत्र भी महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था में और गिरावट आ गई है। मननरेगा कार्यक्रम 2019-20 में 9 सालों में अपने उच्चतम स्तर पर है। इसके द्वारा राष्ट्रीय रोजगार गारंटी स्कीम में सुधार की जरूरत भी समझी जा रही है। प्रधानमंत्री के लिए ऐसे क्षेत्र किसी चुनौती से कम नहीं। 

कोयंबटूर आधारित के.पी.आर. मिल के परिसर में 17,500 कर्मचारी हैं। संकट की स्थिति में यह एक सकारात्मक समाचार है। ज्यादातर राज्य मैडीकल सप्लाई की उपलब्धता को लेकर परेशान हैं। देश के सभी राज्य पर्सनल प्रोटैक्टिव इक्विपमैंट (पी.पी.ईज), मास्क, सैनिटाइजर, वैंटीलेटर्स, प्रशिक्षित स्टाफ, जोखिम भरे झुग्गी-झोंपड़ी वाले इलाके, कमजोर मूलभूत ढांचे तथा वित्तीय ग्रांटों से भी जूझ रहे हैं। यह सब रोजमर्रा के मुद्दे नजर आते हैं मगर सबकी निगाहें प्रधानमंत्री की तरफ लगी हुई हैं। चीजें उस समय और तेजी से आगे बढ़ती हैं जब प्रधानमंत्री इसमें अपनी दिलचस्पी तथा लोकरुचि क्षेत्रों में अपनी दखलअंदाजी बढ़ाते हैं। इसलिए मेरा मुख्य जोर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही है जो कोविड-19 से संबंधित मामलों में एक क्रियाशील भूमिका अदा कर रहे हैं। 

मैंने कोरोना वायरस से संबंधित क्षेत्रों पर अपना लक्ष्य साधने को कहा है। मगर एक मुद्दा ऐसा भी है जो मेरे साथ-साथ लाखों भारत वासियों को चिंतित किए हुए है वह निजामुद्दीन मरकज की तब्लीगी जमात इवैंट से संबंधित है, जिसने नई दिल्ली को कोरोना वायरस हॉटस्पॉट में बदल दिया है। इस गम्भीर मामले के लिए मैं मौलाना साद कंधालवी पर दोष लगाऊंगा। 56 वर्षीय तब्लीगी जमात के प्रमुख के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की गई है। उन पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी दिशा-निर्देशों की अवहेलना कर लोगों का जमावड़ा किया। सामाजिक दूरी भी नहीं बनाई गई जोकि महामारी डिसीस एक्ट 1897 के अंतर्गत बनाई जानी थी। कुछ आई.पी.सी. की धाराओं की भी अवहेलना की गई। मौलाना साद के साथ-साथ जीशान मुफ्ती शहजाद, एम. सैफी, यूनुस, मोहम्मद सलमान तथा मोहम्मद अशरफ के नाम भी एफ.आई.आर. में शामिल हैं। साद भूमिगत हो चुके हैं। 

ऐसा कहा जाता है कि तब्लीगी जमात गोपनीयता की संस्कृति पर पनपती है इसी कारण राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने सितम्बर 2013 में एक मीडिया संगठन से इस बारे में बात की थी। अजीत डोभाल के मूल्यांकन को देखते हुए मेरा नजरिया यह है कि प्रशासन ने आखिर कैसे जमात की गतिविधियों को नकार दिया? उन्हें सख्ती से पेश आना चाहिए था और निजामुद्दीन क्षेत्र में लोगों के जमावड़े की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। 

इसका खमियाजा भुगतना होगा 
यह कोई गोपनीयता वाली बात नहीं रही कि 2000 से ज्यादा लोग जिसमें विदेशी तथा देश भर से आए भारतीय भी शामिल थे, ने तब्लीगी जमात में हिस्सा लिया। ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि 440 से ज्यादा लोगों में कोविड-19 के संक्रमण पाए गए। यह बेहद चिंता का विषय है और देश को इसका खमियाजा भुगतना होगा क्योंकि पाजीटिव केसों के 30 प्रतिशत से ज्यादा मामले तब्लीगी जमात से जुड़े हुए हैं। मेरा सवाल यह है कि आखिर इस जमावड़े की अनुमति देने के लिए किस पर आरोप मढ़ा जाए। सच्चाई जानने के लिए मैं सुझाव देना चाहूंगा कि देश को एक स्वतंत्र जांच करवानी चाहिए। एक निष्पक्ष जांच से इस बात का पता चलेगा कि जमात के साथ-साथ प्रशासन का क्या योगदान रहा। मेरा मानना है कि दिल्ली सरकार, प्रशासन, पुलिस, खुफिया तंत्र तथा संबंधित क्षेत्र की भी जांच होनी चाहिए तथा दोषी पाए गए लोगों को कानून अनुसार सजा दी जाए। 

जांच एजैंसी को मौलाना साद की आडियो टेप को भी जांचना चाहिए जिसने कई मौकों पर जमावड़े के लिए अपनी भूमिका अदा की। साद ने कहा था कि पुलिस की तरफ कोई ध्यान न दो यदि वह आपकी मस्जिदों को लॉकडाऊन के लिए कहते हैं। मस्जिद में मरने जैसा और बढिय़ा स्थान कोई नहीं। अल्ला मस्जिदों को नकारने के लिए हमें सजा दे रहा है। इस बात पर भी ध्यान न दो यदि डाक्टर हमें परामर्श देते हैं कि मस्जिदों में प्रार्थना न की जाए। इन बातों को देखते हुए मौलाना का संदेश स्पष्ट तथा खरा है क्योंकि साद ने कहा था कि कोरोना वायरस अल्ला के कोप की अभिव्यक्ति है क्योंकि यह मानव के पापों के कारण सब हो रहा है। 

यहां फिर से बताने की जरूरत होगी कि सऊदी अरब ने 20 मार्च को मक्का तथा मदीना में प्रार्थनाएं करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद बाकी के अरब देशों में भी प्रतिबंध लगाए गए। वहीं भारत ने मंदिरों, चर्चों, गुरुद्वारों तथा ज्यादातर मस्जिदों में प्रार्थना करने पर प्रतिबंध लगा दिया। तब्लीगी जमात को फिर इतने हल्के से क्यों लिया गया? राष्ट्र को जानने का पूरा अधिकार है कि वह दिल्ली में तब्लीगी जमात की गतिविधियों के बारे में तथ्य को जाने। हमें इस्लाम के नाम पर तब्लीगी जमात को फलने-फूलने नहीं देना चाहिए।-हरि जयसिंह
 

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