शहीद सैनिकों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा मुहैया करवाने की पहल करें सरकारें व निजी स्कूल

Edited By Pardeep,Updated: 11 Oct, 2018 05:05 AM

take initiatives to provide free education to the children of martyred soldiers

28 सितम्बर, 2016 को भारतीय सेना के बहादुर सैनिकों ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर आतंकी अड्डों को नष्ट कर दिया। केन्द्र सरकार ने 28 सितम्बर, 2018 को पराक्रम पर्व पूरे देश में मना कर यह बताने का प्रयास किया कि वह सैनिकों के बलिदान व पराक्रम को नमन करती है...

28 सितम्बर, 2016 को भारतीय सेना के बहादुर सैनिकों ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर आतंकी अड्डों को नष्ट कर दिया। केन्द्र सरकार ने 28 सितम्बर, 2018 को पराक्रम पर्व पूरे देश में मना कर यह बताने का प्रयास किया कि वह सैनिकों के बलिदान व पराक्रम को नमन करती है परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या केवल इस बात को पर्व रूप में मनाने से हमारी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है? यदि जवाब नहीं है तो फिर सारे देश का क्या कत्र्तव्य है? केन्द्र व प्रदेश सरकारों का क्या कत्र्तव्य बनता है? तब बात आगे बढ़ती है। 

किसी भी खास दिवस पर शहीद सैनिकों के परिवारों का सम्मान करना अच्छी बात है लेकिन इससे जरूरी यह है कि शहीद सैनिकों के बच्चों की शिक्षा व उनकी विधवाओं के भविष्य के बारे में कोई योजना बनाकर तुरंत लागू हो, जिससे उनमें जीवन में दोबारा उठने का हौसला पैदा हो सके। भारतीय सेना के तीनों अंगों थल सेना, वायु सेना व जल सेना के बहादुरों ने 15 अगस्त, 1947 के बाद सदा ही हमारे राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान रखा है, परंतु इस सम्मान को बनाए रखने के लिए हजारों सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। हजारों बेटे-बेटियों ने अपने पिता खो दिए, हजारों पत्नियों ने अपने सुहाग खो दिए, किसलिए? केवल देश की सुरक्षा व अखंडता को बचाने के लिए। 

अब उन परिवारों, जिन्होंने अपने जीने का सहारा खो दिया हो, देश ने उनके लिए क्या किया? क्या हमने उनकी सुध ली? यदि नहीं तो क्यों इसके लिए पूरा देश ही जिम्मेदार है? जब बच्चों के सिर से उनके पिता का हाथ इसलिए उठ जाए क्योंकि उनके पिता ने भारत की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी तो उसके बाद देशवासियों का क्या कत्र्तव्य बनता है? परंतु आजकल उन शहीदों के अंतिम संस्कार पर पहले तो कोई अधिकारी व मंत्री पहुंचता नहीं और यदि मंत्री जी पहुंच जाते हैं तो केवल मीडिया में अपनी फोटो लगवाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि परिवार को घर बनाने के लिए एक प्लाट मिलेगा, एक बच्चे को सरकार नौकरी देगी आदि- आदि परंतु अधिकांश परिवारों को केवल आश्वासन ही मिलते हैं, जमीनी हकीकत में कुछ नहीं मिलता। जो करती है सेना अपने स्तर पर ही करती है। मेरा यह लेख लिखने का केवल यही उद्देश्य है कि सबकी आंतरिक आत्मा को जगाया जाए। 

आज आवश्यकता है कि हम जात-पात में राजनीतिक क्षेत्र से बाहर निकलकर आगे आएं। उत्तर भारत ने देश के लिए सबसे अधिक बलिदान दिए हैं जिनमें पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। पंजाब में तो मुख्यमंत्री एक पूर्व सैनिक हैं तथा उनके सलाहकारों में भी पूर्व सैनिक अधिकारी हैं। केन्द्र में भी 2-2 मंत्री भूतपूर्व सैनिक हैं और एक सैनिक से ज्यादा उन परिवारों की वेदना को कौन समझ सकता है, जिन्होंने अपना मुखिया खो दिया हो। मेरा केन्द्र व प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्रालय से निवेदन है कि इन शहीदों के बच्चों की शिक्षा एवं पालन-पोषण देश व प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी हो। यही नहीं, विभिन्न मैनेजमैंटों व ट्रस्टों की ओर से चलाए जा रहे निजी शिक्षण संस्थानों का भी सरकार की तर्ज पर ही फर्ज बनता है कि जितने भी शहीदों के बच्चे हैं उनको अपने संस्थानों में नि:शुल्क पढ़ाई करवाएं।

सी.बी.एस.ई. का भी कत्र्तव्य बनता है कि अपने अधीनस्थ सभी स्कूलों को निर्देश जारी करे कि शहीद सैनिकों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था करवाएं ताकि देश के लिए अपने प्राणों की आहुतियां देने वाले शहीदों के परिजनों व बच्चों को भी इस बात का अहसास हो कि पूरा देश उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। यह तभी संभव है यदि केन्द्र व प्रदेश सरकार इस बात का संज्ञान सामूहिक रूप से लें और इस बात पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। मेरी आयु 72 वर्ष की है और मेरा सौभाग्य रहा कि मैंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। जो महत्वपूर्ण बात मैं बताना चाहता हूं वह यह है कि इन सभी अवसरों पर जब देश की अखंडता पर खतरा हुआ देशवासियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया व सैनिकों का मनोबल बढ़ाया। 

आज केन्द्र सरकार यदि ठान ले तो इन सैनिकों के बच्चे अच्छी शिक्षा, स्कूल, कॉलेज में व्यावसायिक शिक्षा से वंचित नहीं रहेंगे। हम अंदाजा नहीं लगा सकते कि इससे हमारे सैनिकों-थल सेना, वायु सेना व जल सेना, भारतीय सीमा सुरक्षा बल व सी.आर.पी.एफ. आदि का मनोबल कितना बढ़ेगा। मैं यह मानता हूं कि बहुत कुछ हुआ है व हो रहा है, परंतु अभी भी हमें बहुत कुछ करना है। हम पर उन शहीदों का कर्ज है जिन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए हैं ताकि हम स्वतंत्र रह सकें। कुछ ऐसे राजनेता हैं जो बयान देते हैं कि सैनिक तो होता ही गोली खाने तथा मरने के लिए है। ऐसे लोगों की जितनी ङ्क्षनदा की जाए कम है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि कभी किसी शहीद सैनिक परिवार को कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।-कैप्टन विजय स्याल

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