टाटा को सिद्ध करना होगा कि एयर इंडिया वापस लेकर गलती नहीं की

Edited By ,Updated: 18 Oct, 2021 03:50 AM

tata will have to prove that it did not make a mistake by taking back air india

डूबते हुए एयर इंडिया के ‘महाराजा’ का हाथ टाटा समूह ने 68 सालों बाद फिर से थाम लिया है। एविएशन विशेषज्ञों की मानें तो टाटा के मालिक बनते ही ‘महाराजा’ को बचाने और दोबारा ऊंची उड़ान भरने के काबिल बनाने के लिए कई ऐसे फैसले लेने

डूबते हुए एयर इंडिया के ‘महाराजा’ का हाथ टाटा समूह ने 68 सालों बाद फिर से थाम लिया है। एविएशन विशेषज्ञों की मानें तो टाटा के मालिक बनते ही ‘महाराजा’ को बचाने और दोबारा ऊंची उड़ान भरने के काबिल बनाने के लिए कई ऐसे फैसले लेने होंगे, जिनसे एयर इंडिया एक बार फिर से भारत की एविएशन का महाराजा बन जाए। टाटा ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कई डूबती हुई कम्पनियों को खरीदा है। इनमें से कई कम्पनियों को फायदे का सौदा भी बना दिया है। अब देखना यह है कि अफसरशाही में कैद एयर इंडिया को उसकी खोई हुई गरिमा कैसे वापस मिलती है। 

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अब तक एयर इंडिया के विमानों पर किराए या लीज के तौर पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च हो रहा था। इसके साथ ही इन पुराने हवाई जहाजों का कई वर्षों से सही रख-रखाव भी नहीं हुआ। यात्रियों के हित में टाटा को केबिन अपग्रेडेशन, इंजन अपग्रेडेशन समेत कई महत्वपूर्ण बदलाव लाने होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार टाटा समूह को एयर इंडिया के मौजूदा विमानों को अपग्रेड करने के लिए कम से कम 2 से 5 मिलियन डॉलर की मोटी रकम खर्च करनी पड़ सकती है। गौरतलब है कि जब नरेश गोयल की जैट एयरवेज को खरीदने के लिए टाटा के बोर्ड में चर्चा हुई तो कहा गया था कि डूबती हुई एयरलाइन को खरीदने से अच्छा होता है कि ऐसी एयरलाइन के बंद होने पर रिक्त स्थानों को नए विमानों से भरा जाए।

जिस तरह अफसरशाही ने सरकारी एयरलाइन में अनुभवहीन लोगों को अहम पदों पर तैनात किया था, उससे भी एयर इंडिया को नुक्सान हुआ। किसी भी एयरलाइन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रोफैशनल टीम की जरूरत होती है। भाई-भतीजावाद या सिफारिशी भर्तियों की एयरलाइन जैसे संवेदनशील सैक्टर में कोई जगह नहीं होती। टाटा जैसे समूह से आप केवल प्रोफैशनल कार्य की ही कल्पना कर सकते हैं।

मिसाल के तौर पर टाटा समूह द्वारा भारतीय नागरिकों को पासपोर्ट जारी करने में जो योगदान दिखाई दे रहा है वो अतुलनीय है। जिन दिनों पासपोर्ट सेवा लाल फीताशाही में कैद थी, तब लोगों को पासपोर्ट बनवाने के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता था। वही काम अब कुछ ही दिनों में हो जाता है। आजकल के सोशल मीडिया और आई.टी. के युग में हर ग्राहक जागरूक हो चुका है। यदि वह निराश होता है तो कम्पनी की साख को कुछ ही मिनटों में अर्श से फर्श पर पहुंचा सकता है। इसलिए ग्राहक संतुष्टि की प्रतिस्पर्धा के दबाव के चलते हर कम्पनी को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना पड़ता है। 

विश्व भर में पिछले दो सालों में कोरोना की सबसे ज्यादा मार पर्यटन क्षेत्र पर पड़ी है। एविएशन सैक्टर इसका एक अहम हिस्सा है। एक अनुमान के तहत इन दो सालों में इस महामारी के चलते एविएशन सैक्टर को 200 बिलियन डॉलर से अधिक का नुक्सान हुआ है। माना जा रहा है कि अगर सब कुछ सही रहता है और कोविड की तीसरी लहर नहीं आती है तो 2023 से एविएशन सैक्टर की गाड़ी फिर से पटरी पर आ जाएगी। एयर इंडिया का निजीकरण कर टाटा को दिए जाने के फैसले को ज्यादातर लोगों द्वारा एक अच्छा कदम ही माना गया है।

टाटा को इसे एक सर्वश्रेष्ठ एयरलाइन बनाने के लिए कुछ बुनियादी बदलाव लाने होंगे। जैसा कि सभी जानते हैं टाटा समूह के पास पहले से ही 2 एयरलाइन हैं- ‘विस्तारा’ और ‘एयर एशिया’ और अब एयर इंडिया और ‘एयर इंडिया एक्सप्रैस’। टाटा को इन चारों एयरलाइन्स के पायलटों और स्टाफ की ट्रेनिंग के लिए अपनी ही एक अकैडमी बना लेनी चाहिए, जिसमें ट्रेनिंग अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर हो। इससे पैसा भी बचेगा और ट्रेनिंग के मानक भी उच्च कोटि के होंगे। 

चार-चार एयरलाइन के स्वामी बनने के बाद टाटा समूह की सीधी टक्कर मध्यपूर्व की ‘कतर एयरलाइन’ से होनी तय है। मध्यपूर्व जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर होने के चलते, इस समय कतर एयर के पास एविएशन सैक्टर के व्यापार का सबसे अधिक हिस्सा है। कोविड काल में सिंगापुर एयर के 60 प्रतिशत विमान ग्राऊंड हो चुके हैं। सिंगापुर एयरलाइन में टाटा समूह की सांझेदारी होने के कारण टाटा को सिंगापुर एयर के विमानों को अपने साथ जोड़ कर एयर इंडिया को दुनिया के हर कोने में पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। इससे कर्ज में डूबी एयर इंडिया के लिए आय के नए स्रोत भी खुलेंगे। 

टाटा को अपनी चारों विमानन कंपनियों को अलग ही रखना चाहिए। जिस तरह टाटा समूह के अलग-अलग प्रकार के होटल हैं- जैसे ‘ताज’, ‘विवांता’ व ‘जिंजर’ आदि, उसी तरह बजट एयरलाइन और मुख्यधारा की हवाई सेवा को भी अलग-अलग रखना बेहतर होगा। अलग कम्पनी होने से टाटा समूह की ही दोनों कम्पनियों को बेहतर परफॉर्म करना होगा और आपस की प्रतिस्पर्धा से ग्राहक का फायदा होना निश्चित है। इनमें दो कम्पनियां ‘एयर एशिया’ और ‘एयर इंडिया एक्सप्रैस’ सस्ती यानी ‘बजट एयरलाइन’ रहें जो मौजूदा बजट एयरलाइन व आने वाले समय में राकेश झुनझुनवाला की ‘आकासा’ को सीधी टक्कर देंगी। मौजूदा ‘विस्तारा’ को भी मध्यवर्गीय एयरलाइन के साथ प्रतिस्पर्धा में रहते हुए पड़ोसी देशों में अपने पंख फैलाने होंगे। एयर इंडिया में नए विमान जोड़ कर इसे एविएशन की दुनिया का महाराजा बनने की ओर कदम तेजी से दौड़ाने होंगे। 

बीते कई वर्षों से नुक्सान उठा रही एयर इंडिया की देरी और खराब सेवा को लेकर नकारात्मक छवि बनी है। इस चुनौती को भी टाटा को गंभीरता से लेना होगा और सेवाओं की बेहतरी की दिशा में कुछ सक्रिय कदम उठाने होंगे। यह इतना आसान नहीं होगा, परंतु टाटा समूह की विषम परिस्थितियों में टिके रहने और लम्बी अवधि तक खेलने की क्षमता किसी से छुपी नहीं है। टाटा को इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए एविएशन सैक्टर के अनुभवी लोगों की टीम बनानी होगी और यह सिद्ध करना होगा कि एयर इंडिया को वापस लेकर टाटा ने कोई गलती नहीं की।-विनीत नारायण    
 

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