कृषि आय पर टैक्स का सुझाव पूरी तरह त्रुटिपूर्ण और हास्यास्पद

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jun, 2017 12:43 AM

tax suggestions on agricultural income are totally flawed and ridiculous

जब देश के एक छोर से दूसरे तक कृषक समुदाय बहुत खतरनाक परिस्थितियों में जीवनयापन कर रहा...

जब देश के एक छोर से दूसरे तक कृषक समुदाय बहुत खतरनाक परिस्थितियों में जीवनयापन कर रहा है तो नीति आयोग के सदस्यों के कुछ बयानों ने उसमें कंपकंपी छेड़ दी है। नीति आयोग के सदस्यों के बयान इस दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं कि प्रधानमंत्री स्वयं इसके अध्यक्ष हैं। नीति आयोग के  सदस्य बिबेक देबराय द्वारा कृषि से होने वाली आमदन को आयकर के ढांचे के अंतर्गत लाने का सुझाव दिया गया है। 

हाल ही में उन्होंने कहा था कि आयकर देने वालों की संख्या हर हालत में बढ़ाई जानी चाहिए और ऐसा करने के लिए कृषि आय पर मिलने वाली आयकर छूट समाप्त करनी होगी। उनके अनुसार इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा। उनकी ये सिफारिशें नीति आयोग की गवॄनग काऊंसलिंग की मीटिंग में 15 वर्षीय सम्भावना योजना के अंग स्वरूप राज्यों के विचारार्थ भेजी गई थीं। इस मुद्दे की संवेदनशीलता के प्रति पूरी तरह जागरूक वित्त मंत्री अरुण जेतली को मास्को से ही बयान जारी करके यह स्पष्टीकरण देना पड़ा कि सरकार कृषि आय पर कर लगाने का कोई इरादा नहीं रखती। उन्होंने यह भी स्पष्टीकरण दिया कि कृषि आय पर टैक्स लगाना केन्द्र सरकार के क्षेत्राधिकार का हिस्सा नहीं। 

3 मई को इंडियन एक्सप्रैस में छपे अपने आलेख में देबराय ने अपने बयान के समर्थन में कुछ तथ्य गिनाए हैं। उनके द्वारा सूचीबद्ध किए गए अधिकतर टैक्स प्रावधान या तो बहुत पुराने जमाने के हैं या फिर पूरी तरह अप्रासंगिक। इससे भी बड़ी बात यह है कि उन्होंने हमारी ग्रामीण एवं शहरी आमदनियों में विषमता की बात स्वीकार करने से इंकार किया है। वह इसे ‘कृत्रिम विभेद’ मानते हैं। उनकी दोनों ही अवधारणाएं न केवल त्रुटिपूर्ण हंै बल्कि हास्यास्पद प्रतीत होती हैं। भारत की जी.डी.पी. (सकल घरेलू उत्पाद) में कृषि का हिस्सा 14-16 प्रतिशत है जबकि देश की कुल 49 प्रतिशत श्रम शक्ति को कृषि क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है। ग्रामीण श्रम शक्ति का तो 64 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। 

कृषि पर इतनी अधिक आबादी की निर्भरता का मुख्य कारण जोत का छोटा आकार तथा खेती की गैर उपजाऊ तकनीकें हैं। यही कारण है  कि कृषि मजदूरों की प्रति व्यक्ति आय दयनीय हद तक कम है। भारतीय कृषि की स्थिति पर रिपोर्ट (2015-16) के अनुसार एक हैक्टेयर या इससे कम आकार की जोतों की संख्या एक दशक में 23 प्रतिशत बढ़ गई है। 2000-2001 में ऐसी जोतों की संख्या 7 करोड़ 54 लाख 10 हजार थी जो 2010-11 में बढ़कर 9 करोड़ 28 लाख 30 हजार हो गई थी। 

नैशनल सैम्पल सर्वे के 70वें दौर पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार देश के लगभग 96 लाख किसानों के पास आधा हैक्टेयर या इससे भी कम भूमि है। ऐसे परिवारों का कुल मासिक खर्चा उनकी मासिक खपत की तुलना में अधिक है। उदाहरण के तौर पर 0.41-1.0 हैक्टेयर के बीच जमीनी मालिकी रखने वाले देश के 3.15 करोड़ किसान परिवारों की पारिवारिक गतिविधियों से औसत मासिक आय 2145 रुपए है। कृषि मजदूरी से वे 2011 रुपए, पशु धन से 629 रुपए तथा गैर कृषि कामों से 462 रुपए कमाते हैं। इस प्रकार सभी स्रोतों से ऐसे किसान परिवारों की औसत मासिक आय मात्र 5247 रुपए बनती है, जबकि सीमांत किसानों व परिवारों की मासिक खपत पर खर्च 6020 रुपए है। 

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि उत्पादन में उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक उतार-चढ़ाव आता है। ऐसी वीरानी भरी स्थिति में कृषि पर आय टैक्स का सुझाव न केवल पूरी तरह विवेकहीन है बल्कि किसानों व नीति निर्धारकों के बीच विकराल दूरी का भी प्रतीक है। आज कृषक समुदायों में ऐसी अवधारणा बनी हुई है कि नीति आयोग कार्पोरेटों व उद्योगों को लाभान्वित करने के लिए नीतियां गढ़ रहा है। किसानों की ये आशंकाएं दूर करने की बजाय कृषि पर आयकर की बयानबाजी किसानों के इस अविश्वास को और भी पुख्ता करती है। 

जहां कहीं भी भरोसे की कमी होती है और असमानता व उत्पीडऩ का बोलबाला होता है, वहां असंतोष और ङ्क्षहसा ही पनपते हैं। नक्सल समस्या इसका बहुत ही सटीक उदाहरण है। गवर्नैंस और मैनेजमैंट मूल रूप में दो अलग अवधारणाएं हैं। गवर्नैंस के लिए सहानुभूति तथा नैतिक ईमानदारी जरूरी है। नीति आयोग की परिकल्पना एक विद्वत परिषद (थिंक टैंक) के रूप में की गई थी और इसे सरकार के लिए नीतियां एवं दिशा-निर्देश गढऩे का काम सौंपा गया था। यह कथन प्रसिद्ध है कि जो लोग अतीत को याद नहीं रखते वे बार-बार अतीत की गलतियां दोहराने को शापित होते हैं। यदि नीति आयोग अपने पूर्ववर्ती योजना आयोग का अनुसरण करने से बचना चाहता है तो इसे अवश्य ही अपना रास्ता सही करना होगा। नीति निर्धारण के लिए अधिक समावेशी पहुंच अपनाने के साथ-साथ किसान संगठनों, राज्य सरकारों एवं अन्य मुद्दइयों के साथ वार्तालाप चलाकर उस सहकारी संघवाद को सुदृढ़ करना होगा जिसकी नीति आयोग की संस्थापना के समय परिकल्पना की गई थी। 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!