Edited By ,Updated: 08 Jun, 2019 03:13 AM
मैं यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कारगुजारी बारे बात नहीं करना चाहता। 2019 के चुनावों में दूसरे कार्यकाल के लिए उनकी शानदार राजनीतिक कारगुजारी के परिप्रेक्ष्य में आज यह प्रासंगिक नहीं है। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के जिन...
मैं यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कारगुजारी बारे बात नहीं करना चाहता। 2019 के चुनावों में दूसरे कार्यकाल के लिए उनकी शानदार राजनीतिक कारगुजारी के परिप्रेक्ष्य में आज यह प्रासंगिक नहीं है। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के जिन बहुत से लोगों से मैं मिला, उन्हें ऐसी जोरदार जीत की कभी आशा नहीं थी। इस कड़े तथ्य की रोशनी में अन्य सब कुछ अप्रासंगिक हो जाता है।
यद्यपि एक जनहितैषी पत्रकार होने के नाते मैं जमीनी हकीकतों बारे चर्चा करना अपना कत्र्तव्य समझता हूं ताकि प्रधानमंत्री मोदी अपनी सफलता के नशे में न बह जाएं। अत: सामाजिक हकीकतों को एक ओर रखते हुए मैं विभिन्न अनुभागों पर नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों की याद दिलाऊंगा।
पहला, निर्मला सीतारमण के भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त एवं कार्पोरेट मामलों की मंत्री के तौर पर उच्च पद सम्भालने के कुछ ही घंटों के भीतर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) गत वर्ष के इसी समय 8.1 प्रतिशत के मुकाबले कम होकर 5.8 प्रतिशत पर आ गया। यह गत 20 तिमाहियों के दौरान सबसे कम विकास दर है। इसने लगभग 2 वर्षों बाद भारत को चीन के पीछे ला खड़ा किया है।
जी.डी.पी. के आंकड़े
जी.डी.पी. के नवीनतम आंकड़े निर्मला सीतारमण के सामने बड़ी चुनौतियों को रेखांकित करते हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी का विशेष विश्वास हासिल है। एक चतुर रणनीतिज्ञ सीतारमण ने बड़ी तेजी से शासन की कला सीख ली, प्रशासन तथा राजनीतिक, दोनों मामलों में। अब उन्हें जरूरत है अपने वित्तीय कौशल को मजबूत करने की। मुझे विश्वास है कि वह तेजी से सीखने वाली हैं। मोदी के प्रधानमंत्री के तौर पर पहले कार्यकाल के दौरान वह पेचीदा रक्षा मंत्रालय सम्भाल कर पहले ही अपनी मजबूती दिखा चुकी हैं।
दूसरा, कार्यबल के महत्वपूर्ण क्षेत्र पर नजर डालते हैं तो राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एन.एस.ओ.) के अनुसार 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत थी। बेरोजगारी की यह दर पुरुषों तथा महिलाओं दोनों के लिए ऊंची है। कार्यबल संबंधित यह सर्वेक्षण किन कारणों से पहले जारी नहीं किया गया था, यह हम अब समझ सकते हैं।
भारत के मुख्य सांख्यिकीविद् कहते हैं, ‘यह एक नई बनावट तथा नया सांचा है। इसकी अतीत के साथ तुलना करना अनुचित होगा। मैं 45 वर्षों के दौरान उच्च या निम्न का दावा नहीं करना चाहता।’ उन्होंने कहा कि वह इस मामले को यहां महज इसलिए छोडऩा चाहते हैं क्योंकि यह पहले ही विवाद की स्थिति में पहुंच गया है। जो भी हो, नौकरियों संबंधी आंकड़े प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल के सामने नीति से संबंधित चुनौती खड़ी करते हैं। निश्चित तौर पर बेरोजगारी के परिदृश्य के लिए कई पहलू है और आंकड़ों संबंधी कोई भी इकलौता स्रोत अपने आप में पूर्ण नहीं है। यह अपने आप में नहीं, सरकार के लिए एक बड़ा कार्य होने वाला है।
मोदी के मंत्र
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले के दो मंत्रों में एक और मंत्र शामिल कर लिया। उन्होंने अपने पहले के दो मंत्रों ‘सबका साथ, सबका विकास’ में ‘सबका विश्वास’ शामिल कर लिया। मैं इन मंत्रों का स्वागत करता हूं। यद्यपि इन मंत्रों को कार्ययोजना में परिभाषित करते हुए जमीनी स्तर पर परिणाम दिखाने की जरूरत है।
यह प्रधानमंत्री का काम है कि वह इन मंत्रों को जमीनी हकीकतों में बदलने के लिए कार्ययोजना बनाएं। क्या मोदी यह करेंगे? यह प्रधानमंत्री तथा उनकी हाईप्रोफाइल टीम के लिए सम्भव होना चाहिए। उन्हें इस बार जमीनी स्तर पर बेहतर कारगुजारी दिखानी होगी। इन कार्यों के लिए मंत्रियों से चुनौतियों की प्रकृति तथा कार्य की प्राथमिकताओं पर केन्द्रित होने की आशा की जाती है। इस उद्देश्य के लिए प्रधानमंत्री मोदी को एक सुधारवादी मार्ग अपनाना होगा लेकिन अत्यंत सतर्कता के साथ।
चूंकि उत्पादकता एक महत्वपूर्ण कारक है, आऊटपुट बढ़ाने के लिए कौशल विकास, सार्वजनिक अधोसंरचना को मजबूत करने के साथ-साथ पूंजी गतिशीलता की मदद से समन्वित प्रयासों की जरूरत होगी। इतना ही महत्वपूर्ण होगा ऊर्जा उत्पादन। संक्षेप में, सारा दबाव आॢथक सुधारों तथा उदारीकरण के साथ-साथ खराब ऋणों से सेफ्टी नैटवर्क सुनिश्चित करने पर होगा। इसके लिए वित्तीय क्षेत्र में जोरदार सुधार जरूरी है, विशेषकर बैंकिंग आप्रेशन्स में। बदले में इसे जरूरत होगी पारदर्शिता तथा जवाबदेही की एक मजबूत प्रणाली की।
प्रधानमंत्री को विकेन्द्रीकरण पर भी गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा। सत्ता के सभी तार प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) में इकट्ठे करना ठीक नहीं है, जो आमतौर पर बदलती जमीनी हकीकतों के सम्पर्क में नहीं होता। इसके साथ ही कृषि, जलवायु परिवर्तन तथा गुणवत्तापूर्ण बीजों, कीमतों व मार्गदर्शन को लेकर किसानों की दुविधा जैसे महत्वपूर्ण ग्रामीण क्षेत्रों में कोई भी नीति निर्णय एक ऐसा कार्य है जिसे इस क्षेत्र में अनुभवी व्यक्तियों के लिए छोड़ देना चाहिए, जिनसे किसानों की जरूरतों के साथ तालमेल बनाकर समन्वित तरीके से परफार्म करने की आशा की जाती है। यह प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल से सीखने का सही सबक है ताकि विमुद्रीकरण तथा जी.एस.टी. के मामले से ढीले-ढाले रवैए के साथ निपटने जैसी गलतियां न दोहराई जाएं।
भारत अपनी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकता है यदि इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति ग्रामीण जमीनी हकीकतों को समझना सीख लें और नीति निर्णय लेने से पूर्व सोचें व उस पर उचित प्रतिक्रिया दें। देश को अधपके राजनीतिक विशेषज्ञों के साथ एक खालीपन की स्थिति में नहीं चलाया जा सकता। हमें देश की पेचीदा आर्थिक चुनौतियों से व्यावसायिक तरीके से निपटने की जरूरत है न कि भगवा रंग के ‘विशेषज्ञों’ से।
एस. जयशंकर की भूमिका
जहां तक साऊथ ब्लाक की बात है, मैं व्यावसायिक विदेश मंत्री के तौर पर एस. जयशंकर की नियुक्ति का स्वागत करता हूं, यद्यपि प्रधानमंत्री मोदी अपने खुद के विदेश मंत्री के तौर पर जाने जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जयशंकर को अपनी भूमिका का प्रधानमंत्री मोदी की गतिविधियों तथा वैश्विक मंच पर प्रतिक्रियाओं के साथ तालमेल बैठाना होगा। जयशंकर अपनी पूर्ववर्ती विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से सीख कर अच्छा करेंगे। सुषमा एक लोकप्रिय जननायक के तौर पर शासन की कला को जानती हैं।
इतना ही महत्वपूर्ण होगा जयशंकर का गृहमंत्री अमित शाह के साथ तालमेल, जो नरेन्द्र मोदी के करीबी विश्वासपात्र हैं और मोदी सत्ता अधिष्ठान में एक अत्यंत शक्तिशाली हस्ती के रूप में उभरे हैं। जो भी हो, जयशंकर के विदेशी मामले घरेलू नीतियों के साथ करीब से तालमेल बनाए रखेंगे, विशेषकर कश्मीर तथा अन्य संवेदनशील घरेलू मामलों के साथ ताकि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सभी भारतीय नीतियां जरूरी रणनीतिक गहराई प्राप्त कर सकें, जिसका अभी अभाव है। गृहमंत्री अमित शाह पर करीबी नजर रखनी होगी। वह एक अनुभवी गृहमंत्री नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी से भी अधिक, उनका मन राष्ट्रीय नीतियों के सभी पहलुओं पर रहता है। वे दिन लद गए जब एक बार चुने जाने पर राजनीतिज्ञ सोचते थे कि वही कानून हैं।-हरि जयसिंह