आतंकवाद किसी भी देश की ‘आंतरिक सुरक्षा’ के लिए सबसे बड़ा खतरा

Edited By ,Updated: 03 Mar, 2019 03:45 AM

terrorism is the biggest threat to any country s  internal security

एक राष्ट्र के नाते हमें बाहरी सुरक्षा तथा आंतरिक सुरक्षा के बीच भेद करना होता है। कुछ कारणों से बाहरी सुरक्षा को ‘राष्ट्रीयता’ का लबादा ओढऩे की इजाजत दी जाती है लेकिन आंतरिक सुरक्षा को इस सुविधा से इंकार किया जाता है। एक करीबी समीक्षा इस बात का...

एक राष्ट्र के नाते हमें बाहरी सुरक्षा तथा आंतरिक सुरक्षा के बीच भेद करना होता है। कुछ कारणों से बाहरी सुरक्षा को ‘राष्ट्रीयता’ का लबादा ओढऩे की इजाजत दी जाती है लेकिन आंतरिक सुरक्षा को इस सुविधा से इंकार किया जाता है। एक करीबी समीक्षा इस बात का खुलासा करेगी कि बाहरी सुरक्षा तथा आंतरिक सुरक्षा दोनों को अत्यंत कड़ाई में नहीं रखा जा सकता। एक की स्थिति का प्रभाव दूसरी पर पड़ता है। मैं फिलहाल वर्तमान मुद्दे पर बात करूंगा।

जब मैं आपके पढऩे से पहले शुक्रवार को यह लेख लिख रहा हूं, भारत खुद को युद्ध जैसी स्थिति में पा रहा है, यद्यपि कोई भी यह नहीं मानता कि पाकिस्तान के साथ एक पूर्ण युद्ध होगा। हमें बताया गया है कि पाकिस्तान ने अपना एक एफ-16 फाइटर विमान गंवा दिया और सम्भवत: पायलट भी। सरकार ने यह भी दावा किया है कि 300 से अधिक जेहादियों को मार दिया गया है। मैं अपनी सरकार पर विश्वास करने को तैयार हूं लेकिन विश्व अपना अविश्वास नहीं छोड़ेगा। भारत ने अपना एक मिग-21 खो दिया, पायलट को पाकिस्तान ने पकड़ लिया लेकिन शुक्रवार रात को उसे भारत को वापस सौंप दिया गया। आधिकारिक वक्तव्यों से ऐसा दिखाई देता है कि दोनों पक्ष तेवर दिखा रहे हैं और वास्तव में युद्ध नहीं चाहते।

युद्ध की जरूरत नहीं
भारत को युद्ध में उलझने की जरूरत नहीं है। 1971 के विपरीत भारत पर पाकिस्तान के किसी अशांत प्रांत की मदद के लिए जाने का दबाव नहीं है। कारगिल के विपरीत पाकिस्तान द्वारा भारतीय क्षेत्र को हड़पने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। दोनों देश जानते हैं कि वर्तमान स्थिति के लिए चिंगारी 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सी.आर.पी.एफ. के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले से भड़की थी। इसलिए हम आतंक के मुख्य मुद्दे पर वापस लौटते हैं। आतंकवाद के किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा पर गम्भीर प्रभाव पड़ते हैं। भारत कोई अपवाद नहीं है। मैं उन मुद्दों को सूचीबद्ध करता हूं जो भारत की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करते हैं:
1. आतंकवाद
2. आतंकवादियों की घुसपैठ
3. नक्सलवाद अथवा माओवाद
4. साम्प्रदायिक/धार्मिक झगड़े
5. अलहदगी अथवा अलगाववाद
6. आरक्षण आंदोलन
7. किसानों के आंदोलन
8. अंतर्राज्यीय जल अथवा सीमा विवाद
9. भाषा के झगड़े 

आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा
जैसे-जैसे ये मुद्दे मेरे दिमाग में आते गए मैंने उन्हें वैसे ही बिना किसी क्रम अथवा महत्व के लिखा है लेकिन जिस क्रम में वे दिखाई देते हैं, वह न्यूनाधिक इन मुद्दों की गम्भीरता को प्रतिबंबित करता है। क्रम सरकार के मुद्दों को सुलझाने अथवा नियंत्रित करने में अपेक्षित सफलता असफलता की भी समीक्षा है। उदाहरण के लिए 1965 में हिंदी का दर्जा तमिलनाडु में एक विस्फोटक मुद्दा बन गया और इसकी चिंगारी अभी भी बुझी नहीं है लेकिन आज देश में कहीं भी भाषा को लेकर कोई गम्भीर संघर्ष नहीं है।

आतंकवाद (जम्मू-कश्मीर) मुद्दों की सूची में शीर्ष पर है जो भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। कुछ वर्ष पहले तक केवल नक्सलवाद या माओवाद था जिसे यदि समाप्त नहीं तो काफी हद तक काबू कर लिया गया है। 1980 के दशक में पंजाब में अलगाववाद था लेकिन उस अभिशाप को वास्तव में राज्य से समाप्त कर दिया गया। अलगाववाद (पंजाब में) को खत्म करने तथा माओवाद (पश्चिम बंगाल सहित नक्सल प्रभावित राज्यों में) को काबू करने से कई मूल्यवान सबक सीखे जाने चाहिएं। वे सबक हैं (क) कड़ाई तथा विरोधियों से निपटने के लिए अधिकतम बल का इस्तेमाल तथा (ख) बाकी लोगों से निपटने में निष्पक्षता तथा मैत्रीपूर्ण रवैया।

अब जो सबक सीखे हैं
यह मेरे लिए हमेशा एक पहेली बनी रही है कि क्यों केन्द्र सरकार कहीं अन्य से सीखे गए सबकों को जम्मू-कश्मीर में लागू करने से इंकार करती है। मुझे संदेह है कि इसका कारण पाकिस्तान के खिलाफ गहरे समाई हुई शत्रुता है। मैंने तर्क दिया था कि सीमा (अंतर्राष्ट्रीय सीमा तथा नियंत्रण रेखा) की सुरक्षा अधिक सैनिकों के साथ मजबूत की जानी चाहिए और घुसपैठ को रोका जाना चाहिए। इस संबंध में सरकार का रिकार्ड अच्छा नहीं है। वर्ष 2017 में 136 घुसपैठें हुईं और जब अंतिम आंकड़े बाहर आएंगे तो वर्ष 2018 सबसे खराब साबित होगा (अक्तूबर के अंत तक 128 घुसपैठें हुई थीं)।

मैंने यह भी तर्क दिया था कि सरकार घाटी में एक नरम रवैया अपनाए तथा दावेदारों को बातचीत में शामिल करे। इसकी बजाय हम बल, सैन्य तथा बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो केवल अधिक से अधिक युवाओं को आतंकवादी समूहों की बांहों में धकेल रहा है (2017 में 126, अक्तूबर 2018 तक 164)। यह नीति बहुत बुरी तरह से असफल है जिसके परिणामस्वरूप अधिक घुसपैठें तथा ज्यादा मौतें हुई हैं। पाकिस्तान एक पथभ्रष्ट तथा आमतौर पर द्वेषपूर्ण पड़ोसी है। फिर भी यह एक पड़ोसी ही है। जैसा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने पहचाना और डाक्टर मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि ‘हम अपने मित्रों को बदल सकते हैं लेकिन हम अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते।’

भाजपा सरकार ने अपना ध्यान आतंकवाद से हटाकर पाकिस्तान पर केन्द्रित कर दिया है और लोगों से अविवादित समर्थन के लिए कह रही है। यह कुछ दिनों बाद बानगी को यूं ही जाने नहीं देगा और संबंधित प्रश्र पूछे जाएंगे। इसके विपरीत कोई भी ऐसा दिन नहीं गुजरता जब प्रधानमंत्री निर्लज्ज राजनीतिक भाषण नहीं देते जिसमें कांग्रेस तथा विपक्ष पर जोरदार हमला किया जाता है। जहां तक जम्मू-कश्मीर का संबंध है, जब तक सरकार कश्मीर घाटी में लोगों, विशेषकर युवाओं के अलग-थलग होने के मूलभूत प्रश्र का समाधान नहीं करती, राज्य में आतंकवादी कार्रवाइयों के खतरे से पार नहीं पाया जा सकेगा। अंतत: यह एक व्यापक दायरा हासिल कर लेगा और राष्ट्रीय सुरक्षा का एक मुद्दा बन जाएगा।

सम्भवत: इस तरीके से भाजपा स्थिति को बढ़ते देखना चाहती है ताकि यह दावा कर सके कि पाकिस्तान को ‘पराजित’ कर दिया गया है। इस तरह से पटकथा लिखी जा रही है लेकिन सावधानीपूर्वक लिखी पटकथाओं का अंत भी खतरनाक हो सकता है। कारगिल था, आप्रेशन पराक्रम था, इंडिया शाइनिंग अभियान था और अटल बिहारी वाजपेयी थे। अंत में लोगों की समझ ने नई सरकार की कमान एक अन्य पार्टी तथा इसके सहयोगियों के हवाले कर दी।–पी.चिदरंबरम

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