राजनीति के ‘अपराधीकरण’ ने नई ऊंचाइयों को छू लिया

Edited By ,Updated: 14 Jul, 2020 04:17 AM

the  criminalization  of politics has touched new heights

भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने हाल ही में एक आभासी रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘राजनीति के अपराधीकरण ने नई ऊंचाइयों को छू लिया है। अब हम बंगाल में कट मनी के बारे में सुन रहे हैं। हमें ऐसे नेताओं के आकार में कटौती करने की आवश्यकता है, जो कट मनी की...

भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने हाल ही में एक आभासी रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘राजनीति के अपराधीकरण ने नई ऊंचाइयों को छू लिया है। अब हम बंगाल में कट मनी के बारे में सुन रहे हैं। हमें ऐसे नेताओं के आकार में कटौती करने की आवश्यकता है, जो कट मनी की मांग करते हैं। हमें बंगाल की शानो-शौकत को फिर से स्थापित करने की जरूरत है तथा पश्चिम बंगाल की सरकार के लॉक, स्टॉक तथा बैरल को जड़ से खत्म कर दें।’’ 

अपने व्याख्यान में नड्डा बिल्कुल सही थे क्योंकि एक सप्ताह पूर्व जो घटा, उसने यह पुष्टि कर दी कि अब जरूरत राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने की हो गई है। पिछले सप्ताह यू.पी. के डॉन विकास दुबे का एनकाऊंटर कर उसकी हत्या कर दी गई। पुलिस ने एक बार फिर राजनेताओं तथा अपराधियों के बीच सांठगांठ पर ध्यान केंद्रित किया है तथा इस पर एक बड़ी बहस छिड़ चुकी है। दुबे को गत शुक्रवार को पुलिस द्वारा मार गिराया गया। पुलिस का दावा था कि उसने उस समय  भागने की कोशिश की जब उसको ले जाने वाली कार उज्जैन शहर के बाहरी इलाके में पलट गई। इससे पूर्व 3 जुलाई को दुबे ने 8 पुलिस कर्मियों की कानपुर में गोली मार कर हत्या कर दी। यह आरोप लगा कि कुछ राजनेता तथा पुलिस अधिकारी उसका सुरक्षा कवच बने हुए थे। उसकी गिरफ्तारी तथा एनकाऊंटर से कई असुविधाजनक सवाल उठ रहे हैं। 

यू.पी. में विपक्षी पार्टियां भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार पर आरोप लगा रही हैं कि इसने दुबे को बचाने की कोशिश की। वह यह भूल रहे हैं कि कई अन्य पाॢटयां जिन्होंने यू.पी. पर कई वर्षों तक शासन किया, ने ही दुबे को डॉन बनने में सहायता की। मायावती, अखिलेश यादव से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक यू.पी. के कई नेताओं ने यह मांग की है कि इसकी एक जांच करवाई जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि यू.पी. सरकार को बचाने के लिए ही गैंगस्टर की हत्या कर डाली गई। पूर्व डी.जी.पी. तथा प्रतिष्ठित राजदूत जूलियो रिबैरो ने अपनी राय को संक्षेप में कर दिया है। उन्होंने कहा कि, ‘‘विकास दुबे एक स्थानीय गुंडा था जिसका क्षेत्र उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों से आगे नहीं बढ़ा था। उसने पुलिस के लिए अपना सारा सम्मान खो दिया था। इसका उत्तर तैयार करना कठिन नहीं है।’’ 

तीन दशकों के लम्बे आपराधिक करियर में दुबे अपने आप में एक मिसाल है कि कैसे एक छोटा-सा गुंडा भ्रष्ट सिस्टम की मदद से इतने बड़े अपराधी नैटवर्क का प्रमुख बन गया? योगी आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आने के बाद से दुबे की मौत राज्य पुलिस का 118वां एनकाऊंटर है। दुर्भाग्यवश एनकाऊंटर ने मौत तथा सच्चाई को दफन कर दिया क्योंकि दुबे को जिंदा रहना था न कि मरना था ताकि उसका समर्थन करने वाले लोगों के नाम उजागर हो सकते। 

कइयों का मानना है कि विकास दुबे की हत्या कानून से बाहर रह कर की गई तथा एनकाऊंटर द्वारा दी गई मौत एक उचित सजा नहीं है। उसे कानूनी प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत थी। न्यायिक प्रणाली भी बराबर की दोषी है क्योंकि उसके खिलाफ 60 आपराधिक मामले होने के बावजूद वह जमानत पर बाहर रहने में कामयाब हो सका। अपराधीकरण का मामला पब्लिक फोरम में कई बार बहस का मुद्दा बना है। 80 के दशक के बाद नेताओं तथा अपराधियों के बीच सांठगांठ का ट्रैंड ऊपर जाता दिखाई दिया। हालांकि राजनेता अपराधियों का पूर्व में इस्तेमाल करते रहे हैं और अपराधी यह सोचते रहे कि वे भी चुनाव जीत कर संसद में पहुंच जाएंगे। 

पिछले 4 चुनावों में राजनीति के अपराधीकरण का ट्रैंड बढ़ रहा था, जो एक ङ्क्षचताजनक बात थी। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने यह भी नोट किया कि ‘‘2004 में 24 प्रतिशत सांसदों का आपराधिक रिकार्ड था। उनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। 2009 में यह बढ़ कर 30 प्रतिशत हो गया। 2014  में 34 प्रतिशत तथा 2019 में 43 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे।’’ इस निर्णय को लागू करने की पहली परीक्षा आगामी बिहार चुनाव होंगे। हालांकि निरंतर दिए गए निर्णयों ने अपराधियों को रोकने के लिए बहुत कम कार्य किया। वर्तमान कानून के तहत दो बार अपराधी ठहराए गए लोग उम्मीदवार बनने से रोके जा सकेंगे। 

आज समय की जरूरत न्यायिक सुधारों की है। इसके साथ-साथ पुलिस तथा चुनावी सुधार भी लम्बे समय से लंबित पड़े हैं। मिसाल के तौर पर चुनावी सुधारों पर कई रिपोर्टें जिसमें दिनेश गोस्वामी कमेटी की रिपोर्ट भी शामिल है, बिना इस्तेमाल के पड़ी हुई हैं। चुनाव आयोग को और शक्तियां उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है। अपराधियों, पुलिस तथा राजनीतिज्ञों के बीच सांठगांठ को जांचने की आवश्यकता है। पुलिस सुधारों, चुनावी सुधारों तथा न्यायिक सुधारों पर कई रिपोर्टें हैं। उन पर से धूल साफ करने तथा उन्हें लागू करने की जरूरत है। 

दिलचस्प बात यह है कि कई अपराधी राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं तथा कानून निर्माता बन चुके हैं। एसोसिएशन ऑफ डैमोक्रेटिक रिफाम्र्स के अनुसार 2019 में नवनियुक्त लोकसभा के आधे सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं जिनमें 2014 की तुलना में 26 प्रतिशत बढ़ौतरी हो चुकी है। कई सरकारें इन सुधारों के बारे में बात करती हैं मगर कोई भी ठोस कदम उठा नहीं सकीं। सबसे बड़ी बात राजनीतिक इच्छा की कमी होना है और इसके लिए सभी पाॢटयों का समर्थन चाहिए, जो ऐसे मामलों के प्रति विधेयक लाएं। लोगों को भी चाहिए कि वे अपराधियों को न चुनें।-कल्याणी शंकर

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