संघ का बस ‘स्वरूप’ बदल गया

Edited By ,Updated: 21 Jul, 2020 03:50 AM

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हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने ‘वर्तमान परिदृश्य और हमारी भूमिका’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि कोरोना से पूरी दुनिया जूझ रही है। जीवन तो चल रहा है। स्वयंसेवकों को लगता होगा कि शाखा बंद है, नित्य...

हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने ‘वर्तमान परिदृश्य और हमारी भूमिका’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि कोरोना से पूरी दुनिया जूझ रही है। जीवन तो चल रहा है। स्वयंसेवकों को लगता होगा कि शाखा बंद है, नित्य कार्यक्रम बंद है। ऐसा नहीं है। शाखा भी लग रही है और संघ का काम भी चल रहा है। बस उसका स्वरूप बदल गया है। 

मोहन भागवत जी के उपर्युक्त विचारों को लेकर विश्लेष्कों और कुछ विपक्षी दलों के मेरे राजनीतिक मित्र हत्प्रभ है कि ऐसी क्या बात है संघ में कि यह संगठन किसी भी परिस्थिति में अहॢनश सक्रिय रहता है। इस कोरोना काल में भी संघ सक्रियता के नए आयामों के माध्यम से गतिशील है। सच में संघ अद्भुत है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा संगठन है जो अपने स्थापना काल से ही दिनों-दिन आगे बढ़ रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग संघ की छवि को धूमिल करने में जुटे रहते हैं। ‘संघ का सच क्या है’, इस पर मैंने प्रस्तुत लेख में विचार व्यक्त किए हैं। हालांकि न मैं संघ का प्रवक्ता हूं और न ही संघ का अधिकारी, लेकिन बाल्यकाल से ही संघ से जुड़ा हुआ हूं। अत: एक साधारण स्वयंसेवक के नाते इसकी विशेषता पर अपने अनुभव सांझा कर रहा हूं। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी अनूठी कार्यपद्धति के कारण विश्व में जाना जाता है। संघ की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह सांस्कृतिक संगठन समाज आधारित है न कि सरकार आधारित। संघ विश्व का ऐसा संगठन है जिसका निरंतर विकास हो रहा है। नेहरू जी, इंदिरा जी और नरसिम्हाराव जैसे तीन-तीन प्रधानमंत्रियों ने अपने-अपने कार्यकाल में तीन-तीन बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया पर संघ न रुका, न झुका, न थका, उलटे समाज के  सहयोग से निरंतर बढ़ता ही रहा है।

लोग सोचते हैं कि संघ सतत् अपने कार्य में कैसे लगा रहता है। शायद उन्हें यह नहीं पता कि यहां सभी राष्ट्र के स्वयंसेवक के नाते स्वप्रेरणा से कार्य करते हैं। यहां कार्य करने वाले सभी स्वयंसेवकों का एक ही भाव होता है नि:स्वार्थ भावना। जब सभी का भाव नि:स्वार्थ होता है तो टकराहट जन्म ही नहीं ले पाती। ‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा’ की भावना से बढ़ रहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक। इस भौतिकवादी समय में लाभ-हानि  न सोच कर सतत् काम में लगे रहते हैं। ‘देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें’ की स्पष्टता रहती है। 

संघ के संस्थापक और आद्य सरसंघचालक डा. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने सन् 1925 को जब विजयदशमी के दिन नागपुर में प्रथम शाखा शुरू की तो उपस्थित स्वयंसेवकों ने कहा कि आप संघ के गुरु बन जाइए। डा. हेडगेवार जी ने कहा कि हम सबका गुरु व्यक्ति नहीं, परमपवित्र भगवाध्वज होगा। यहीं से संदेश चला गया कि संघ व्यक्ति आधारित नहीं बल्कि विचार आधारित मां भारती के सेवार्थ कार्य करने वाला एक सुदृढ़, सांस्कृतिक संगठन बनेगा। ङ्क्षहदू संस्कृति की विजय पताका विश्व में फहराएगा। 

देश भर में संघ की सात्विक और आध्यात्मिक प्रभाव बढ़ता देख तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को तबसे ज्यादा बदनाम और समाप्त करने की कोशिश की, जब से संघ की प्रेरणा से भारतीय राजनीति में जनसंघ का जन्म हुआ। उससे पूर्व  गांधी हत्याकांड में झूठा आरोप लगाकर जिस तरह से स्वयंसेवकों को यातना दी गई आज भी रौंगटे खड़े कर देती है। तत्कालीन सरसंघचालक विश्व के सबसे सबलतम आध्यात्मिक पुरुष डा. माधव सदाशिव गोलवलकर ‘‘गुरुजी’’ को जेल तक भेज दिया। संघ पर यातनाओं का दौर चला, प्रतिबंध लगा दिया गया पर सत्य की जीत हुई। न्यायालय ने कहा कि गांधी हत्या में संघ का और संघ के स्वयंसेवकों का कोई लेना-देना नहीं है। कांग्रेस सहित तत्कालीन शासक को मुंह की खानी पड़ी। मुझे याद है, एक साक्षात्कार में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वसंत साठे ने मुझे कहा था कि ‘‘मैं समझ ही नहीं पाता कि संघ का विरोध लोग क्यों करते हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘आपातकाल में मैंने इंदिरा जी को कहा था, पर उन्होंने एक नहीं सुनी।’’ 

संघ का कार्य निरंतर चलता रहता है
संघ की स्पष्ट मान्यता है कि संघ शाखा लगाएगा और स्वयंसेवक दसों दिशाओं में समाज के हर क्षेत्र में काम खड़ा करेंगे। सबसे अच्छी बात है कि संघ किसी को अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं मानता। यहां तक कि संघ को जो अपना दुश्मन मानते हैं, उसके बारे में गुरु जी कहा करते थे कि हमारा आज का विरोधी कल का समर्थक होगा। हमें इसी भाव से काम करना है। संघ संस्कृति और राष्ट्र ध्वज की भावना को लेकर काम करता है। क्या देश में मनुष्य को परिवार में मिलने वाले संस्कार के अलावा राष्ट्रीय संस्कार का शिक्षण कहीं दिया जा रहा है? कहीं नहीं। संघ का प्रमुख उद्देश्य है चरित्र निर्माण करना और मनुष्य को संस्कारवान बनाना। यही नहीं, आज बाल्यकाल से बच्चे अपनी भारतीय संस्कृति में पले-बढ़ें, अध्ययन करें, इसके लिए संघ की प्रेरणा से विद्या भारती के मार्गदर्शन में देश भर में लाखों विद्यार्थी सरस्वती शिशु मंदिर के माध्यम से अध्ययन करते हैं। 

तरुण विद्यार्थियों के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
देश के हिंदू सनातन धर्म के रक्षार्थ विश्व हिंदू परिषद। मजदूरों के बीच, कर्मचारियों के बीच, शिक्षकों के बीच, समाज के इन वर्गों के बीच काम करने के लिए भारतीय मजदूर संघ की स्थापना। ये सभी संगठन संघ की प्रेरणा से परन्तु अपनी योजना से काम करते हैं। किसानों के बीच काम करने के लिए भारतीय किसान संघ, वनवासियों के बीच काम करने के लिए वनवासी कल्याण आश्रम, संस्कार भारती, सेवा भारती, लघु उद्योग भारती, क्रीड़ा भारती, आरोग्य भारती, संस्कृत भारती, प्रज्ञा भारती, विज्ञान भारती, भारत विकास परिषद, राष्ट्रीय सम्पादक परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, हिंदू स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय शिक्षण मंडल जैसे अनेक संस्थान आज विभिन्न वर्गों में काम कर रहे हैं। विश्व संवाद केंद्र, दीनदयाल शोध संस्थान, अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति, भारतीय विचार केंद्र, राष्ट्रीय सिख संगत, विवेकानंद केंद्र, अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षणिक परिषद, अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद, सहकार भारती, ग्राहक पंचायत, सामाजिक समरसता मंच, हिंदू जागरण मंच, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, पर्यावरण समिति, दधीचि देहदान समिति तक संघ की प्रेरणा से चल रहे हैं। 

संघ की मान्यता है
यहां पद नहीं, दायित्व होता है। कोई भी कार्यकत्र्ता अपरिहार्य नहीं। यही नहीं, मत अनेक हो सकते हैं पर निर्णय एक। निर्णय के पूर्व विस्तृत चर्चा, निर्णय के बाद सिर्फ उसके संपादन में लगना। संघ कभी नहीं कहता कि हम ही भारत को वैभवशाली बनाएंगे, संघ कहता है कि हम भी भारत को वैभवशाली बनाने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। संघ को समझना है तो उसे अपनी आंखों से देखना होगा न कि कानों से सुनकर।  संघ भारत की सांस्कृतिक प्रकृति है। आज नहीं तो कल इस प्रकृति की गोद में सभी को आना ही होगा।-प्रभात झा(भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद)

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